(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय)
संदर्भ
आसियान के वर्तमान अध्यक्ष कंबोडिया ने म्यांमार में गृहयुद्ध की संभावना व्यक्त की है। ऐसे में, म्यांमार की बदलती परिस्थितियों को भारत के संदर्भ में समझना आवश्यक है।
म्यांमार में सैन्य शासन का इतिहास
- वर्ष 1948 में म्यांमार (बर्मा) को ब्रिटेन के औपनिवेशिक शासन से मुक्ति मिली तथा ‘एंटी फासिस्ट पीपल्स फ्रीडम लीग’ (AFPFL) के सहयोग से ‘यू नू’ देश के पहले प्रधानमंत्री बने।
- वर्ष 1958 में सेना ने पहली बार देश की राजनीति में प्रवेश किया और चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ ‘ने विन’ अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त हुए।
- वर्ष 1960 के चुनाव में ‘यू विन’ विजयी हुए परंतु बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म के रूप में बढ़ावा देने तथा अलगाववाद के प्रति सहिष्णु नीति के कारण सेना इनके विरुद्ध हो गई।
- वर्ष 1962 में सैन्य नेता ने विन ने तख्तापलट कर देश की सत्ता पर अधिकार कर लिया तथा जुंटा (सैन्य) शासन के माध्यम से लंबे समय तक देश पर शासन किया।
- जुंटा शासन की आलोचना करने के कारण वर्ष 1989 में ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ (NLDF) की नेता आंग सान सू ची को नजरबंद कर दिया गया।
म्यांमार में वर्तमान स्थिति
नवंबर 2020 में हुए चुनावों में आग सान सू ची के नेतृत्व में एन.एल.डी.एफ़. को भारी बहुमत मिला किंतु सेना ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाते हुए पिछले वर्ष फ़रवरी में तख्तापलट करके देश की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद म्यांमार में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गयी और संघर्ष व पलायन का दौर देखा गया।
भारत पर प्रभाव
- म्यांमार के साथ भारत स्थलीय सीमा के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी में सागरीय सीमा भी साझा करता है, अत: म्यांमार में सत्ता परिवर्तन से भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा।
- भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जबकि वर्तमान में म्यांमार में सैन्य शासन की उपस्थिति दोनों देशों के मध्य मतभेद उत्पन्न कर सकती है।
- भारत के पूर्वोतर राज्यों के विद्रोही गुट म्यांमार के सीमाई क्षेत्रों में शरण लेते हैं, वर्तमान परिस्थिति में इन विद्रोहियों के प्रत्यावर्तन में कठिनाई हो सकती है।
- म्यांमार स्वर्णिम त्रिभुज का हिस्सा है, जहाँ से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में नशीले पदार्थों की तस्करी होती है। वर्तमान परिस्थिति में इस पर नियंत्रण कर पाना भारत के लिये चुनौतीपूर्ण होगा।
- भारत रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या से ग्रस्त है, जबकि सैन्य शासन के कारण वे म्यांमार से विस्थापित हो रहे हैं। म्यांमार की वर्तमान परिस्थिति में शरणार्थी समस्या के समाधान के लिये दोनों देशों के मध्य समन्वय का अभाव हो सकता है।
- भारत द्वारा जुंटा शासन की अनदेखी म्यांमार के चीन के प्रति झुकाव को बढ़ावा देगी जिससे भारत के लिये सामरिक व रणनीतिक चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती है।
निष्कर्ष
म्यांमार में सैन्य शासन का एक लंबा दौर रहा है। भारत को म्यांमार की बदलती परिस्थितियों के अनुरूप ही अपनी विदेश नीति की दिशा तय करनी होगी ताकि भारत अपनी ‘एक्ट ईस्ट नीति’ के माध्यम से अपने सामरिक व आर्थिक लाभ को सुनिश्चित कर सके।