New
IAS Foundation Course (Pre. + Mains) - Delhi: 20 Jan, 11:30 AM | Prayagraj: 5 Jan, 10:30 AM | Call: 9555124124

बजट 2021-22 : उपलब्धियाँ और विसंगतियाँ

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र : 3, सरकारी बजट)

संदर्भ

यदि सरल भाषा में कहा जाय तो बजट सरकार की अस्थायी आय और व्यय विवरण और इससे जुड़ी सरकार की नीतियों और विचार को संप्रेषित करने का एक माध्यम होता है। इसे तत्काल राजनीतिक (चुनावी) और आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिये सरकार का वक्तव्य भी कहा जा सकता है। अतः किसी बजट का मूल्यांकन आवश्यक हो जाता है विशेषकर जब इसके त्वरित और दीर्घकालिक प्रभाव समझने हों।  हाल ही में, वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये भारत सरकार ने अपना वार्षिक बजट जारी किया। 

उपलब्धियाँ

1.स्वास्थ्य क्षेत्र :  सरकार ने बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्यान दिया है, स्वास्थ्य क्षेत्र पर अगले वर्ष लगभग 2.87 लाख करोड़ रुपए खर्च किये जाएंगे। इसमें लागभग 64,180 करोड़ रुपए की अनुमात लागत वाली नई ‘प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना’ शामिल है। इस योजना के तहत 70 हज़ार गाँवों में देखभाल केंद्र / वेलनेस सेंटर बनाए जाएंगे। इसके अलावा कोरोना वैक्सीन से जुड़े अनुसंधान कार्यों के लिये 35 हज़ार करोड़ रुपए भी आवंटित किये गए हैं साथ ही ‘मिशन पोषण 2.0’ की शुरुआत किये जाने का प्रस्ताव भी किया गया है। गाँवों में रहने वाली देश की लगभग  60% से ज़्यादा आबादी को फायदा होगा।

2. सार्वजनिक परिवहन : बजट में रेल, बस, सड़क और मेट्रो आदि से जुड़े नए प्रस्ताव भी शामिल किये गए हैं। शहरी इलाकों में 20 हज़ार नई बसें चलाई जाएंगी। टियर-2 शहरों में ‘लाइट मेट्रो’ और ‘नियो मेट्रो’ की शुरुआत की जाएगी। इटारसी-विजयवाड़ा में ‘फ्यूचर रेडी कॉरिडोर’ का निर्माण किया जाएगा। अगले वर्ष तक 8500 किलोमीटर की नई सड़क परियोजनाएँ शुरू की जाएंगीं।इससे देशवासियों को बेहतर और विश्वस्तरीय परिवहन सेवाएँ प्राप्त होंगीं।

3. कर : कोविड-19 के कारण सरकार की आय में कमी देखी गई थी, जबकि खर्च में बढ़ोतरी हुई थी। ऐसे में सरकार द्वारा आयकर की दरों में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन सरकार ने इसमें कोई बढ़ोतरी नहीं की है। इससे कर देने वालों पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। बजट में नए करदाताओं को भी राहत प्रदान की गई है। 75 वर्ष और उससे अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को भी कर से छूट प्राप्त होगी। देश में करीब 6 करोड़ करदाता हैं। इनमें से करीब 3 करोड़ ‘व्यक्तिगत कर दाता’ हैं। इन पर कराधान से जुड़ी नीतियों का सकारात्मक असर होगा।

4. अवसंरचनागत विकास: बजट में अवसंरचनागत विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है। ‘नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन’ के ज़रिये 7400 परियोजनाओं पर कार्य किया जाएगा। 13 क्षेत्रों के लिये ‘प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)’ स्कीम को लाया जाएगा। आगामी 3 वर्षों में देशभर में ‘7 टेक्सटाइल पार्क’ बनाए जाने की योजना भी प्रस्तावित है। अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये नए बैंक का निर्माण भी किया जाएगा। देश में व्यापार से जुड़ी गतिविधियाँ बढ़ेंगी और रोज़गार से जुड़े नए अवसर उत्पन्न होंगे।

विसंगतियाँ

1. नौकरियों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं: बजट में रोज़गार की दशा और दिशा की स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। हालाँकि, सरकार ने डेढ़ लाख नौकरियों की घोषणा की है। लेकिन युवाओं को रोज़गार कैसे और किस प्रकार का प्राप्त होगा, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है। सरकारी नौकरियों को लेकर भी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की गई है।

2. किसानों की आय बढ़ाने पर ध्यान नहीं: कृषि क्षेत्र में अगले वर्ष 1.72 लाख करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की गई है। इसमें 1 हज़ार नई मंडियों, कृषि उत्पाद बाज़ार समिति (APMC) के लिये ‘एग्री फंड’, 5 नए ‘फिशिंग हब’ और ‘ग्रामीण अवसंरचना’ पर 40 हज़ार करोड़ खर्च करने की घोषणा की गई है। लेकिन किसानों की आय वृद्धि से जुड़े उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया है। ‘पी.एम. किसान’ की वर्तमान राशि में बढ़ोतरी नहीं की गई है।

