(प्रारंभिक परीक्षा- आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : सरकारी बजट)
संदर्भ
वित्त वर्ष 2020-21 भारत के लिये स्वास्थ्य, सुरक्षा और आर्थिक दृष्टिकोण से बहुत शुभ नहीं रहा है। आर्थिक सुधार और संवृद्धि को लेकर इस बजट से बहुत उम्मीदें हैं।
कोविड-19 और भारत
- आर्थिक आँकड़े और वास्तविकता- कोविड-19 के प्रभाव को केवल सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.), स्टॉक मार्केट इंडेक्स, औद्योगिक गतिविधि सूचकांकों या ऐसे अन्य प्रमुख आर्थिक आँकड़ों के माध्यम से नहीं समझा जा सकता है। गौरतलब है कि जब करोड़ों भारतीय नौकरियाँ खोने और मनरेगा के तहत मजदूरी पाने के लिये संघर्षरत थे, तब भी शेयर बाजार रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया था।
- गहरी क्षति- कोविड-19 ने जीवन और आय के अतिरिक्त सामाजिक ताने-बाने को भी क्षति पहुँचाई है। इसने गरीबों और अमीरों के बीच असमानता में वृद्धि कर दी है और यदि इसे अविलंब हल नहीं किया गया तो यह एक स्थाई समस्या बन जाएगी।
योजना का आभाव
- योजनाबद्ध लॉकडाउन- भारत में बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों की उपस्थिति और अनौपचारिक कार्यबल की अद्वितीय स्थितियों के कारण योजनाबद्ध लॉकडाउन श्रम बाजार में गहरे संकट को कम कर सकती थी।
- अपर्याप्त उपाय- उत्तरदायी और उदार राजकोषीय सहायता पैकेज से लाखों परिवारों को लाभ पहुँचा है। साथ ही, पर्याप्त तरलता बनाये रखने के लिये भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रशंसनीय कार्य किया। हालाँकि, ये उपाय अपर्याप्त थे और निर्वाह मजदूरी पर मनरेगा कार्य की निरंतर उच्च माँग इसका स्पष्ट संकेत है कि आर्थिक सुधार नहीं हो रहा है।
- मनरेगा और आर्थिक सुधार- लगभग 120 मिलियन लोगों ने इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा के तहत कार्य की माँग की है, जो इसके इतिहास में सर्वाधिक है। वर्ष 2020-21 में मनरेगा के तहत कुल काम की माँग पिछले वर्ष की तुलना में 53% अधिक है। लगभग 35 मिलियन लोगों ने दिसंबर और जनवरी में मनरेगा के तहत कार्य की माँग की है, जो पिछले छह महीनों में सर्वाधिक है। यह स्थिति पिछले कुछ महीनों में आर्थिक सुधार के बारे में आशावाद को निरर्थक साबित करता है।
- तरलता- भारत के शेयर बाजार के सूचकांक अब तक के उच्चतम स्तर पर हैं। शीर्ष 50 कंपनियों ने इस दौरान अपनी बाजार संपत्ति में लगभग ₹3,00,000 करोड़ ($40 बिलियन) की वृद्धि की। शेयर बाजारों में तेजी का लाभ अधिकांश भारतीयों तक न पहुँच कर केवल कुछ ही लोगों तक पहुँचा है। ऐसा लगता है कि केंद्रीय बैंक द्वारा अतिरिक्त तरलता का लाभ भारत के शेयर बाजारों सहित परिसंपत्ति बाजारों को अधिक हुआ है।
- उपायों का लाभ- आर्थिक उपायों ने अनजाने में ही अधिकांश देशों को अमीर और गरीबों के बीच आर्थिक असमानता के सबसे खराब दौर में पहुँचा दिया है। ऐसा लगता है कि आपूर्ति पक्ष के अधिकांश उपाय, जैसे कि निगम कर में कटौती, ऋण अधिस्थगन और गारंटीकृत क्रेडिट योजनाओं से कॉरपोरेट्स को लाभ बढ़ाने और ऋण को कम करने में मदद मिली है। इसका उपयोग शायद ही नया निवेश करने या रोजगार व मजदूरी में वृद्धि करने के लिये किया गया हो।
आशंका और कमजोरियाँ
- कठोर मौद्रिक नीति- परिसंपत्तियों की बढ़ती कीमतों और आपूर्ति में आने वाली समस्याओं से भी उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति में वृद्धि हुई है। बढ़ती महँगाई आर.बी.आई. को ब्याज दरों को बढ़ाने के लिये मजबूर करेगा। एक कठोर मौद्रिक नीति नौकरियों और मजदूरी में कमी के परिणामी प्रभाव के साथ निजी निवेश की गति को कम करने का जोखिम पैदा करती है।
- वैश्विक व्यापार- बाह्य क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक संभावित उद्धारक हो सकता है क्योंकि वैश्विक व्यापार में कोविड-19 के उपरांत निम्नतम स्तर पर पहुँचने के बाद वृद्धि हो रही है। हालाँकि, सरकार ने अपनी व्यापार नीति को अचानक बदलकर आयात प्रतिस्थापन, मात्रात्मक प्रतिबंध, गैर-टैरिफ बाधाओं और व्यापार गठबंधनों से किनारा करके स्वयं पैर में कुल्हाड़ी मार ली है।
