(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियाँ, स्वास्थ्य सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)
संदर्भ
हाल ही में एक अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि कोरोना वायरस के बारे में झूठी या भ्रामक जानकारी के मामले में कई सक्रिय भारतीय समूहों, विदेशी सरकारों या पत्रकारों की तुलना में घरेलू राजनेताओं के नाम सबसे ऊपर हैं।
चिंता के प्रमुख स्रोत
- इस अध्ययन में चार में से लगभग एक (23 प्रतिशत) का कहना है कि सरकार, राजनेता या राजनीतिक दल, वे स्रोत हैं जिनके बारे में वे सबसे अधिक चिंतित हैं। फेसबुक (16 प्रतिशत) या यूट्यूब (14 प्रतिशत) जैसे मंच राजनेताओं की तुलना में गलत सूचनाओं को कम प्रेषित करते हैं।
- विभिन्न मंचों में केवल मैसेजिंग एप्लिकेशन (जैसे व्हाट्सएप) उपयोगकर्ताओं के बीच अधिक व्यापक सार्वजनिक चिंता उत्पन्न करते हैं, इनका योगदान 28 प्रतिशत है।
- इस अध्ययन में 9 प्रतिशत विभिन्न कार्यकर्ता समूहों को कोरोना वायरस के बारे में झूठी या भ्रामक जानकारी के सबसे बड़े स्रोत के रूप में चिह्नित किया गया है।
- पत्रकारों और समाचार संगठनों की 13 प्रतिशत तथा ट्विटर की 4 प्रतिशत भूमिका के रूप में पहचाना की गई है, और ये चिंता के सबसे बड़े कारण हैं।
- यह सर्वेक्षण इस तथ्य को उजागर करता है कि कितने भारतीय ‘'इंफोडेमिक' से प्रभावित हुए हैं। 'इंफोडेमिक' से अभिप्राय महामारी से संबंधित भ्रामक सूचनाओं से है, जिसमें दुर्भाग्य से कुछ झूठी और भ्रामक सामग्री, अफवाहें एवं प्रचार से संबंधित सामग्री शामिल होती है। इसका प्रयोग कथित लाभ या दुष्प्रचार के द्वारा संकट का लाभ उठाने के लिये किया जाता है।
प्रचार नेटवर्क
- वैश्विक अध्ययनों में ऐसा ‘प्रचार नेटवर्क’ पाया गया है, जहाँ कुछ शीर्ष राजनेताओं द्वारा गलत सूचनाएँ प्रसारित की जाती हैं। साथ ही, पक्षपातपूर्ण समाचार मीडिया और राजनीतिक समर्थकों के सुव्यवस्थित समुदाय सोशल मीडिया और मैसेजिंग एप्लिकेशन पर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं।
- राजनेताओं, मशहूर हस्तियों और अन्य प्रमुख सार्वजनिक हस्तियों की ‘टॉप-डाउन’ भूमिका गलत सूचना, झूठे और भ्रामक दावों का एक छोटा सा हिस्सा है। लेकिन महामारी के दौरान शोध से ज्ञात हुआ है कि सोशल मीडिया ग़लत सूचनाओं के एक बड़े हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है।
- यहाँ तक कि जब राजनेता मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्रचार करने में व्यस्त नहीं होते हैं, तब भी वे कभी-कभी नागरिकों को अन्य तरीकों से गुमराह करने का प्रयास करते हैं।
अप्रमाणित दावे
- राजनेताओं ने कभी-कभी बिना वैज्ञानिक आधार के कथित कोरोना वायरस उपचार को बढ़ावा दिया है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण हैं।
- भारत में, कुछ राजनेताओं ने दावा किया है कि ‘गोमूत्र’ लोगों को कोविड-19 से बचा सकता है। इस दावे को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने खारिज़ करते हुए कहा कि इसके कोई वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।
- कुछ गलत सूचनाएँ सोशल मीडिया और एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग सेवाओं पर ‘पीयर-टू-पीयर’ प्रसारित होती हैं, जिसमे लोग ‘अच्छे विश्वास या लापरवाही’ से चमत्कारिक इलाज और अप्रभावी वैकल्पिक स्वास्थ्य युक्तियों को साझा करते हैं।
- उक्त लापरवाही समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। किंतु, यकीनन कहीं अधिक समस्या तब होती है, जब शीर्ष पदों पर बैठे लोग और प्रमुख सार्वजनिक हस्तियाँ ऐसे उपायों को बढ़ावा देती हैं, जिनका एक घातक महामारी के बीच कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है।
कुछ प्रमुख उदहारण
- एक प्रमुख उदाहरण यह है कि हरियाणा राज्य सरकार ने पिछले महीने घोषणा की कि वह कोविड-19 रोगियों को एक लाख ‘कोरोनिल किट’ मुफ्त में देगी।
- उक्त आयुर्वेदिक उपाय पिछले वर्ष जून में ‘पतंजलि आयुर्वेद’ द्वारा शुरू किया गया था, और दावा किया कि दवा लेने के सात दिनों के भीतर कोविड-19 से शत-प्रतिशत रिकवरी होगी।
- कुछ घंटों के पश्चात् केंद्र सरकार ने पतंजलि आयुर्वेद को दवा का विज्ञापन बंद करने के लिये कहा। सरकार ने इस औषधि का लाइसेंस एक ‘प्रतिरक्षा बूस्टर’ के लिये दिया था न कि उपचार के लिये।
- ‘झूठे और निराधार’ दावों के साथ विक्रय की गई ‘अवैज्ञानिक दवा’ के रूप में वर्णित प्रचार इस बात का एक उदाहरण है कि प्रमुख सार्वजनिक हस्तियों और सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की भ्रामक जानकारी किस तरह से आम लोगों के ऑनलाइन और ऑफलाइन झूठ से बड़ी समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है।
निष्कर्ष
- यदि भारत में प्राधिकारी गलत सूचनाओं की समस्या के समाधान के लिये गंभीर हैं, तो वे इस तथ्य को एक महत्त्वपूर्ण पहलू मानकर चल सकते हैं कि अधिकांश नागरिक स्पष्ट रूप से मानते है कि गलत सूचना का प्रसार अक्सर शीर्ष पदों से ही होता है।
- इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये कि यह कैसे सुनिश्चित किया जाए कि नागरिक इस बात पर भरोसा कर सकें कि उनकी अपनी सरकारों और राजनीतिक हस्तियों द्वारा प्रचारित स्वास्थ्य उपचार वास्तव में सुरक्षित और प्रभावी हैं।