3. आय का रोडमैप नहीं, ऋण पर ज़ोर: बजट में खर्च के लिये 83 लाख करोड़ रुपए रखे गए हैं। लेकिन इस बजट में आय का कोई विशेष रोडमैप नहीं शामिल किया गया है। इस बार ऋण पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है। यद्यपि पेट्रोल पर 2.5 और डीजल पर 4 रुपए का ‘कृषि उपकर/सेस’ लगाया गया है, जिससे राजस्व में वृद्धि तो होगी लेकिन वह सामान्य वृद्धि ही होगी। सरकार ने अगले वर्ष 12 लाख करोड़ रुपए का ऋण लेने का लक्ष्य निर्धारित किया है तथा करों के ज़रिये भी 15.45 लाख करोड़ रुपए की आय होने का अनुमान है। अधिक ऋण के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ बढ़ेगा तथा ऋण पर ब्याज चुकाने में भी पैसे खर्च करने होंगे।

4. सरकारी संपत्ति की बिक्री पर ज़ोर : बजट में सरकारी संपत्तियों की बिक्री तथा विनिवेश पर अधिक ध्यान दिया गया है। सरकार इस वर्ष बी.पी.सी.एल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, आई.डी.बी.आई. बैक, बी.ई.एम.एल, पवन हंस, नीलांचल इंस्पात निगम लिमिटेड आदि में विनिवेश करना चाहती है। इसके अलावा दो सरकारी बैंकों और एक सरकारी बीमा कंपनि के निजिकरण का प्रस्ताव भी बजट में शामिल है। 

बजट का सूक्ष्म विश्लेषण 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • पिछले वर्ष (FY2019-20) की तुलना में वर्तमान वित्तीय वर्ष (FY2020-21) में घरेलू उत्पादन या जी.डी.पी. (समेकित मुद्रास्फीति) में 7% की गिरावट देखे जाने की संभावना है।प्रति व्यक्ति आय में भी 8.7% की गिरावट  सम्भावित है। दुनिया के प्रमुख देशों के सापेक्ष भारत में ये सम्भावित संकुचन  सबसे खराब है। 
  • नॉवेल कोरोनावायरस महामारी और परिणामी लॉकडाउन के कारण बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरी और आजीविका का नुकसान हुआ।अतः अधिकांश उन्नत देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत, जनता के संकट को दूर करने के लिये भारत की प्रतिक्रिया को संतोषजनक  नहीं कहा जा सकता। 
  • कोविड जैसे अभूतपूर्व संकट से निपटने के लिये सरकार द्वारा किया जाने वाला ‘अतिरिक्त सार्वजनिक खर्च’ जी.डी.पी. के 1% से थोड़ा ही अधिक है।ध्यातव्य है कि वर्ष 2020-21 में उत्पादन (जी.डी.पी.) में अत्यधिक संकुचन देखा गया था, जिसके फलस्वरूप रोज़गार में गिरावट, वास्तविक मज़दूरी (Real Wages) में गिरावट, गरीबों की संख्या में वृद्धि और कुपोषित बच्चों के अनुपात में वृद्धि देखी गई। 

पूंजीगत व्यय प्रस्ताव (Capital expenditure proposal)

  • बजट में आगामी वित्तीय वर्ष (वर्तमान वर्ष की तुलना में) में सार्वजनिक निवेश को 5% तक बढ़ाने का संकेत एक ‘स्वागत योग्य कदम’ है। सरकार अगले दो महीनों में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाने के लिये अतिरिक्त 80,000 करोड़ रुपए उधार लेगी। ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार के लिये वित्त वर्ष 2021-22 में अनुमानित राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.8% रहने का अनुमान है। 
  • बजट में दिये गए आँकड़े निश्चित रूप से प्रभावशाली दिखते हैं।यदि बड़ी मात्रा में निवेशों की प्राप्ति की बात की जाय तो यह प्रमुख रूप से कर राजस्व की प्राप्ति, विनिवेश की आय, रेल और सड़क परिसंपत्तियों की बिक्री और सरकार की बाज़ार से संसाधन जुटाने की क्षमता पर निर्भर करती है। 
  • यद्यपि सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में पूँजीगत निवेश किये जाने के इरादे स्पष्ट हैं लेकिन ऋण मुद्रीकरण के लिये सरकार क्या उपाय करने वाली है इसका उल्लेख नहीं किया गया है। अतः यह कहा जा सकता है कि वित्तपोषण के लिये सरकार की रणनीति अस्पष्ट है।
  • प्रस्तावित ‘विकास वित्त संस्थान’ (Development Finance Institution - DFI) भी स्वागत योग्य कदम है।बुनियादी ढाँचे के लिये दीर्घकालिक ऋण की कमी को पिछले दशक में खराब औद्योगिक और बुनियादी ढाँचे के निवेश के प्रमुख कारणों में से एक माना जा सकता है। 
  • वर्तमान परिदृश्य में विभिन्न वाणिज्यिक बैंकों के लिये लंबी अवधि (पाँच वर्ष से अधिक) के लिये ऋण देना मुश्किल काम है।इसके अलावा, चूँकि पिछले दशक के दौरान कॉर्पोरेट क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के कारण बैंक गैर-निष्पादित आस्तियों से भरे हुए थे, इसलिये नया ऋण लेने / देने की उनकी क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। 
  • समकालीन अनुभवों से पता चलता है कि सफल औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाले अधिकांश देशों ने दीर्घकालिक ऋण के लिये डी.एफ.आई. पर भरोसा किया है। अतः सरकार द्वारा प्रस्तावित डी.एफ.आई. का प्रमुख उद्देश्य वित्त के स्थिर, दीर्घकालिक, कम लागत वाले स्रोतों को हासिल करना होना चाहिये।
  • ध्यातव्य है कि प्रस्तावित डी.एफ.आई. को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफ.पी.आई.) द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा, जो एक तरह से चिंता का कारण हो सकता है क्योंकि परिभाषा के अनुसार, एफ.पी.आई. विनिमय दर के जोखिमों के साथ धन के अल्पकालिक अंतर्प्रवाह को दर्शाता है, जबकि बुनियादी ढाँचे में निवेश सामान्यतः लंबी अवधि के लिये किया जाता है। 
  • इसलिये, वैकल्पिक दीर्घकालिक स्रोतों के लिये प्रमुख रूप से स्रोतों या अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों पर विचार किये जाने की आवश्यकता है। 

