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कार्बन फार्मिंग : अवसर एवं चुनौतियां

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण पारिस्थितिकी, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन पर सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : जैव-विविधता एवं पर्यावरण)

संदर्भ

  • कार्बन सभी जीवित जीवों एवं कई खनिजों में पाया जाता है। यह पृथ्वी पर जीवन के लिए मूलभूत तत्त्व है जो प्रकाश संश्लेषण, श्वसन एवं कार्बन चक्र सहित विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण है।
  • ऐसे में जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कार्बन फार्मिंग (Carbon Farming) जैसी शमन रणनीति का उपयोग किया जा सकता है। हालाँकि, इसके लिए संभावित चुनौतियों का समाधान आवश्यक है।

क्या है कार्बन फार्मिंग 

  • फार्मिंग या खेती भोजन, फाइबर, ईंधन या अन्य संसाधनों के लिए भूमि पर खेती करने, फसल उगाने और/या पशुपालन की प्रथा है। इसमें फसलों के रोपण एवं कटाई से लेकर पशुधन प्रबंधन व कृषि बुनियादी ढांचे को बनाए रखने तक की गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • कार्बन फार्मिंग पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agricultural) प्रथाओं का प्रयोग करते हुए इन दो अवधारणाओं का संयोजन है। 
  • यह कृषि उत्पादकता एवं मृदा स्वास्थ्य में सुधार करते हुए पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बहाल (Restore) करती है। यह कृषि क्षेत्रों में कार्बन भंडारण (Carbon Storage) को बढ़ाकर तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन का शमन करती है।
  • पुनर्योजी कृषि प्रथाओं में रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के स्थान पर प्राकृतिक तत्वों का उपयोग, न्यूनतम जुताई, मल्चिंग, बहुफसली एवं विविध देशी किस्मों की बुवाई और पशुधन को एकीकृत करना शामिल है। सिद्धांत रूप में यह प्राकृतिक तत्व, मृदा संरचना व स्वास्थ्य और इसकी जैव विविधता एवं जैविक कार्बन सामग्री को बेहतर करने पर केंद्रित है।
    • पुनर्योजी कृषि में जल व अन्य आदानों (Inputs) का कम उपयोग किया जाता है और भू-क्षरण एवं वृक्षों की कटाई को रोका जाता है।
    • मल्चिंग में मृदा की नमी को संरक्षित करने और मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए खेत को घास, छाल, पत्तियों व अन्य कार्बनिक पदार्थों से कवर (ढकना) किया जाता है। 

कैसे सहायक हो सकती है कार्बन फार्मिंग

  • चक्रीय चराई (Rotational grazing) : इसमें कृषि वानिकी, संरक्षण कृषि, एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन, कृषि-पारिस्थितिकी, पशुधन प्रबंधन एवं भूमि बहाली शामिल हैं।
  • कृषि वानिकी प्रथाएं : सिल्वोपास्चर (एक ही भू-खंड पर वृक्षरोपण एवं पशुचारण) एवं एली क्रॉपिंग (पौधों की पंक्तियों के बीच खाद्य, चारा या विशेष फसलों की कृषि) से कार्बन पृथक्करण करके कृषि आय में विविधता लाई जा सकती है। 
  • कृषि संरक्षण तकनीकें : गहन कृषि गतिविधियों वाले स्थानों में शून्य जुताई, फसल चक्र, मल्चिंग फसलों के उत्पादन एवं फसल अवशेष प्रबंधन से मिट्टी स्वास्थ्य में सुधार करके कार्बनिक सामग्री को बढ़ाने में मदद मिल सकती हैं।
  • एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन प्रथाएं : यह मृदा की उर्वरता को बढ़ावा देती हैं और जैविक खाद का उपयोग करके उत्सर्जन को कम करती हैं। 
  • कृषि-पारिस्थितिकी दृष्टिकोण : फसल विविधीकरण एवं अंतर-फसल (Intercropping) जैसे दृष्टिकोण पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन के लिए लाभकारी हैं। 
  • पशुधन प्रबंधन रणनीतियाँ : इसमें चक्रीय चराई, चारा गुणवत्ता का अनुकूलन एवं पशु अपशिष्ट प्रबंधन शामिल हैं। यह मीथेन उत्सर्जन को कम कर सकती है तथा चारागाह भूमि में संगृहीत कार्बन की मात्रा को बढ़ा सकती है।

CARBONEM

कार्बन फार्मिंग के कारक 

  • भौगोलिक स्थिति एवं मृदा का प्रकार
  • फसल का चयन एवं जल उपलब्धता
  • जैव विविधता एवं सामुदायिक सहभागिता
  • खेत का आकार एवं पैमाना
  • भूमि प्रबंधन प्रथा पर्याप्त नीति समर्थन 

कार्बन फार्मिंग के समक्ष चुनौतियाँ

  • गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों में जल की उपलब्धता सीमित होने से पौधों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
    • इससे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पृथक्करण की क्षमता सीमित हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए, कवर क्रॉपिंग जैसी प्रथाएं पानी की अतिरिक्त मांग के कारण व्यवहार्य सिद्ध नहीं हो रहीं हैं। कवर क्रॉपिंग में मुख्य फसल चक्रों के बीच की अवधि में अतिरिक्त फसलों को उगाना शामिल है। 
  • पौधों का सही चयन भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी प्रजातियाँ समान मात्रा में प्रभावी तरीके से कार्बन को ट्रैप एवं संगृहीत नहीं करती हैं। 
    • तेजी से वृद्धि करने वाले वृक्ष और गहरी जड़ वाली बारहमासी घासें इसके लिए बेहतर हैं किंतु ऐसे पौधे शुष्क वातावरण के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
  • कार्बन कृषि पद्धतियों को अपनाने वाले किसानों को लागत कम करने के लिए वित्तीय सहायता की आवश्यकता होती है।
    • भारत जैसे विकासशील देशों में छोटे स्तर के किसानों के पास स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं व पर्यावरण सेवाओं में निवेश के लिए संसाधनों की कमी हो सकती है। 

विश्व में कार्बन फार्मिंग योजनाएं 

  • कृषि क्षेत्र में कार्बन ट्रेडिंग : अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व कनाडा में स्वैच्छिक कार्बन बाजार उभरे हैं। 
  • शिकागो क्लाइमेट एक्सचेंज और ऑस्ट्रेलिया में कार्बन फार्मिंग इनिशिएटिव : यह पहल कृषि में कार्बन शमन गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के प्रयासों को प्रदर्शित करती हैं। इन प्रक्रियाओं में जुताई रहित खेती (जुताई किए बिना फसल उगाना) से लेकर पुनर्वनीकरण एवं प्रदूषण में कमी शामिल हैं।
  • केन्या की कृषि कार्बन परियोजना : इसे विश्व बैंक का समर्थन प्राप्त है। ऐसी परियोजना विकासशील देशों में जलवायु शमन व अनुकूलन के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए कार्बन फार्मिंग की क्षमता को भी उजागर करती है।
  • '4 प्रति 1000' : पेरिस में वर्ष 2015 में COP21 जलवायु वार्ता के दौरान इस पहल की शुरुआत ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन को कम करने में कार्बन सिंक की विशेष भूमिका पर प्रकाश डालती है। 
  • चूँकि महासागर एवं वायुमंडल कार्बन संतृप्ति बिंदु के निकट पहुँच रहे हैं अत: 390 अरब टन के शेष कार्बन बजट का प्रबंधन करना चाहिए।

भारत में अवसर

  • भारत में जमीनी स्तर की पहल एवं अग्रणी कृषि अनुसंधान कार्बन पृथक्करण के लिए जैविक खेती की व्यवहार्यता को अपना रहे हैं। 
  • भारत में कृषि-पारिस्थितिकी प्रथाओं से आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है जिसमें लगभग 170 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि से 63 बिलियन डॉलर का मूल्य उत्पन्न होने की संभावना है। 
    • इस अनुमान में किसानों को सतत कृषि पद्धतियों को अपनाकर जलवायु सेवाएं प्रदान करने के लिए प्रति एकड़ लगभग 5,000-6,000 का वार्षिक भुगतान शामिल है।
  • सिंधु-गंगा के मैदान एवं दक्कन के पठार जैसे व्यापक कृषि भूमि वाले क्षेत्र कार्बन फार्मिंग को अपनाने के लिए उपयुक्त हैं, जबकि हिमालय क्षेत्र के पहाड़ी इलाके ऐसे नहीं हैं। 
    • तटीय क्षेत्रों में लवणीकरण की संभावना अधिक होती है और संसाधनों तक सीमित पहुंच होती है, जिससे पारंपरिक कृषि पद्धतियां सीमित हो जाती हैं।
  • कार्बन क्रेडिट प्रणालियाँ पर्यावरणीय सेवाओं के माध्यम से अतिरिक्त आय प्रदान करके किसानों को प्रोत्साहित कर सकती हैं। 
    • अध्ययनों के अनुसार, कृषि मृदा 20-30 वर्षों तक प्रतिवर्ष 3 से 8 बिलियन टन CO2-समतुल्य (CO2-equivalent) को अवशोषित कर सकती है। 
    • यह क्षमता व्यवहार्य उत्सर्जन कटौती एवं जलवायु के अपरिहार्य स्थिरीकरण के बीच अंतर को समाप्त कर सकती है। 

निष्कर्ष

भारत में जलवायु परिवर्तन को कम करने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए कार्बन फार्मिंग एक टिकाऊ रणनीति हो सकती है। इसमें वृद्धि के लिए जागरूकता प्रसार, व्यापक नीति समर्थन, तकनीकी सहायता सहित अन्य चुनौतियों का समाधान आवश्यक है।

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