प्रारंभिक परीक्षा - समसामयिकी, नटराज की मूर्ति, 'लॉस्ट-वैक्स' कास्टिंग विधि मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन, पेपर-1 |
चर्चा में क्यों-
- दुनिया की सबसे ऊंची मानी जाने वाली, 19 टन वजनी और अष्ट धातुओं से बनी नटराज की कांस्य मूर्ति को सड़क मार्ग से नई दिल्ली भेजा गया है। इसे प्रसिद्ध मूर्तिकार देवसेनापति स्टापथी के पुत्रों द्वारा बनाया गया था।
मुख्य बिंदु-
- 28 फीट ऊंची इस मूर्ति को दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति माना जाता है।
- स्वामीमलाई के श्रीकांत स्टापथी ने अपने भाइयों राधाकृष्ण स्टापथी और स्वामीनाथ स्टापथी के साथ मिलकर यह मूर्ति बनाई है। ये तीनों प्रसिद्ध मूर्तिकार देवसेनापति स्टापथी के बेटे हैं।
- मूर्ति की ऊंचाई 22 फीट है, और कुर्सी 6 फीट है, जिससे पूरी संरचना 28 फीट ऊंची हो जाती है।
- श्री श्रीकांत स्टापथी ने कहा, "हमने इस प्रतिमा को बनाने में चोल काल के चिदम्बरम, कोनेरीराजपुरम और अन्य नटराजों के मॉडल का पालन किया है।"
- मूर्तिकार सदाशिवम, गौरीशंकर, संतोष कुमार और राघवन भी इस परियोजना में शामिल थे।
- मूर्तिकार इन मूर्तियों को बनाने के लिए 'लॉस्ट-वैक्स' कास्टिंग विधि का पालन करते हैं।
- 28 फीट के नटराज मूर्ति को भी इसी विधि का पालन करके बनाया गया है।
- यह एक समय-परीचलित विधि थी, जिसका उपयोग चोल शासन के दौरान किया जाता रहा है।
- मूर्तिकार सबसे पहले एक मोम का मॉडल बनाते हैं और उसे मिट्टी में लपेट देते हैं।
- मिट्टी को सूखने देने के बाद पिघले हुए मोम को निकालने के लिए इसे गर्म किया जाता है।
- पिघले हुए मोम द्वारा छोड़ी गई जगह पिघले हुए कांस्य से भर जाती है।
- इसे ठंडा होने के बाद सांचे को तोड़ दिया जाता है और उसके बाद मूर्ति को पूर्णता देने के लिए छेनी का प्रयोग किया जाता है।
- श्री श्रीकांत स्टापथी के अनुसार,प्रतिमा का ऑर्डर केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने 20 फरवरी, 2023 को दिया था और काम पूरा करने में छह महीने लग गए।
- मूर्ति की कीमत करीब 10 करोड़ रुपये है।
- मूर्तिकारों ने यह मूर्ति इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के प्रोफेसर और एच0डी0 (संरक्षण) अचल पंड्या को सौंप दी, जो इसके साथ नई दिल्ली जाएंगे।
- इसे 25 अगस्त 2023 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक छोटे से शहर स्वामीमलाई से (जो अपनी कांस्य मूर्तियों के लिए जाना जाता है) से सड़क मार्ग से नई दिल्ली भेजा गया।
- 19 टन वजनी और आठ धातुओं: सोना, चांदी, सीसा, तांबा, टिन, पारा, लोहा और जस्ता (अष्टधातु) से बनी यह प्रतिमा भारत मंडपम, प्रगति मैदान में जाएगी जहाँ 9 और 10 सितंबर 2023 को जी-20 शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा।
- नृत्य करते हुए भगवान शिव (नटराज) का प्रतिनिधित्व करने वाली यह मूर्ति तमिल संस्कृति की उत्कृष्ट कृतियों में से एक के रूप में जानी जाती है।
- सूत्रों के अनुसार,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी20 शिखर सम्मेलन के आयोजन स्थल की शोभा बढ़ाने वाली नटराज की मूर्ति लगाने के इच्छुक थे।
नटराज के बारे में-
- नृत्य सम्राट भगवान शिव के नटराज रूप का उद्भव तमिलनाडु के चिदंबरम में हुआ था।
- भगवान शिव संहार के द्योतक हैं। इसके पश्चात सृष्टि की रचना होती है।
