(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: आपदा और आपदा प्रबंधन)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, असम तथा अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में बाढ़ से जान-माल की भारी क्षति हुई है, जोकि इस क्षेत्र की हर वर्ष की समस्या है। हालाँकि, बाढ़ उत्तर-पूर्वी भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह देश के कई अन्य क्षेत्रों को भी व्यापक स्तर पर प्रभावित करती है, जिससे विशेषकर मानसून में बाढ़ जैसी आपदा के उचित प्रबंधन का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
पृष्ठभूमि
- भारत में हर वर्ष बाढ़ व्यापक स्तर पर जन-जीवन एवं सम्पत्ति को क्षति पहुँचाती है। अतः यह समय की मांग है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक दीर्घकालिक योजना तैयार करें जो बाढ़ नियंत्रण हेतु तटबंधों के निर्माण तथा निकर्षण जैसे उपायों के अलावा अन्य महत्त्वपूर्ण समस्याओं का भी समाधान कर सके।
- बाढ़ नियंत्रण पर भारत के पहले और अंतिम आयोग के गठन के 43 वर्ष बाद भी देश में राष्ट्रीय स्तर का कोई बाढ़ नियंत्रण प्राधिकरण नहीं है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के तहत वर्ष 1954 में शुरू की गई परियोजनाओं की असफलता के पश्चात् भारत में बाढ़ नियंत्रण के उपायों का अध्ययन करने के लिये वर्ष 1976 में कृषि एवं सिंचाई मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय बाढ़ आयोग (National Flood Commission) की स्थापना की गई थी।
देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ के कारण
- मानसून के दौरान प्राकृतिक कारणों (जैसे लगातार और भारी बारिश) के अलावा बाढ़ के मानवजनित कारण भी हैं, जो बाढ़ की आवृत्ति व तीव्रता बढ़ाने में योगदान करते हैं।
- भारत, बाढ़ की दृष्टि से अत्यधिक सम्वेदनशील है। इसके अधिकांश भौगोलिक क्षेत्र में बाढ़ की सम्भावना बनी रहती है।
- वर्ष 1980 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने 207 अनुशंसाओं के साथ चार व्यापक अवलोकन किये:
i. पहले अवलोकन में कहा गया कि यद्यपि भारत में वर्षा की मात्रा में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई है,बल्कि बाढ़ में वृद्धि के कारण मानवजनित हैं, जैसे-वनों की कटाई, जल निकासी का अनुचित प्रबंधन तथा अनियोजित विकास कार्य इत्यादि।
ii. दूसरे अवलोकन में बाढ़ को नियंत्रित करने वाले तौर-तरीकों जैसे, तटबंधों एवं जलाशयों की प्रभावशीलता पर प्रश्नचिन्ह उठाया गया है तथा साथ में सुझाव भी दिया गया है कि इन संरचनाओं के निर्माण पर तब तक रोक लगनी चाहिये जब तक इनकी प्रभावशीलता का आकलन नहीं किया जाता।
iii. तीसरे अवलोकन में कहा गया है कि बाढ़ को नियंत्रित करने हेतु अनुसंधान एवं नीतिगत पहल के लिये केंद्र तथा राज्यों द्वारा मिलकर कार्य किये जाने की आवश्यकता है।
iv. चौथे अवलोकन में बाढ़ की बदलती प्रकृति से निपटने के लिये एक गतिशील रणनीति की सिफारिश की गई है तथा यह भी कहा गया कि आपदा प्रबंधन के पर्याप्त उपाय न होने की समस्या बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के अनुचित आकलन से शुरू हुई है।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग द्वारा अनुमान लगाया गया कि वर्ष 1980 में बाढ़ की चपेट में आने वाला कुल क्षेत्र लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर था, लेकिन इसके आकलन की कार्य प्रणाली त्रुटिपूर्ण थी जिसे राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने स्वयं ही स्वीकार किया था।
- उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त बाढ़ प्रभावित क्षेत्र की परिभाषा के तहत किये गए बाढ़ प्रबंधन कार्य भी संतोषजनक नहीं है।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट बाढ़ प्रबंधन परियोजनाओं के समय पर मूल्यांकन की आवश्यकता पर विशेष रूप से बल देती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाढ़ प्रबंधन परियोजनाओं की मूल्यांकन रिपोर्ट विश्वसनीय नहीं होती है। साथ ही, मूल्यांकन रिपोर्ट की सिफारिशों पर निष्क्रियता भी एक बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिये, वर्ष 1978 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने पूर्ववर्ती योजना आयोग के कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन से कोसी तटबंधों की समीक्षा के सम्बंध में पूछा था। वर्ष 1979 में इस अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया कि तटबंधों ने वास्तव में समस्या को बढ़ाया है, लेकिन इसके बावजूद वर्ष 1987-88 में तटबंधों की ऊँचाई सिर्फ दो मीटर तक ही बढाई गई, जिससे बिहार में बाढ़ की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही।
