(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3, विषय:सामाजिक न्याय; केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)
संदर्भ
30 जुलाई को मानव तस्करी के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र विश्व दिवस मनाया जाता है।
तस्करी से संबंधित वर्तमान आँकड़े
- एक बाल अधिकार गैर-सरकारी संगठन (NGO) के अनुसार, अप्रैल 2020 और जून 2021 के मध्य, श्रम के लिये की गई तस्करी के बाद अनुमानित 9,000 बच्चों को बचाया गया है।
- दूसरे शब्दों में, लगभग 15 महीनों में प्रतिदिन 21 बच्चों की तस्करी की गई है। चाइल्डलाइन इंडिया हेल्पलाइन को 10 महीनों में 44 लाख संकटग्रस्त कॉल आए।
- एक साल में 2,000 बच्चे इस एन.जी.ओ. के आश्रय गृहों में पहुँचे हैं और 800 को खतरनाक कामकाजी परिस्थितियों से बचाया गया है।
बढ़ती सुभेद्यता
- मीडिया अक्सर तस्करी की व्यक्तिगत कहानियाँ प्रकाशित करता है। 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भयावह परिस्थितियों में कारखानों में काम कराने के लिये उनकी तस्करी की जाती है। जहाँ मालिक कोरोनवायरस महामारी से अपने नुकसान की भरपाई के लिये सस्ते श्रम की ओर रुख कर रहे हैं।
- नवंबर 2020 में, बिहार से राजस्थान में मजदूरी के लिये तस्करी कर लाए जाने के बाद 12 से 16 साल के चार बच्चों की मौत हो गई; उनमें से कुछ को मारपीट से चोटें भी आई हैं।
- बाल विवाह भी बड़े पैमाने पर बढ़ रहा है। अप्रैल और अगस्त 2020 के बीच 10,000 से अधिक मामलों को ट्रैक किया गया।
- मध्य प्रदेश में, अप्रैल-मई 2021 में लगभग 391 बाल विवाहों को रोका गया है, जबकि ओडिशा में जनवरी-मई 2021 के बीच 726 बाल विवाह रोके गए हैं।
- 'दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग' के साथ काम करने वाले एक बाल अधिकार एन.जी.ओ. ने बड़े पैमाने पर बाल श्रम की समस्या पर प्रकाश डाला है।
- तस्करी के प्रति बढ़ती सुभेद्यता के लिये उत्तरदायी कारकों की पहचान की जा सकती है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना वायरस के कारण आय और आर्थिक संकट का नुकसान हुआ है, जिससे परिवारों की लंबी अवधि में बच्चों की देखभाल करने की क्षमता कम हो गई है।
- इसने, कुछ मामलों में, मृत्यु, बीमारी या अलगाव के कारण माता-पिता की देखभाल के नुकसान का कारण भी बना दिया है, जिससे बच्चों को हिंसा, उपेक्षा या शोषण का खतरा बढ़ गया है।
- इन कारकों को बाल श्रम और बाल विवाह के खिलाफ कानून द्वारा प्रदान की गई कुछ जाँचों के क्षरण के साथ-साथ स्कूलों और समाज की जाँच के कारण जटिल बना दिया गया है।
तस्करी के अन्य कारक
- वर्तमान समय में इंटरनेट की पहुँच में वृद्धि ने साइबर-तस्करी को भी जन्म दिया है।
- भारत में एक बाल अधिकार समूह के एक सदस्य द्वारा अगस्त 2020 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और मुफ्त मैसेजिंग ऐप का इस्तेमाल अक्सर युवाओं से संपर्क करने के लिये किया जाता है।
महामारी का तस्करी पर प्रभाव
- तस्करी पर महामारी के प्रभाव पर ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की एक हालिया रिपोर्ट इन निष्कर्षों को संदर्भित करती है।
- इसमें कहा गया है कि तस्कर आजीविका के नुकसान का फायदा उठा रहे हैं और पीड़ितों को फंसाने के लिये ऑनलाइन जालसाजी का प्रयोग करते हैं।
- जिसमें सोशल मीडिया पर झूठी नौकरियों का विज्ञापन भी शामिल है। इसके अलावा, लॉकडाउन के कारण बाल यौन शोषण सामग्री की ऑनलाइन माँग बढ़ गई है।
आँकड़ों की कमी
- सरकार ने हाल ही में मार्च 2021 में संसद में स्वीकार किया कि वह साइबर तस्करी के मामलों के लिये विशिष्ट राष्ट्रीय स्तर के आँकड़ो का रख-रखाव नहीं करती है।
- साइबर अपराधों की जाँच और अभियोजन में सुधार के लिये गृह मंत्रालय द्वारा शुरू की गई कुछ योजनाओं की प्रभावशीलता देखी जानी बाकी है।