- यदि भगवान शिव के नटराज रूप को देखा जाए,तो यह मुद्रा शिव की इस परिभाषा पर खरी उतरती है।
- उनकी इस छवि में जीवन चक्र दर्शाया गया है जिसके प्रत्येक भाग का शिव एक अभिन्न अंग हैं।
- नटराज का अर्थ है- नृत्यसम्राट, जो इस मुद्रा में दिव्य तांडव नृत्य कर रहे हैं।
नटराज मूर्ति की विशेषताएं-
- ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू –
- चार भुजाधारी शिव के एक दाहिने हाथ में डमरू है जिस पर एक छोटी व मोटी रस्सी बंधी होती है।
- डमरू से उत्पन्न नाद उस प्रणव स्वर का द्योतक है जिससे ब्रह्माण्ड की रचना हुई है।
- भगवान शिव का डमरू जगत की सृष्टि अर्थात जगत की रचना का प्रतीक है।
- ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि –
- उनके ऊपरी बाएँ हाथ में अग्नि है, जो विनाश प्रतीक है।
- निचला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में –
- उनका निचला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में अवस्थित है।
- इसका अर्थ है कि वे धर्म के पथ पर अग्रसर शिव भक्तों का संरक्षण प्रदान करते हैं।
- निचला बायां हाथ वरद मुद्रा में –
- नटराज का निचला बायाँ हाथ वरद मुद्रा में नीचे की ओर झुका हुआ है।
- यह समस्त जीवों की आत्मा का शरण स्थान अथवा मुक्ति का द्योतक है।
- उनका यह हाथ ब्रह्माण्ड के सुरक्षात्मक, पोषक व संरक्षक तत्वों का प्रतीक है।
- दाहिना पैर –
- उन्होंने अपने दाहिने चरण के नीचे अज्ञान के प्रतीक एक बौने दानव को दबा रखा है।
- अतः, सृष्टि की रचना, पोषण, संहार तथा पुनर्रचना के अतिरिक्त भगवान शिव अज्ञानता के दानव पर भी अंकुश रख रहे हैं।
- दानव आनंदित भाव से भगवान शिव को निहार रहा है।
- बायाँ पैर –
- उनका बायाँ पैर नृत्य मुद्रा में उठा हुआ है जो नृत्य के आनंद को दर्शा रहा है।
- कटि पर बंधा सर्प –
- उनके कटिप्रदेश पर बंधा सर्प कुण्डलिनी रूपी शक्ति है, जो नाभि में निवास करती है। अर्धचन्द्र ज्ञान का प्रतीक है।
- उनके बाएं कान में पुरुषी कुंडल हैं तथा दायें कान में स्त्री कुंडल हैं, जो यह दर्शाते हैं कि जहां शिव हैं, वहां उनकी शक्ति भी विराजमान हैं।
- उन्होंने एक नर्तक के समान अपने गले में हार, हाथों में बाजूबंद व कंगन, पैरों में पायल, पैरों की उँगलियों में अंगूठियाँ, कटि में रत्नजड़ित कमरपट्टा आदि आभूषण धारण किये हैं।
- उनके मुख पर समभाव हैं। पूर्णरुपेन संतुलित। न रचयिता का आनंद, नाही विनाशकर्ता का विषाद।
- वे जब नृत्य करते हैं तब उनकी जटाएं खुल जाती हैं। उनकी जटाओं के दाहिनी ओर आप गंगा को देख सकते हैं। उनके चारों ओर अग्नि चक्र है जो ब्रह्माण्ड को दर्शाता है।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- नटराज शिव की मूर्ति के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें।
- इस मूर्ति में शिव लास्य नृत्य करते हुए दिखाई देते है।
- उनके ऊपरी दाहिने हाथ में डमरू है,जो जगत की रचना का प्रतीक है।
- उन्होंने अपने दाहिने चरण के नीचे अज्ञान के प्रतीक एक बौने दानव को दबा रखा है।
उपर्युक्त में से कितना/कितने कथन सही है/हैं?
(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीनों
(d) कोई नहीं
उत्तर- (b)
मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न-
प्रश्न- नटराज मूर्ति की विशेषताएं बताएं। हाल ही में यह क्यों चर्चा में रहा?
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