- बेरोजगारी- पिछले तीन दशकों में श्रम गहन निर्यात में वृद्धि भारतीयों के लिये नौकरियों और मजदूरी में वृद्धि का प्रमुख चालक रहा है। निर्यात में मंदी और दो-तरफा बाह्य व्यापार के प्रति अरुचि से कई भारतीयों की आजीविका को नुकसान होगा। कोविड-19 से निपटने के लिये एक बुनियादी न्यूनतम आय सुरक्षा जाल की कमी ने लाखों परिवारों को गरीबी में धकेल दिया है। अनौपचारिक क्षेत्र के साथ-साथ औपचारिक क्षेत्र में भी बेरोजगारी बहुत अधिक है।
प्रमुख मुद्दे
- आर्थिक योजना- असमान आर्थिक रिकवरी, व्यापार नीति में अस्पष्टता और खराब वित्तीय स्थिति की वास्तविकता को देखते हुए सरकार को आगामी वित्तीय वर्षों के लिये अपनी आर्थिक योजना का अनावरण करना चाहिये।
- स्वास्थ्य- इस महामारी ने भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे में कई प्रकार की खामियों को उजागर किया हैअत: स्वास्थ्य देखभाल खर्च में वृद्धि करने और स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे को बेहतर बनाना सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के बजट को वर्तमान के ₹70,000 करोड़ (2020-21 में कुल व्यय का 2%) से बढ़ाकर कम से कम ₹1,00,000 करोड़ करना चाहिये।
- सीमा सुरक्षा- वर्ष 2020 में भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में नई चुनौतियाँ उत्पन्न हुईं हैं। भारत को तुरंत अपनी रक्षा तैयारियों को बढ़ाने की आवश्यकता है। जी.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में भारत का रक्षा खर्च कम हो रहा है। सरकार को अगले वर्ष रक्षा व्यय को सांकेतिक जी.डी.पी. के 6% के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 3% तक करने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक निवेश- इस बात की अधिक आशा नहीं है कि बैंकर ऋण देने और कर्जदार या ऋणधारक (विशेष रूप से कॉर्पोरेट्स) नए निवेश करने के लिये तैयार हैं। बढ़ती ब्याज दर का माहौल, गैर-निष्पादित ऋण में वृद्धि और उपभोग व माँग में कमी के कारण निजी क्षेत्र में निवेश का भी आश्वासन नहीं दिया जा सकता है। अत: सार्वजनिक निवेश पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। यह आर्थिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ रोजगार सृजन और माँग में वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकता है, जो आज देश की दो सबसे प्रमुख जरूरतें हैं।
- पूँजीगत व्यय- केंद्र सरकार के पूँजीगत व्यय को वित्त वर्ष 2020-21 में कुल व्यय के 14% से बढाकर कम-से-कम 20 से 25% तक किया जाना चाहिये।
बुनियादी आय सुरक्षा जाल
- मासिक नकद हस्तांतरण- सरकार द्वारा सार्वजनिक निवेश में की गई कोई भी वृद्धि रोजगार सृजन करने और आय में वृद्धि में समय लेगी। इसलिये आगामी कुछ महीनों के लिये भारत के कई परिवारों के लिये बुनियादी आय सुरक्षा जाल की तत्काल आवश्यकता है। आबादी के जरूरतमंद वर्गों को बिना शर्त मासिक नकद हस्तांतरण उनकी समस्याओं को तेजी से दूर करने का सबसे कारगर तरीका साबित हो सकता है।
- दृष्टिकोण में बदलाव- इस बार पेश किये जाने वाले बजट के मूल्यांकन के लिये अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है। राजकोषीय घाटा और अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग का खतरा वर्तमान स्थिति में भारत की आर्थिक नीति को निर्धारित नहीं कर सकता है।
आगे की राह
अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति का आकलन करते हुए तात्कालिक भविष्य के लिये आवश्यक कार्रवाई का मूल्यांकन करना चाहिये। हालाँकि, सरकार की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है। फिर भी अभूतपूर्व संकट के समय राजस्व में गिरावट के बावजूद सरकार द्वारा खर्च में कटौती न करने का निर्णय सही है। भारत का राजकोषीय घाटा बढ़ने की उम्मीद है, जिसके लिये मुद्रास्फीति और भविष्य की उधारी के प्रति सुनियोजित प्रतिक्रिया आवश्यक है।