स्वास्थ्य और रोज़गार

  • वित्त मंत्री ने अपने भाषण में जिन "6 स्तंभों" का वर्णन किया है -स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचा उनमें से प्रथमहै। सरकार द्वारा शहरी स्वच्छता, पेयजल और सीवेज सुविधाओं में सुधार के लिये एक पर्याप्त वार्षिक निश्चित निवेश की घोषणा वास्तव में एक स्वागत योग्य कदम है। यद्यपि ग्रामीण स्वच्छ भारत अभियान से अभी भी बहुत से सबक सीखने बाकी हैं। 
  • जैसा कि चुनिंदा राज्यों में वर्ष 2019-20 के हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़ों से स्पष्ट है कि पानी और सीवेज सुविधाओं तक पर्याप्त पहुँच के बिना घरेलू परिसर में शौचालय का निर्माण, इसके वास्तविक उद्देश्यों को पूरा करने में बाधक है।जब तक इन पूरक सुविधाओं का समन्वित तरीके से लागू नहीं किया जाता है, ऐसे निवेशों की प्रभावशीलता न्यूनतम होगी।
  • बजट में रोज़गार या इससे जुड़े विषयों पर ज़्यादा चर्चा नहीं की गई है।निश्चित रूप से, बुनियादी ढाँचे में प्रस्तावित उपायों से श्रम की माँग बढ़ेगी, अतः रोज़गार और श्रमबल का सृजन होगा, लेकिन रोज़गार को एक मुख्य विषय मानते हुए इससे जुड़े प्रावधानों पर ध्यान दिया जा सकता था। 
  • राष्ट्रीय रोज़गार सर्वेक्षण के अनुमान के अनुसार, 2010 का दशक रोज़गार हानि का दशक था और हालिया महामारी ने देश के घाव में नमक छिड़कने का काम किया, जिससे प्रवासी मज़दूरों के पलायान और रोज़गार से से जुड़े संकट भी उत्पन्न हुए लेकिन बजट में इस संकट और इससे जुड़े मुद्दों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है।
  • विगत वर्ष उभर के सामने आने वाली आर्थिक असमानता का ज़िक्र भी बजट में नहीं है।जबकि वर्ष 2020 में जहाँ बड़ी संख्या में मज़दूरों, गरीबों और अन्य लोगों ने अपनी नौकरी और आजीविका खो दी वहीँ कॉर्पोरेट क्षेत्र के लोगों का मुनाफा बहुत बढ़ा। 

निष्कर्ष

  • यदि बजट भाषण में उल्लिखित पूँजीगत व्यय योजना (capital expenditure plan) सुनिश्चित वित्तीय बैकिंग के साथ कुशलतापूर्वक लागू की जाती है, तो यह भारत में निवेश चक्र को पुनर्जीवित कर सकती है।
  • अवसंरचना के लिये ऋण देने के लिये प्रस्तावित विकास बैंक (development bank) भी स्वागत योग्य कदम है, बशर्ते इसके वित्त के स्रोत सस्ते, दीर्घकालिक और घरेलू हों।
  • शहरी सार्वजनिक स्वास्थ्य ढाँचे में निवेश (स्वच्छता, जल आपूर्ति और सीवेज आदि) की दिशा भी सही है बशर्ते इन्हें समन्वित तरीके से लागू किया जाय।
  • यद्यपि वर्तमान रोज़गार संकट को कम करने के लिये किसी ‘लक्षित रोज़गार कार्यक्रम’ का प्रस्ताव नहीं किया गया है, यह चिंता का विषय है।
  • विगत वर्ष स्वास्थ्य और आर्थिक झटकों के कारण नौकरी और आजीविका खोने वाले आम जनों के प्रति सरकार की उदासीनता सकारात्मक संदेश नहीं दे रही।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR