(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन सम्बंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
चर्चा में क्यों?
चीन ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2060 से पहले कार्बन डाऑक्साइड को ऑफसेट करने के उपायों के साथ अपने कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करेगा।
पृष्ठभूमि
चीन विश्व का सबसे बड़ा CO2 उत्सर्जक देश है। चीन द्वारा इस घोषणा के साथ दूसरे और तीसरे सबसे बड़े CO2 उत्सर्जक देशों- अमेरिका और भारत पर विश्व की निगाह टिकी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा भी आयात पर कार्बन लेवी लगाने की यूरोपीय संघ की योजना का समर्थन किया जा रहा है। हरित गृह गैसों, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड प्रमुख है, के उत्सर्जन का आर्थिक और जलवायुवीय प्रभाव काफी व्यापक है।
आर्थिक और जलवायुवीय प्रभाव
- दिल्ली में रिकॉर्ड हीटवेव, दक्षिण-पश्चिम चीन में बाढ़, ऑस्ट्रेलिया में जंगल की आग और इस वर्ष कैलिफोर्निया में जंगल की भयावह आग वैश्विक तापन से होने वाले खतरे के सूचक हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1998 से 2017 के बीच आपदा प्रभावित देशों में प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान $2.9 ट्रिलियन रहा, जिसमें से लगभग 77% की क्षति जलवायु परिवर्तन के कारण हुई।
- अमेरिका के बाद सबसे अधिक नुकसान का सामना चीन, जापान और भारत को करना पड़ा। भारत वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020 में पाँचवें स्थान पर है।
- लॉकडाउन के कारण भारत सहित दुनिया भर में वायु प्रदूषण के स्तर में गिरावट देखी गई है, परंतु प्रदूषणकारी गतिविधियों के फिर से शुरू होने से इसके स्तर में वृद्धि होने की सम्भावना है।
- वैश्विक तापन के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार CO2 की स्थिति पिछले संचयों के कारण अगस्त 2020 में 414 पार्ट्स पर मिलियन (PPM) थी। इसमें से आधी हिस्सेदारी शीर्ष तीन कार्बन उत्सर्जक देशों की है, अत: इन देशों को अकार्बनीकरण की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिये।
बड़े निर्णय और कठोर कार्रवाई की आवश्यकता
- भारत वर्ष 2030 तक बिजली की क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त करने के प्रति कटिबद्ध है। साथ ही इसी समय-सीमा के अंतर्गत जी.डी.पी. से उत्सर्जन के अनुपात को वर्ष 2005 के स्तर से एक-तिहाई कम करने को लेकर भी प्रतिबद्ध है।
- वर्ष 2030 से पहले इस क्षेत्र में कड़ी कार्रवाई देश हित में है, ताकि वर्ष 2050 तक शून्य निवल कार्बन वृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है।
- इसके लिये कुछ बड़ी कम्पनियों द्वारा कार्बन मूल्य निर्धारण (Carbon Pricing) योजना, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये सरकारी प्रोत्साहन और 2020-21 के बजट में पर्यावरण कर जैसे दृष्टिकोण शामिल किये जा सकते हैं।
- कार्बन मूल्य निर्धारण का एक तरीका इमीशन ट्रेडिंग (Emission Trading) है। चीन में कार्बन ट्रेडिंग से सम्बंधित पायलट परियोजनाएँ सफल रहीं हैं।
- इस सम्बंध में यूरोपीय संघ और कुछ अमेरिकी राज्यों के अनुभव महत्त्वपूर्ण रहे हैं। उत्तर-पूर्व अमेरिका में ‘क्षेत्रीय ग्रीनहाउस गैस पहल’ इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- दूसरा तरीका आर्थिक गतिविधियों पर कार्बन टैक्स लगाना है। उदाहरण के लिये, कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर कार्बन टैक्स, जैसा कि कनाडा और स्वीडन में लगाया जाता है।
