(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र -3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, आंतरिक सुरक्षा)
चर्चा में क्यों?
15 अगस्त, 2020 को भारत द्वारा 74वें स्वतंत्रता दिवस मनाये जाने के साथ ही भारत की ड्रोन नीति में एक बड़ी पहल देखने को मिली है। अब भारत के 70% से अधिक तथा 3.28 मिलियन वर्ग किलोमीटर के भू-भाग को ड्रोन संचालित करने के लिये खोल दिया गया है। डिजिटल स्काई प्लेटफार्म (ड्रोन संचालकों के लिये पंजीकरण प्रक्रिया हेतु ऑनलाइन पोर्टल) के तहत नो परमिशन-नो टेक ऑफ (NPNT) प्रोटोकाल का पालन करने वाली कम्पनियों को एक खिड़की अनुमति की सुविधा प्रदान की गई है।
पृष्ठभूमि
- भारत ने पहली बार वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान ड्रोन का उपयोग किया था। स्वदेशी ड्रोन तकनीक के विकास हेतु रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) द्वारा ड्रोन विनिमय 1.0 और हाल ही में ड्रोन विनिमय 2.0 जारी किये गए हैं।
- वर्ष 2014 में नागरिक उपयोग के क्षेत्र में ड्रोन के उपयोग पर अचानक लगे प्रतिबंधों ने भारत के उभरते हुए ड्रोन उद्योग को कई वर्ष पीछे धकेल दिया। इसके पश्चात ड्रोन उद्योग के विनियमन हेतु नियामक नीतियाँ वर्ष 2018 में (4 वर्ष बाद) लागू की गईं। इस नीति में परिभाषित डिजिटल स्काई प्लेटफार्म के अंतर्गत नो परमिशन-नो टेक ऑफ (N.P.N.T.) पर विशेष ज़ोर दिया गया। इसके तहत व्यवस्थित रूप से ली गई अनुमति के बिना कोई ड्रोन नहीं उड़ा सकता है।
ड्रोन तकनीक का महत्त्व
- कोविड-19 महामारी के कारण गाँव, शहरों और यहाँ तक की सम्पूर्ण देश में लगभग सभी प्रकार की गतिविधियों में ठहराव आ गया है, जो स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यापक खामियों को उजागर करता है।
- इस महामारी के संकट का दौर में प्रौद्योगिकी के लिये नए और उपयोगी अनुप्रयोगों को खोजने में हमारी सफलता को भी प्रदर्शित करता है।
- महामारी के इस दौर ने मानव रहित हवाई वाहनों (Unmanned Air Vehicle) की उपयोगिता को बढ़ा दिया है, जिन्हें आमतौर पर ड्रोन कहा जाता है। महामारी से निपटने के दौरान ड्रोन की विभिन्न प्रकार से सहायता ली जा रही है। जैसे लॉकडाउन के दौरान निगरानी, महत्त्वपूर्ण संदेशों को प्रसारित करने हेतु, लागू प्रतिबंधों के उल्लंघनकर्ताओं को पकड़ने हेतु, हॉटस्पॉट क्षेत्रों के निरीक्षण में, दवाओं तथा आवश्यक वस्तुओं के वितरण में आदि।
- वर्तमान में ड्रोन तकनीक का वैश्विक बाज़ार 21.47 बिलियन डॉलर का है। उसकी तुलना में भारत का ड्रोन बाज़ार वर्ष 2021 तक 900 मिलियन डॉलर तक पहुँचने की सम्भावना है।
- ड्रोन की सहायता से आपातकाल स्थितियों में भी दृश्य मूल्यांकन और क्षति का आकलन करना सम्भव हुआ है। हमने पूर्व की आपात स्थितियों में जैसे, मुम्बई आतंकी हमले के दौरान, उत्तरी सियाचिन में हिमस्खलन के समय, बांदीपुर जंगल की आग के दौरान, बिहार की बाढ़ तथा पुलवामा हमले के समय में भी ड्रोन का उपयोग किया है तथा इसके परिणाम भी काफी मददगार साबित हुए हैं।
- अध्ययन बताते हैं कि ड्रोन तकनीक लॉकडाउन सम्बंधी दिशा-निर्देशों के अनुपालन की लागत को कम करने में सक्षम है तथा इससे न केवल विश्वसनीय आँकड़े मिल सकते हैं बल्कि यह परिवहन और गतिशीलता बनाए रखने हेतु बेहतर विकल्प साबित हो सकती है।
ड्रोन तकनीक की चुनौतियाँ
- ड्रोन संचालन से सम्बंधित अधिकतर एजेंसियाँ राज्य निकाय हैं तथा इनके द्वारा सुरक्षा जोखिमों का आकलन गम्भीरता से किया जाता है। हालाँकि कुछ ड्रोन संचालकों द्वारा नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है और चिंता की बात यह है कि उन पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं की जा रही है।
- बिना नियमन वाले ड्रोन और सुदूर संचालित विमान प्रणाली महत्त्वपूर्ण रणनीतिक ठिकानों और सम्वेदनशील स्थानों तथा विशिष्ट कार्यक्रमों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं।
- ड्रोन निर्माताओं और उपयोगकर्ताओं के मध्य डिजिटल स्काई प्लेटफार्म को लेकर जागरूकता का अभाव है।
- भारत जैसे देश में जहाँ ड्रोन आयात किये जाते हैं वहाँ एन.पी.एन.टी. एक बाधा है क्योंकि इन आयातित ड्रोन के उपयोग को भारतीय नियमों के अनुसार संशोधित करना होगा।
आगे की राह
- ड्रोन तकनीक को रोबोट तकनीक के साथ प्रभावी रूप से संलग्न करके आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को बेहतर बनाया जा सकता है, जिससे यह भविष्य में कई बेहतर सम्भावनाओं का रास्ता खोल सकता है। फुकुशिमा परमाणु सयंत्र दुर्घटना के दौरान यह तकनीक काफी मददगार साबित हुई थी।
- आने वाले समय में ड्रोन पुलिस, सुरक्षा और आपराधिक कार्यों की रोकथाम कार्यों के लिये आपातकालीन सेवाओं का अनिवार्य हिस्सा बन जाएंगे।
- भारत में भले ही महामारी के दौरान ड्रोन के उपयोग में वृद्धि देखी गई लेकिन आवश्यक है कि कोविड-19 के बाद व्यापक स्तर पर इसके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए नीतियों में फेरबदल तथा उचित सहयोग के माध्यम से कार्यान्वयन किया जाए।
- हमने कोविड-19 महामारी संकट का पूर्व में आकलन नहीं किया था। हवाई उड़ान, ट्रेन सेवाएँ पूरी तरह से ठप्प हो गई हैं तथा विश्व के एक बड़े हिस्से में आपातकालीन सेवाएँ प्रभावित हुई हैं। इसलिए आगे आने वाली चुनौतियों के लिये हमें और अधिक तैयार रहने की आवश्यकता है। इस दिशा में ड्रोन तकनीक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
निष्कर्ष
- मौजूदा समय को देखते हुए भारत सरकार को ड्रोन उद्योग से सम्बंधित नियमों और व्यापार सुगमता और आत्मनिर्भर भारत से जुड़ी नीतियों को पुनः परिभाषित और समेकित करना चाहिये। साथ ही ड्रोन को नियंत्रित करने वाले नियामक ढाँचे को तकनीक के विकास और समय के साथ परिवर्तित किये जाने की आवश्यकता है।