संदर्भ
अप्रैल 2024 में अनाज का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक अप्रैल 2023 की तुलना में 8.63% अधिक था। जबकि इसी दौरान दालों में वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति 16.84% दर्ज की गई। यह अनाज की तुलना में लगभग दोगुना है, जिससे घरों पर अधिक असर पड़ा क्योंकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से दालों का सार्वभौमिक वितरण नहीं किया जाता है।
भारत में दलहन उत्पादन
- भारत दुनिया में सबसे बड़ा दाल उत्पादक देश है, यहाँ 35 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में दालों की खेती होती है।
- भारत क्षेत्रफल एवं उत्पादन में क्रमशः 37 प्रतिशत एवं 29 प्रतिशत के साथ विश्व में प्रथम स्थान पर है।
- 2021-22 के दौरान हमारी उत्पादकता 932 किग्रा/हेक्टेयर रही, पिछले 05 वर्षों में इसमें भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- 2022-23 के दौरान देश में 26.06 मिलियन टन दालों का उत्पादन हुआ।
- दलहन के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत और कुल वैश्विक खपत का 27 प्रतिशत के साथ भारत दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- दालों की कमी (Pulses Price) को पूरा करने के लिए 2023-24 में प्रमुख दालों का आयात कुल 4.54 मिलियन टन था, जो पिछले दो वित्तीय वर्षों में 2.37 मिलियन टन और 2.52 मिलियन टन था।
- 2022 तक भारत का दलहन उत्पादन 50% (18 मिलियन टन से 27 मिलियन टन) बढ़ गया है।
- हालाँकि, जनसंख्या वृद्धि के अनुरूप उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है, दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1951 में 22.1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति से घटकर 2022 में 16.4 किलोग्राम प्रति व्यक्ति हो गई है।
- यद्यपि भारत चना और कई अन्य दलहन फसलों में आत्मनिर्भर हो गया है, केवल अरहर (Tur) और उड़द (Urad) में की मांग को पूरा करने के लिए भारत आयात पर निर्भर है।
दाल की कीमतें बढ़ने के कारण
- अल नीनो का प्रभाव : कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, इसका मुख्य कारण अल नीनो के कारण खराब मानसून और सर्दियों की बारिश है।
- इसके कारण घरेलू दलहन उत्पादन 2021-22 में 27.30 मिलियन टन और 2022-23 में 26.06 मिलियन टन से घटकर 2023-24 में 23.44 मिलियन टन रहने का अनुमान है।
- उत्पादन में तीव्र गिरावट : सबसे अधिक मुद्रास्फीति दर्ज करने वाली दो दालों के उत्पादन में लगातार गिरावट देखी जा रही है:
- चना का उत्पादन 2021-22 से 2023-24 में 13.54 मिलियन टन से घटकर 12.16 मिलियन टन रहने का अनुमान है।
- वहीँ अरहर/तूर का उत्पादन 4.22 मिलियन टन से घटकर 3.34 मिलियन टन तक हो सकता है।
- अनियमित वर्षा का प्रभाव : कम वर्षा और कम बुआई क्षेत्र के कारण कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में खराब फसल के कारण आपूर्ति सीमित हो गई और कीमतें ऊंची हो गईं।
दालों की कीमत बढ़ने के निहितार्थ
- दलहन आयात में वृद्धि : 2023-24 में भारत का दलहन आयात 3.75 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो 2015-16 और 2016-17 के रिकॉर्ड स्तर, कुल 4.54 मिलियन टन के बाद से सबसे अधिक है।
- घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात में वृद्धि से विदेशी दालों पर खर्च बढ़ गया है।
- आत्मनिर्भरता का उलटफेर : 2015-16 से 2021-22 के दौरान दलहन का घरेलू उत्पादन 16.32 मिलियन टन से बढ़कर 27.30 मिलियन टन हो गया था।
- लेकिन दालों के उत्पादन में देश के अधिक आत्मनिर्भर होने के बाद एक बार फिर आयात बढ़ रहा है।
- सस्ते विकल्पों का बढ़ता आयात : घरेलू खपत और रेस्तरां मेनू में छोले और अरहर जैसी महंगी दालों की जगह लेने के लिए कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और रूस से पीले/सफेद मटर जैसे सस्ते विकल्पों का आयात और बढ़ने की संभावना है।
- ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से मसूर का आयात 2023-24 में रिकॉर्ड 1.7 मिलियन टन तक पहुंच गया, जबकि पीली/सफेद मटर का आयात लगभग शून्य से बढ़कर 1.2 मिलियन टन हो गया।
- आर्थिक बोझ में वृद्धि : विशेष रूप से अरहर/तूर और चना जैसी दालों के लिए महत्वपूर्ण वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति घरेलू बजट पर दबाव डालती है।
- कम आय वाले परिवारों के लिए यह आर्थिक बोझ बढ़ने का कारण हो सकता है।
खाद्य मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए सरकार की नीति
- सरकार ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए दालों के आयात पर टैरिफ और मात्रात्मक प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया है।
- वर्ष 2021 में ही सरकार ने अरहर और मूंग के आयात से 10 प्रतिशत के सीमा शुल्क के साथ मात्रात्मक सीमा को समाप्त कर दिया था।
- इस साल 3 मई को देसी (छोटे आकार के) चने पर 60% आयात शुल्क खत्म कर दिया गया।
- इससे पहले दिसंबर 2023 में पीली/सफ़ेद मटर का आयात से सभी मात्रात्मक और टैरिफ बाधाएं हटा ली गई थीं।
- भारत सरकार ने दालों के आयात के लिए विदेशों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं।
- एक समझौते के तहत 2021 से 2025 तक मोजाम्बिक से प्रति वर्ष 2 लाख टन अरहर का आयात करेगा।
- इसके अलावा 2025 तक मलावी से प्रति वर्ष 50,000 टन अरहर और 2025 तक म्यांमार से प्रति वर्ष 100,000 टन अरहर का आयात करेगा।
भविष्य की संभावनाएँ
भविष्य की कीमतें काफी हद तक आगामी दक्षिण पश्चिम मानसून पर निर्भर करती हैं; निरंतर अनियमित मौसम पैटर्न उच्च मुद्रास्फीति को बनाए रख सकता है। हालाँकि, सरकार ने पहले ही 31 मार्च, 2025 तक अरहर, उड़द दाल, लाल मसूर और देसी चने जैसी प्रमुख दालों के शुल्क-मुक्त आयात की अनुमति दे दी है।