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चीन-रूस-पाकिस्तान-तुर्की-ईरान समूह और क्वाड

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ )
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित व भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार)

संदर्भ

हाल ही में, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने भारत की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने दोहराया कि क्वाड एक सैन्य गठबंधन नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मूल्यों को बनाए रखते हुए क्षेत्रीय सहयोग एवं सुरक्षा को तीव्र करने की व्यवस्था है। इसी तरह का विचार भारतीय विदेश मंत्री ने भी व्यक्त किया है। इन सबके बावजूद चीन क्वाड के प्रति नकारात्मक, असुरक्षित और अस्थिर प्रतिक्रिया व्यक्त करता रहता है। कुछ अन्य देश भी अलग-अलग तरीके से क्वाड के प्रति इस दृष्टिकोण को प्रदर्शित करते रहे हैं।

क्वाड की बढ़ती भूमिका को नियंत्रित करने की कोशिश

  • चूँकि क्वाड हिंद-प्रशांत और उसके आसपास के क्षेत्रों में अपनी भूमिका को लगातार मज़बूत कर रहा है, ऐसे में एक पाँच-पक्षीय (पाँच देशों की) व्यवस्था की विशेष रूप से चर्चा प्रारंभ हो गई है।
  • पिछले वर्ष एक ईरानी दूत ने पाकिस्तान में इससे संबंधित एक प्रस्ताव दिया था, जिसके बाद से चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान और तुर्की के मध्य क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था की संभावना के बारे में कूटनीतिक चर्चाएँ बढ़ गई हैं।
  • इसके अलावा, यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि इस तरह की व्यवस्था और समूह का लक्ष्य क्वाड के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करना भी हो सकता है। हालाँकि, ऐसे समूह की प्रभावशीलता अभी भी संदिग्ध है।
  • साथ ही, समान मूल्यों को साझा करने वाले और अविश्वास से भरे इन देशों के बीच अधिक समय तक सामंजस्य स्थापित कर पाना भी मुश्किल है। इस व्यवस्था में शामिल होने वाले देशों के मध्य रणनीतिक उद्देश्यों में परिभाषिक अस्पष्टता और एकरूपता का अभाव भी दिखाई पड़ता है। इन कारकों को देखते हुए क्वाड का मुकाबला करने की ऐसी व्यवस्था के अधिक सफल होने की संभावना है।

सहमति के प्रमुख बिंदु

  • क्वाड के किसी किसी सदस्य के खिलाफ इन सभी पाँच देशों की अलग-अलग शिकायतें और रणनीतिक हितों का विरोध इन देशों को एक साथ लाता है।
  • चीन और रूस क्वाड जैसी व्यवस्था के खिलाफ रहे हैं, क्योंकि इससे उनके अलग-थलग होने की आशंका है। क्वाड के खिलाफ संतुलन बनाने के प्रयास में दोनों देशों के बीच प्राय: सहयोग देखा गया है। इस वर्ष क्वाड शिखर सम्मेलन को लेकर भी चीन ने नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
  • दूसरी ओर, रूस ने भी यह तर्क दिया कि पश्चिमी देश ‘हिंद-प्रशांत रणनीतियोंऔरक्वाडको बढ़ावा देकरचीन विरोधी गतिविधियोंमें संलग्न हैं। इसके अलावा, वर्ष 2014 में यूक्रेन के कारण रूस पर पश्चिमी देशों के भारी प्रतिबंधों ने इसे एक आर्थिक विकल्प के रूप में चीन के करीब ला दिया है।
  • अमेरिका और ईरान के संबंध निचले स्तर पर पहुँच गए हैं और ईरान गंभीर प्रतिबंधों के नकारात्मक प्रभावों का सामना कर रहा है। ऐसे समय में भी चीन ने ईरान से तेल आयात करके स्वयं को उसके एक प्रमुख भागीदार के रूप में प्रस्तुत किया है।
  • इसके अलावा, इस वर्ष दोनों देशों ने ईरानी तेल खरीदने, निवेश को बढ़ावा देने और सैन्य सहयोग को मज़बूत करने के लिये 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर का एक बड़ा रणनीतिक समझौता किया है। साथ ही, रूस भी ईरान का एक प्रमुख सुरक्षा साझेदार बनता जा रहा है।
  • नाटो का सदस्य होने के बावजूद अमेरिका ने तुर्की पर एस-400 रूसी मिसाइलों के आयात के कारण प्रतिबंध लगा दिया, जिससे दोनों देशों के बीच असंतोष है।
  • इसके अलावा, तुर्की द्वारा भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और पाकिस्तान के पक्ष में कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण की कोशिशों के कारण उसे क्वाड-विरोधी समूह की ओर झुकने पर मजबूर कर दिया है।
  • दूसरी ओर, पाकिस्तान ऐसी किसी भी व्यवस्था का समर्थन करता है, जो भारत के प्रभाव को कम करता है। भारत के खिलाफ संतुलन बनाने की पाकिस्तान की कोशिशों में चीन एक बुनियादी स्तंभ है। इसके अलावा, पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे का सबसे मुखर समर्थक होने के कारण इस्लामी दुनिया के नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने के लिये तुर्की का समर्थन करता है। साथ ही, पाकिस्तान, रूस और ईरान दोनों के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।

