(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास) |
संदर्भ
भारत के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2023 में प्रक्षेपित चंद्रयान-3 के लैंडिंग क्षेत्र का मानचित्रण तैयार किया है।
चंद्रयान-3 लैंडिंग क्षेत्र मानचित्रण के बारे में
- बेंगलुरु में इसरो के इलेक्ट्रो ऑप्टिक्स सिस्टम सेंटर, अहमदाबाद में फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी और चंडीगढ़ में पंजाब यूनिवर्सिटी समेत वैज्ञानिकों की एक टीम ने हाई-रिज़ॉल्यूशन रिमोट सेंसिंग डाटासेट का इस्तेमाल करके चंद्रयान-3 की लैंडिंग वाले स्थल का मानचित्र बनाया है।
- इस लैंडिंग स्थल को ‘शिव शक्ति’ प्वाइंट के रूप में भी जाना जाता है।
- वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की सतह से गड्ढों एवं चट्टान वितरण डाटा एकत्र करने के लिए लूनर रिकोनिसेंस ऑर्बिटर वाइड-एंगल कैमरा और टेरेन कैमरा जैसी इमेजिंग तकनीकों का प्रयोग किया है।
- भारत 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला देश बन गया था।
- चंद्रयान-3 पर विक्रम लैंडर के अंदर रखे गए प्रज्ञान रोवर से प्राप्त डाटा की मदद से चंद्रमा के विकास में नई व्याख्याएँ एवं अंतर्दृष्टि प्राप्त हो रही हैं।
प्रमुख निष्कर्ष
- लैंडिंग क्षेत्र की आयु : लैंडिंग क्षेत्र में स्थित 25 क्रेटर्स (500-1,150 मीटर व्यास के) का विश्लेषण कर शिव शक्ति प्वाइंट की आयु 3.7 अरब वर्ष मापी गई है।
- इसी समय पृथ्वी पर आरंभिक सूक्ष्म जीवों का विकास शुरू हुआ था।
- लैंडिंग क्षेत्र का 3 सतह स्तरों में विभाजन
- पहला : ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी क्षेत्र
- दूसरा : चिकनी समतल स्थल
- तीसरा : कम ऊंचाई वाली समतल जमीन
- शिव शक्ति प्वाइंट साइट तीन बड़े क्रेटरों (गड्ढों) से घिरा हुआ है :
- मैन्ज़िनस क्रेटर (Manginus Crater) : 96 किमी. व्यास और आयु 3.9 अरब वर्ष (उत्तर में स्थित)
- बोगुस्लाव्स्की क्रेटर (Boguslavsky Crater) : 95 किमी. व्यास, आयु 4 अरब वर्ष (दक्षिण-पूर्व में स्थित)
- शॉमबर्गर क्रेटर (Schaumburger Crater) : 86 किमी. व्यास, आयु 3.7 अरब वर्ष (दक्षिण में स्थित)
- लैंडिंग स्थल के आसपास का स्थानीय क्षेत्र मुख्यत: द्वितीयक क्रेटरों, मैन्ज़िनस एवं बोगुस्लाव्स्की के अवशेषों से निर्मित हुआ था।
![](https://www.sanskritiias.com/uploaded_files/images/SHIV_SHAKTI_POINT_COORDINATES.jpg)
- रेगोलिथ : चंद्रमा की सतह छोटे-छोटे उल्कापिंडों के वर्षण और तापीय उतार-चढ़ाव के कारण लगातार परिवर्तित होती रही है और लाखों वर्षों में मूल चट्टानें टूटकर रेगोलिथ (किसी ग्रह की सतह पर असंगठित पदार्थ की परत) में बदल गई हैं।
मानचित्रण का महत्त्व
- चंद्रमा के भूवैज्ञानिक एवं विकासवादी इतिहास की मौजूदा समझ में वृद्धि में सहायक
- भूवैज्ञानिक मानचित्र और विभिन्न संरचनाओं की समयरेखा इन-सीटू (मौके पर किए गए) मापनों के परिणामों को अधिक मजबूत करने के लिए अत्यधिक वैज्ञानिक महत्व