एकीकृत बाढ़ प्रबंधन की दिशा में पहल
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की वर्ष 2017 की “बाढ़ नियंत्रण और बाढ़ पूर्वानुमान के लिये योजनाएँ” नामक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बाढ़ प्रबंधन से सम्बंधित निम्नलिखित मुद्दे हैं:
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की प्रमुख सिफारिशों, जैसे बाढ़ प्रवण क्षेत्रों का वैज्ञानिक मूल्यांकन और फ्लड प्लेन ज़ोनिंग एक्ट का लागू न किया जाना।
- केंद्रीय जल आयोग के पास बाढ़ पूर्वानुमान के लिये देशव्यापी नेटवर्क का अभाव है। इसके अलावा, अधिकांश बाढ़ पूर्वानुमान स्टेशन चालू नहीं हैं।
- वर्ष 2006 में केंद्रीय जल आयोग द्वारा गठित एक टास्क फोर्स ने अभी तक बाढ़ जोखिम मानचित्रण का कार्य भी पूरा नहीं किया।
- केंद्र सरकार की सहायता की कमी के चलते बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रमों के तहत परियोजनाओं को पूरा करने में विलम्ब हो रहा है,ऐसे में बाढ़ प्रबंधन कार्यों को एकीकृत तरीके से नहीं किया जाता है।
- भारत के अधिकांश बड़े बांधों में आपदा प्रबंधन की योजना नहीं है। देश के कुल बड़े बांधों में केवल 7% में आपातकालीन कार्य-योजना या आपदा प्रबंधन योजना है।
भारत के जलाशय और मानसून
- भारत में जलाशयों की संरचनात्मक स्थिति पहले से कमज़ोर है। देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून में वृद्धि होने से जलाशयों के भंडारण स्तर में पहले की तुलना में काफी वृद्धि हुई है। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा में जलाशय अपने सामान्य भंडारण स्तर से अधिक पर पहुँच चुके हैं, अगर इनका उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो बाढ़ का खतरा बढ़ने की सम्भावना है।
- केंद्रीय जल आयोग ने एक सर्वे में बताया कि अधिकांश नदी घाटियों में सामान्य से अधिक जल भंडारण मौजूद है। उदाहरण के लिये, गंगा, नर्मदा, साबरमती, तापी, महानदी और गोदावरी का जल भंडारण पिछले 10 वर्षों के औसत स्तर से 100 प्रतिशत अधिक है।
बाढ़ प्रबंधन और नियंत्रण हेतु सुझाव
- पारम्परिक नवीनतम तकनीकों की बजाय एक विस्तृत श्रृंखला का उपयोग करके प्रारम्भिक चेतावनी प्रणाली की सहायता से बाढ़ की चेतावनी का देशव्यापी प्रसार किया जाना चाहिये।
- शहरी जल निकासी प्रणाली के उचित प्रबंधन हेतु आवश्यक है कि पानी एक जगह जमा ना हो सके। ठोस अपशिष्ट जल निकास प्रणाली में रुकावट का एक प्रमुख कारण है। अतः जल के मुक्त प्रवाह के लिये शहरी नालों की नियमित रूप से सफाई की जानी आवश्यक है।
- भारत को आवश्यकता है कि नदी जोड़ो परियोजना पर समन्वय के साथ तीव्रता से कार्य हो। शहरीकरण के कारण भूजल पुनर्भरण में कमी आई है, जिसने बाढ़ की सम्भावनाओं में वृद्धि की है।
- यद्यपि देश में कई नगर निगमों द्वारा वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बना दिया गया है, किंतु वर्षा जल संचयन को राष्ट्रीय स्तर पर अनिवार्य रूप से लागू किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- भारत में बाढ़ से होने वाली व्यापक क्षति तथा बाढ़ पर नियंत्रण में विफलता भारत की आपदा प्रबंधन की स्थिति और तैयारियों की अपर्याप्तता को उजागर करते हैं, यह स्थिति एक एकीकृत बाढ़ प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता की तरफ इशारा करती है।
- हालाँकि, हम अत्यधिक वर्षा और ग्लेशियरों के पिघलने के बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कर सकते हैं, लेकिन एक अच्छी जल निकास प्रणाली के निर्माण से बाढ़ जैसी समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। इस मामले में हम सिंगापुर की जल निकास प्रणाली का अनुसरण कर सकते हैं।