वास्तविकता या कल्पना

  • हालाँकि, केवल उपरोक्त मुद्दे किसी मज़बूत क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। कुछ उद्देश्यों के बावजूद सभी पाँच देश समान मूल्यों और सिद्धांतों को साझा नहीं करते हैं, जिससे उनकी व्यवस्था को मज़बूत किया जा सके। सत्तावादी और धार्मिक होने के कारण इन देशों में लंबे समय तक लचीलेपन का आभाव है और प्रत्येक देश में एक दूसरे के प्रति अविश्वास है।
  • चीन और रूस कुछ निश्चित सामरिक उद्देश्यों की पूर्ति में महत्त्वपूर्ण सामरिक भागीदार हो सकते हैं। हालाँकि, ऐसा प्रतीत होता है कि रूस के साथ चीन का जुड़ाव काफी हद तक चयनात्मक है और यह व्यक्तिगत लाभ पर आधारित है। चीन ने क्रीमिया और यूक्रेन सहित कई मौकों पर रूस का समर्थन नहीं किया है।
  • इसके अलावा, चीन रूसी प्रभाव वाले मध्य-एशिया जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में भी अपने सामरिक प्रभाव को बढ़ा रहा है। हथियारों की बिक्री, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और नए सैन्य चौकियों के माध्यम से चीन लंबे समय में रूस के प्रभाव और हितों को काफी कम कर सकता है।
  • यद्यपि तुर्की और ईरान के बीच आर्थिक संबंधों में सुधार हो रहा है किंतु रणनीतिक क्षेत्र के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। कई क्षेत्रीय भू-राजनीतिक मुद्दों, जैसे- सीरियाई संघर्ष, इराक की स्थिति और इज़राइल के साथ जुड़ाव को लेकर तुर्की और ईरान के मत अधिकतर विपरीत ही रहे हैं।
  • रूस के साथ तुर्की के संबंध भी बहुत अच्छे नहीं हैं। गर्मजोशी के प्रयासों के बावजूद दोनों देशों के बीच अविश्वास के कई मुद्दे हैं। यूक्रेन के लिये सक्रिय सैन्य समर्थन के साथ-साथ दक्षिण काकेशस और मध्य एशिया में अपने प्रभाव को गहरा करने के लिये तुर्की के हित रूस के साथ संबंधों में रुकावट हैं।
  • पाकिस्तान और ईरान के बीच संबंधों को मज़बूत करने में भी काफी बाधाएँ हैं। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पर काफी हद तक निर्भर होने के कारण पाकिस्तान को विभिन्न मुद्दों पर ईरान के साथ सहयोग करने में मुश्किलें रहीं हैं। इसके अलावा, तुर्की और चीन के संबंध भी उइगर मुस्लिम जैसे मुद्दों के कारण विवादों से घिरे हुए हैं।

निष्कर्ष

वास्तविकता यह है कि व्यापक रूप से चर्चित पाँच-तरफा क्षेत्रीय व्यवस्था स्वयं को क्वाड के काउंटर के रूप में लंबे समय तक स्थापित नहीं कर सकती है। अविश्वास के कई मुद्दों, स्व-केंद्रित रणनीतिक उद्देश्य और दृष्टिकोण में संकीर्णता के कारण एक मज़बूत एवं एकजुट समूह की बात करना कठिन है, जबकि क्वाड इस क्षेत्र के सभी देशों के बीच व्यापक स्थिरता, पारदर्शी विकास और व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करता है। अलग-अलग दृष्टिकोण वाले पाँच देशों की यह व्यवस्था एक-दूसरे की महत्वाकांक्षाओं में फंस सकती है, जो विश्व के लिये कोई सकारात्मक लाभ नहीं प्रदान कर सकती है। यह शांति के समग्र संतुलन के लिये विनाशकारी भी साबित हो सकता है।

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