संदर्भ
तालिबान द्वारा नष्ट किये जाने के लगभग दो दशक बाद बामियान की बुद्ध मूर्तियों को हाल ही में, "ए नाइट विद बुद्ध" नामक एक कार्यक्रम में 3D प्रस्तुति द्वारा पुनः जीवंत किया गया।
बामियान के बुद्ध
- दो अलग-अलग मुद्राओं में रोमन वस्त्र विन्यास वाली बामियान की बुद्ध मूर्तियाँ (जिन्हें ‘बामियान के बुद्ध’ भी कहा जाता है) गुप्तकाल, ससानी और हेलेनिस्टिक कलात्मक शैलियों के संगम का अद्वितीय उदाहरण थीं।
- ऐसा माना जाता है कि ये मूर्तियाँ 5वीं शताब्दी की थीं और बुद्ध की सबसे लंबी खड़ी प्रतिमाएँ थीं।
- बुद्ध की इन दो प्रतिमाओं को स्थानीय लोगों द्वारा सलसल (Salsal) और शमामा (Shamama) कहा जाता था। ये मूर्तियाँ क्रमशः 55 और 38 मीटर ऊँची थीं। इनका निर्माण 5वीं और 6वीं शताब्दी के मध्य कुषाणों द्वारा किया गया था।
- स्थानीय लोग सलसल को पुरुष व शमामा को महिला मानते थे।सलसल का अर्थ होता है ‘ब्रह्मांड के माध्यम से चमकने वाला प्रकाश’ (the light shines through the universe ) और शमामा का अर्थ है ‘रानी माँ’ (Queen Mother) है।
- इन मूर्तियों को एक चट्टान के दो छोरों के पर स्थापित किया गया था। बलुआ पत्थर से निर्मित ये मूर्तियाँ खड़ी मुद्रा में बनी बुद्ध की सबसे विशाल प्रतिमाएँ थीं।
- तालिबान द्वारा वर्ष 2001 में इन्हें नष्ट कर दिया गया था।
- इसके पूर्व भी बामियान में बुद्ध की मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश हो चुकी है, 1221 ईसवी में चंगेज खान ने इन मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश की थी, किंतु वह असफल रहा था।इसके बाद औरंगज़ेब, नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली ने भी इन मूर्तियों को क्षति पहुँचाने कोशिश की थी।
बामियान के बारे में
- बामियान, काबुल से 130 किमी. दूर अफ़गानिस्तान में हिंदुकुश पर्वतों में अवस्थित है।
- शुरुआती दिनों में बामियान नदी घाटी रेशम मार्ग का एक अभिन्न अंग थी। यह घाटी न केवल व्यापारिक बल्कि सांस्कृतिक व धार्मिक आदान-प्रदान के लिये भी महत्त्वपूर्ण थी।कुषाण साम्राज्य के उत्कर्ष के समय बामियान एक प्रमुख व्यापारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र बन गया था।
- चीन, भारत और रोम तीनों ही बामियान के माध्यम से व्यापार एवं सांस्कृतिक आदान प्रदान करते थे। कुषाणों ने इन तीनों सभ्यताओं को अपनी संस्कृति में समाहित किया था।