(प्रारंभिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 2 और 3 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय, रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
‘विश्व युवा कौशल दिवस’ के अवसर पर प्रधानमंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये एक कुशल कार्यबल के महत्त्व को पुनः रेखांकित किया है।
कुशल कार्यबल की कमी
- अधिकांश अनुमानों के अनुसार, भारत एक ऐसा देश है जो ‘कुशल कार्यबल’ (Skilled Workforce) की सबसे अधिक कमी का सामना कर रहा है।
- दूसरा पक्ष, भारत में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी है जो शिक्षा प्राप्ति के साथ और बिगड़ती है।
- सी.एम.आई.ई. (Centre for Monitoring Indian Economy) के जनवरी से अप्रैल 2021 की अवधि के आँकड़ों के अनुसार, देश में कुल बेरोज़गारी दर 6.83 प्रतिशत थी। इसकी तुलना में स्नातक (या इससे भी अधिक डिग्री) वाले लोग उक्त स्तर से लगभग तीन गुना अधिक बेरोज़गारी का सामना कर रहे हैं।
- 19 प्रतिशत से अधिक बेरोज़गारी दर के साथ हर पाँच स्नातक (या इससे भी बेहतर) भारतीय में से एक बेरोज़गार है।
- यह लगभग वैसा ही है जैसे कि अर्थव्यवस्था आपको शिक्षित होने के लिये दंडित करती है।
- एक ओर, भारत में कंपनियाँ कुशल कार्यबल की भारी कमी का सामना कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर, भारत में लाखों शिक्षित बेरोज़गार हैं।
कौशल का अभिप्राय
- भारत के समक्ष आने वाली कौशल चुनौती को समझने से पूर्व यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि ‘कौशल’ से क्या अभिप्राय है।
- ‘नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च, 2018’ (NCAER) की रिपोर्ट ‘नो टाइम टू लूज़’ के अनुसार कौशल तीन प्रकार का होता है। पहला, संज्ञानात्मक कौशल (Cognitive Skills), जो साक्षरता और संख्यात्मकता का बुनियादी कौशल है। इसमें व्यावहारिक ज्ञान, समस्या को सुलझाने की योग्यता तथा उच्च संज्ञानात्मक कौशल जैसे प्रयोग, तर्क एवं रचनात्मकता शामिल है। दूसरा, तकनीकी और व्यावसायिक कौशल, जो किसी भी व्यवसाय में उपकरणों और विधियों का उपयोग करके विशिष्ट कार्यों को करने की शारीरिक एवं मानसिक क्षमता को संदर्भित करता है। तीसरा, सामाजिक और व्यवहारिक कौशल, जिसमें कार्य करना, संवाद करना तथा दूसरों को सुनना शामिल है।
- उक्त तीन प्रकार के कौशल को विभिन्न स्तरों से अंतर्संबंधित किया जा सकता है ताकि कौशल को आधारभूत, रोज़गार योग्यता तथा उद्यमशील कौशल में वर्गीकृत किया जा सके।
कौशल चुनौती का पैमाना
- एन.सी.ए.ई.आर. 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत का कुल कार्यबल लगभग 468 मिलियन है। इसमें से लगभग 92% अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न हैं।
- इनमें लगभग 31% निरक्षर, 13% ने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त तथा केवल 6% स्नातक हैं।
- इसके अतिरिक्त, केवल 2 प्रतिशत कार्यबल के पास औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा केवल 9 प्रतिशत के पास गैर-औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण है।
- उक्त रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2022 तक प्रत्येक माह भारत के कार्यबल में लगभग 1.25 मिलियन नए श्रमिक (15-29 आयु वर्ग के) शामिल होंगे।
- रिपोर्ट में एक और उल्लेखनीय अवलोकन यह था कि 18-29 आयु वर्ग के 5 लाख से अधिक स्नातकों का सर्वेक्षण किया गया था, जिनमें से लगभग 54% बेरोज़गार पाए गए थे।
जनसांख्यिकीय लाभांश
- यदि कौशल की समस्या का समाधान नहीं किया जाता है, तो भारत अपने ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ लाभ नहीं उठा पाएगा।
- भारत की कार्यशील आबादी वृद्ध आश्रितों की आबादी की तुलना में तेज़ी से बढ़ रही है। यदि श्रम उत्पादक को बढ़ाना है, तो भारत के लिये अपने सामाजिक और आर्थिक दोनों परिणामों में सुधार करने का एक बड़ा अवसर है।
- वर्ष 2020 में, उन भारतीयों का अनुपात जो कार्यशील आयु वर्ग (15 से 64 वर्ष की आयु) के हैं और जो आश्रित हैं, उनका अनुपात 50-50 होगा। वर्ष 2020 से 2040 के मध्य यह अनुपात और भी अनुकूल हो जाएगा।
- हालाँकि, यह जनसांख्यिकीय लाभांश में परिवर्तित होगा या नहीं, यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगा कि कार्यशील आयु-वर्ग के कितने लोग काम कर रहे हैं और समृद्ध हो रहे हैं।
- यदि वे अच्छे वेतन वाली नौकरियों में नहीं हैं, तो अर्थव्यवस्था के पास खुद की देखभाल करने के लिये संसाधन नहीं होंगे क्योंकि प्रत्येक व्यतीत वर्ष के साथ, आश्रितों का अनुपात वर्ष 2040 के बाद भी बढ़ता रहेगा।
निम्न-स्तरीय कौशल के कारण
- समस्या का एक बड़ा भाग प्रारंभिक स्थिति है क्योंकि भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्रक में संलग्न है।
- एन.सी.ए.ई.आर. के शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत एक दुष्चक्र में फँस गया है; अधिक से अधिक कार्यबल की अनौपचारिकता नए कौशल हासिल करने के लिये कम प्रोत्साहन की ओर ले जाती है।
- अपर्याप्त कुशल श्रमिकों का सामना करते हुए, व्यवसाय अक्सर श्रम को मशीनीकरण में बदलने का चयन करते हैं।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि ‘कुशल श्रम और प्रौद्योगिकी पूरक हैं, लेकिन अकुशल श्रम और प्रौद्योगिकी विकल्प हैं’।
- लाखों भारतीय, जो कृषि क्षेत्रक में संलग्न हैं, वे जीवन-निर्वाह जारी रखते हैं क्योंकि उनके पास औद्योगिक या सेवा क्षेत्रक की नौकरियों के लिये पर्याप्त कौशल नहीं है, भले ही ये क्षेत्रक स्वयं पर्याप्त रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने में विफल रहे हों।
भावी राह
- कौशल के प्रति भारतीय दृष्टिकोण बाज़ार की माँगों की अनदेखी करना रहा है। अधिकांश के लिये कौशल को ‘टॉप-डाउन फैशन’ के रूप में प्रदान किया जा रहा है।
- इस प्रकार, अधिकांश कौशल प्रयास लगभग पूरी तरह से कुछ कौशल प्रदान करने पर केंद्रित होते हैं, लेकिन वे बाज़ार की ज़रूरतों के साथ ‘मैच’ करने में विफल होते हैं।
- जिस तरह से बाज़ार की माँग में उतार-चढ़ाव होता है (उदाहरणार्थ, किस तरह कोविड महामारी ने आपूर्ति शृंखलाओं को आगे बढ़ाया है) कौशल के प्रयासों को बाज़ार की ज़रूरतों का अनुमान लगाने का प्रयास करना चाहिये।