(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, प्रश्नपत्र 2: द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।)
संदर्भ
सऊदी अरब और ईरान की हालिया घोषणाएँ खाड़ी देशों में शांति और सुरक्षा की दिशा में सहायक साबित हो सकती हैं।
फारस की खाड़ी
- फारस की खाड़ी लगभग 990 किलोमीटर लंबा जल निकाय है, जो ईरान को अरब प्रायद्वीप से अलग करती है।
- संयुक्त राष्ट्र के सात सदस्य देश इसके समीप स्थित हैं।
- होर्मुज़ जलसंधि संकीर्ण बिंदु केवल 54 कि.मी. चौड़ा है और इसके माध्यम से गुज़रने वाले मुख्य शिपिंग चैनल 30-35 किमी चौड़े तथा 8 -12 किमी चौड़े हैं।
- ये वैश्विक बाज़ारों में कच्चे तेल और एल.एन.जी. के परिवहन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- 1970 के दशक की शुरुआत तक फारस की खाड़ी को एक ‘ब्रिटिश झील’ के रूप में जाना जाता था।
पृष्ठभूमि
- औपनिवेशिक शासन की समाप्ति के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी ट्विन-पिलर (ईरान-सऊदी अरब) नीति के साथ इस क्षेत्र के गारंटर के रूप में कदम रखा।
- वर्ष 1976 में मस्कट सम्मेलन के माध्यम से ओमान द्वारा एक निष्फल प्रयास भी किया गया था लेकिन बाथिस्ट इराक के कारण सफल नहीं हुआ।
- सऊदी अरब के शाह फैसल और ईरान के शाह द्वारा द्विपक्षीय प्रयास किये गए, इसी के आलोक में शाह फैसल ने वर्ष 1964 में अपनी ‘इस्लामी एकजुटता’ नीति की शुरुआत की और वर्ष 1965 में ईरान का दौरा किया।
- वर्ष 1966 में सऊदी रक्षा मंत्री सुल्तान बिन अब्दुलअज़ीज़ ने ईरानी-सऊदी दोस्ती को इस्लामी भाईचारे और पड़ोसी संबंधों का एक आदर्श उदाहरण बताया तथा दोनों देश खुफिया जानकारी साझा करने के लिये ‘सफारी क्लब’ के सदस्य बने।
घटनाक्रम
- वर्ष 1978-79 की ‘इस्लामिक क्रांति’ ने इस क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन को बिगाड़ते हुए सुरक्षा मुद्दों पर क्षेत्रीय सहमति विकसित करने के प्रयासों को समाप्त कर दिया।
- आगामी दशक में, विशेषतः इराक-ईरान युद्ध की अवधि के दौरान खाड़ी राजशाही और उनके पश्चिमी समर्थकों का मुख्य प्रयास अस्थिरता को दूर करना और क्रांतिकारी शासन को समाप्त करना था।
- वर्ष 1981 में खाड़ी सहयोग परिषद् GCC) का गठन खाड़ी शेखों को आश्वस्त करने के प्रयास का हिस्सा था।
- वर्ष 1996 में ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खतामी ने सऊदी रक्षा मंत्री से एक पारस्परिक रक्षा समझौते के लिये आग्रह किया।
- क्राउन प्रिंस अब्दुल्ला ने दिसंबर, 1997 में तेहरान में इस्लामिक शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
- इसे तेहरान में गलतफहमियों को दूर करने के लिये एक अच्छी शुरुआत के रूप में देखा गया।
अशांति का प्रभाव
- यमन विशेष रूप से सऊदी राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणाओं के लिये महत्त्वपूर्ण रहा है।
- दृष्टिकोणों का टकराव 1930 के दशक से है, जब किंग अब्दुलअज़ीज़ इब्न सऊद अरब प्रायद्वीप के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों को शामिल करने के लिये नजद साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार कर रहे थे।