- वैश्विक मानव तस्करी पर अपनी रिपोर्ट में भारत को अभी भी अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा टियर -2 देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- इसका अर्थ है कि सरकार अवैध व्यापार को समाप्त करने के लिये यू.एस. और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत न्यूनतम मानकों को पूरा नहीं करती है, लेकिन अनुपालन करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रही है।
- कार्यान्वयन की कमी 'मानव तस्करी रोधी इकाइयों' (AHTU) की स्थिति से स्पष्ट होती है।
- ए.एच.टी.यू. विशेष ज़िला टास्क फोर्स हैं, जिनमें पुलिस और सरकारी अधिकारी शामिल हैं।
- वर्ष 2010 में, यह कल्पना की गई थी कि 330 ए.एच.टी.यू. स्थापित किये जाएँगे।
- अगस्त 2020 में आरटीआई प्रतिक्रियाओं से पता चला कि लगभग 225 ए.एच.टी.यू. स्थापित किये गए थे, लेकिन केवल कागज पर।
मसौदा विधेयक एवं न्यायिक मुद्दे
- अब नए ड्राफ्ट एंटी-ट्रैफिकिंग बिल पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, इस बात पर प्रकाश डाला जाना चाहिये कि भारत में एंटी-ट्रैफिकिंग नीति पहले से ही मौजूद है, परंतु इन नीतियों का क्रियान्वयन प्रभावी रूप से नहीं हो पाता।
- मसौदा विधेयक राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर ए.एच.टी.यू./समितियों के लिये भी प्रावधान करता है, लेकिन जैसा कि उल्लेख किया गया है, उनके प्रभावी कामकाज को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।
- प्रभावशीलता को लागू करने और निगरानी करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना कानून बनाना व्यर्थ है।
- अवैध व्यापार के मामलों में अभियोजकों और न्यायाधीशों के सामने आने वाली चुनौतियों पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- सरकारी आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में 140 लोगों को बरी किया गया और केवल 38 को दोषी ठहराया गया।
- यह जाँच की विफलता की ओर इशारा करता है और इसे मसौदा विधेयक द्वारा हल नहीं किया जा सकता है क्योंकि आरोपी, तस्करों को तब तक निर्दोष नहीं माना जाना चाहिये, जब तक कि वे इसके विपरीत कोई सबूत पेश नहीं कर देते।
- इसके अलावा, ऐसे मुकदमे वर्षों तक चलते हैं, पीड़ित कभी-कभी तस्करों द्वारा डराए जाने के बाद अपनी शिकायतें वापस ले लेते हैं। "फास्ट ट्रैक" अदालतों के निर्णयों को लागू करने के लिये उचित प्रबंधन की आवश्यकता है।
- अन्य समस्याओं में मौद्रिक मुआवजे के लाभार्थियों की कम संख्या और मनोवैज्ञानिक परामर्श तक लगातार पहुँच की कमी शामिल है।
- मसौदा विधेयक के कुछ हिस्से पुनर्वास के महत्त्व को स्वीकार करते हैं, हालाँकि, इसका कार्यान्वयन भी महत्त्वपूर्ण है।
आगे की राह
- यदि उचित रूप से कर्मचारी और वित्त पोषित, ए.एच.टी.यू. अवैध व्यापार करने वालों के तरीकों और पैटर्न पर ज़मीनी स्तर के आँकड़े प्रदान कर सकते हैं, जो बदले में समुदाय-आधारित जागरूकता और सतर्कता गतिविधियों को मज़बूत कर सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, शिक्षा को प्रोत्साहित करके और रोज़गार के अवसर प्रदान कर तस्करी की घटनाओं में कमी लाई जा सकती है।
निष्कर्ष
- तस्करी के अधिकांश शिकार निम्न-आय वाले समुदायों से हैं, जिनके लिये कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन ने दीर्घकालिक वित्तीय संकट उत्पन्न किया है।
- चूँकि भारत के अधिकांश हिस्सों में स्कूल बंद हैं और महामारी का कोई निश्चित अंत नहीं दिख रहा है, इसलिये यह नहीं माना जा सकता है कि तस्करी की घटनाएं "सामान्य स्थिति" की बहाली के साथ कम होंगी।
- इसके अलावा, मौजूदा संकट को दूर करने के लिये सरकार और अन्य हितधारकों को अब निवारक कार्रवाई करनी चाहिये।