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बन्नी घास के मैदान

संदर्भ

कच्छ विश्वविद्यालय के के शोधकर्ताओं ने पारिस्थितिकी मूल्य को प्राथमिक मानदंड मानते हुए घास के मैदानों की सतत बहाली के लिए ‘बन्नी’ के विभिन्न क्षेत्रों की उपयुक्तता का आकलन किया है।

बन्नी घास के मैदान

  • गुजरात के कच्छ जिले के उत्तर में फैले घास के मैदानों को ‘बन्नी’ कहा जाता है। 
  • बन्नी घास का मैदान लवणीय-सहिष्णुता वाला पारिस्थितिकी तंत्र है, जो लगभग 3,847 वर्ग किमी में फैला हुआ है। लेकिन वर्तमान में यह घटकर लगभग 2,600 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
    • इसे एशिया का सबसे बड़ा घास का मैदान भी कहा जाता है।
  • जलवायु : 
    • जलवायु शुष्क और अर्ध-शुष्क 
    • अत्यधिक गर्म ग्रीष्मकाल (तापमान 45°C से अधिक)
    • हल्की सर्दियाँ (12°C से 25°C)
    • 300-400 मिमी वार्षिक वर्षा, मुख्य रूप से मानसून के दौरान
  • जैव-विविधता : 
    • जीव : यहाँ नीलगाय, चिंकारा, काला हिरण, जंगली सूअर, गोल्डन जैकाल, भारतीय खरगोश, भारतीय भेड़िया, कैराकल, एशियाई जंगली बिल्ली और रेगिस्तानी लोमड़ी आदि जैसे स्तनधारी पाए जाते हैं।
    • वनस्पति : डाइकैन्थियम, स्पोरोबोलस, और सेंच्रस घास प्रजातियों के अतिरिक्त नमक सहन करने वाले पौधे, झाड़ियाँ, बबूल और आक्रामक प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा।
  • कच्छ वन्यजीव अभयारण्य और चारी-धंड आर्द्रभूमि संरक्षण रिजर्व बन्नी घास के मैदानों का हिस्सा हैं।
  • यहाँ रहने वाले अधिकांश जातीय समूह चरवाहे हैं, जिसमें मालधारी जैसे देहाती समुदाय का विशेष रूप से उल्लेख किया जाता है। 
    • यह समुदाय अपनी आजीविका के लिए पशुधन (मवेशी, भैंस और भेड़) चराने पर निर्भर हैं।

घास के मैदान का महत्त्व 

  • घास के मैदान दुनिया के सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्रों में से एक हैं। वे मुख्य रूप से अर्ध-शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में पाए जाते हैं। 
    • इनमें सवाना, घास के झाड़ियाँ और खुले घास के मैदान शामिल हैं। 
  • घास के मैदान बड़ी संख्या में अद्वितीय और प्रतिष्ठित प्रजातियों को आश्रय देते हैं और लोगों को कई तरह के भौतिक और अमूर्त लाभ प्रदान करते हैं। 
    • जिसमें कार्बन भंडारण, जलवायु शमन और परागण जैसी कई पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ शामिल हैं।
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