कार्बन टैरिफ को आरोपित करना
- यूरोपीय संघ द्वारा परिकल्पित कार्बन टैरिफ लगाने के लिये भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को अपने वैश्विक क्रेता एकाधिकार (Monopsony) या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक बड़े खरीदार शक्ति का उपयोग करना चाहिये।
- व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यदि आयात कार्बन उत्सर्जन कारकों पर आधारित रहता है तो केवल घरेलू स्तर पर कार्बन उत्पादन सामग्री को कम करना पर्याप्त कदम नहीं होगा।
- अत: इसके लिये क्रेता एकाधिकार, कूटनीति और वित्तीय क्षमताओं का उपयोग करना चाहिये।
इन पहलों से लाभ
- कनाडा में CO2 उत्सर्जन पर कार्बन टैक्स को $20 प्रति टन से $50 प्रति टन तक बढ़ा दिया गया, जिससे वर्ष 2022 तक 80 से 90 मिलियन टन के बीच ग्रीनहाउस गैस प्रदूषण के कम होने का अनुमान है।
- कार्बन मूल्य निर्धारण से बड़ा राजकोषीय लाभ हो सकता है। भारत में CO2 उत्सर्जन पर यदि $35 प्रति टन की दर से कार्बन टैक्स लगाया जाता है, तो वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2% हिस्सा इससे प्राप्त हो सकता है।
- राजस्व अर्जित करते हुए प्रदूषक अपशिष्टों को कम करने का एक तरीका घरेलू उत्पादन और आयातित वस्तुओं की कार्बन प्राइसिंग है।
- कार्बन मूल्य निर्धारण (Carbon Pricing) कार्बन उत्सर्जन को कम करने का एक दृष्टिकोण है, जो उत्सर्जन लागत को उत्सर्जकों पर डालने के लिये बाज़ार तंत्र का उपयोग करता है।
- इससे कार्बन डाइऑक्साइड-उत्सर्जक जीवाश्म ईंधन का उपयोग हतोत्साहित होता है, जलवायु परिवर्तन के कारणों का निदान होता है। साथ ही यह राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों को भी पूरा करता है।
आगे की राह
- भारत उन देशों में शामिल है जो जलवायु प्रभावों से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। जलवायु कार्रवाई के लिये सार्वजनिक समर्थन तो मिल रहा है लेकिन साथ ही ऐसे समाधानों की आवश्यकता है, जो भारत के हित में हों।
- इस संदर्भ में भारत जलवायु परिवर्तन के मुख्य स्रोतों, जैसे- अत्यधिक कार्बन-युक्त ईंधन (कोयला आदि) पर कर लगाने और अन्य उपायों को अपनाकर विकासशील विश्व के अग्रणी देशों में शुमार हो सकता है।
- घरेलू रूप से कार्बन कर और व्यापार के लिये एक बाज़ार-उन्मुख दृष्टिकोण तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व कूटनीति के माध्यम से अन्य देशों द्वारा इसी तरह की कार्रवाई को प्रेरित करना आगे के लिये एक रास्ता प्रदान कर सकता है।
प्री फैक्ट :
- चीन ने वर्ष 2060 से पहले अपने कार्बन उत्सर्जन को संतुलित करने की घोषणा की है। चीन सबसे बड़ा CO2 उत्सर्जक देश है।
- जलवायु परिवर्तन जनित नुकसान का सबसे अधिक सामना अमेरिका, चीन, जापान और भारत को करना पड़ा। भारत वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2020 में पाँचवें स्थान पर है।
- भारत वर्ष 2030 तक बिजली की क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधनों से प्राप्त करने के साथ-साथ इसी समय-सीमा के अंतर्गत जी.डी.पी. से उत्सर्जन के अनुपात को वर्ष 2005 के स्तर से एक-तिहाई कम करने को लेकर भी प्रतिबद्ध है।
- कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग पर कनाडा और स्वीडन में कार्बन टैक्स लगाया जाता है।
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