- नज़रान के दक्षिणी क्षेत्र में संघर्ष विकसित हुआ और इसके परिणामस्वरूप सऊदी सैन्य जीत और वर्ष 1934 की संधि हुई।
- मिस्र की क्रांति और जमाल अब्देल नासिर के ‘राष्ट्रवाद और कट्टरपंथ के नशीले मिश्रण’ तक शांति बरकरार रही।
- इसने वर्ष 1962 के यमनी तख्तापलट और यमन में मिस्र के सैन्य हस्तक्षेप ने सऊदी-मिस्र के संबंधों में खटास उत्पन्न कर दिया, जो वर्ष 1967 के अरब-इजरायल युद्ध तक चला।
- यह संयुक्त राज्य अमेरिका के हितों के अनुकूल था; वर्ष 1990 के कुवैत युद्ध के दौरान सैन्य सहायता कार्यक्रम और अमेरिकी सैनिकों की तैनाती के रूप में परिणत हुआ।
प्रमुख मुद्दे
- अधिकांश देश ऐतिहासिक रूप से कम तेल की कीमतों और कोविड-19 से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं।
- कतर के बहिष्कार करने के कारण जी.सी.सी. निष्क्रिय हो गया है, जिसे अब सक्रिय किया जा रहा है।
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब के मध्य नए तनाव उत्पन्न हो रहे हैं।
- वर्तमान में वाशिंगटन के ओवल ऑफिस तक रियाद की पहुँच अब वैसी नहीं है, जैसी डोनाल्ड ट्रंप के दौर में थी।
- इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के मध्य ‘अब्राहम समझौते’ ने फारस की खाड़ी के देशों और व्यापक अरब विश्व में अरब-इजरायल गणना को गुणात्मक रूप से प्रभावित किया है।
- हाल ही में, अफगानिस्तान से सेना वापसी और इराक में प्रतिबद्धताओं को कम करने का यू.एस. का निर्णय पर्यवेक्षकों के मध्य विकल्पों पर चर्चा का विषय रहा है।
- कुवैत में ग्राउंड-फोर्स बेस, बहरीन में पाँचवाँ फ्लीट नौसैनिक अड्डा, कतर में अल उदीद एयर बेस, संयुक्त अरब अमीरात में अल धफरा एयर बेस अमेरिका को इस क्षेत्र में राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थाई सैन्य उपस्थिति प्रदान करते हैं।
सुरक्षा से संबंधित चिंताएँ
- उनकी प्राथमिक चिंता खाड़ी तट पर सुरक्षा और उनके हाइड्रोकार्बन निर्यात के परिवहन के लिये जलमार्ग की सुरक्षा है।
- वर्ष 1987 में तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि खाड़ी पश्चिम के आर्थिक स्वास्थ्य के लिये बेहद महत्त्वपूर्ण है।
- इसे व्यावहारिक रूप देने के लिये निम्नलिखित आवश्यक अवयवों की आवश्यकता होगी-
- होर्मुज़ जलसंधि के माध्यम से खाड़ी तक पहुँचने और बाहर निकलने की स्वतंत्रता।
- फारस की खाड़ी में वाणिज्यिक शिपिंग की स्वतंत्रता।
- संघर्ष की रोकथाम, जो व्यापार और शिपिंग की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकती है।
- खाड़ी तट के सभी राज्यों को अपने हाइड्रोकार्बन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने और उन्हें निर्यात करने की स्वतंत्रता।
- अलग-अलग तटवर्ती राज्यों में शांति और स्थिरता की स्थिति सुनिश्चित करना, और यह सुनिश्चित करना कि ‘क्षेत्रीय या अतिरिक्त-क्षेत्रीय स्थितियाँ' इनमें से किसी भी कारण से प्रभावित न हों।
निष्कर्ष
- सऊदी अरब और ईरान के मध्य किसी प्रकार के सहयोग का स्वागत किया जाना चाहिये क्योंकि भारतीय दृष्टिकोण से यह’ आवश्यक है। साथ ही, तटवर्ती देशों में स्थिरता, नौवहन की स्वतंत्रता और समुद्री मार्गों की सुरक्षा के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।