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चीन का हाइड्रोजन बम उपकरण और वैश्विक शक्ति संतुलन

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव)

संदर्भ

चीन ने एक ऐसे हाइड्रोजन बम (उपकरण) का सफल परीक्षण किया है जो पारंपरिक परमाणु सामग्री के बिना फायरबॉल उत्पन्न करता है और पूर्णतया रासायनिक प्रतिक्रियाओं पर आधारित है।​ साथ ही, चीन हाइड्रोजन एवं मीथेन आधारित प्रौद्योगिकियों सहित नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है। ऐसे में इस घटनाक्रम को वैश्विक शक्ति-संतुलन, सामरिक स्थिरता तथा भारत की सुरक्षा नीति के दृष्टिकोण से समझना आवश्यक है।

हाइड्रोजन बम उपकरण

  • यह एक नया हाइड्रोजन आधारित विस्फोटक उपकरण है। नाभिकीय संलयन पर निर्भर पारंपरिक हाइड्रोजन बमों के विपरीत इस उपकरण में मैग्नीशियम हाइड्राइड (MgH₂) का उपयोग किया गया है जो ठोस अवस्था में हाइड्रोजन संग्रहित करता है। 
  • जब इसे पारंपरिक विस्फोटक से सक्रिय किया जाता है, तो यह तीव्र ऊष्मीय विघटन (Thermal Decomposition) के माध्यम से हाइड्रोजन गैस उत्सर्जित करता है। 
  • यह हाइड्रोजन गैस वायुमंडलीय ऑक्सीजन के साथ प्रतिक्रिया करके अत्यधिक उच्च तापमान वाली आग का एक गोला (Fireball) उत्पन्न करती है।
  • ​यह उपकरण पारंपरिक ट्राइ-नाइट्रो-टॉलूईन (TNT) विस्फोटकों की तुलना में अधिक समय तक उच्च तापमान बनाए रखता है जिससे यह सैन्य लक्ष्यों को अधिक प्रभावी ढंग से नष्ट करने में सक्षम है।​
  • विशेषज्ञों के अनुसार यह नया उपकरण :
    • Miniaturized यानी छोटे आकार में फिट हो सकता है (जैसे- मिसाइल वॉरहेड)
    • संभावित रूप से हाइपरसोनिक मिसाइल पर लगाया जा सकता है। 
    • सटीकता, विनाश क्षमता एवं गतिशीलता में अत्यधिक उन्नत है। 

 रणनीतिक महत्व

यह उपकरण चीन की सैन्य क्षमताओं में एक महत्वपूर्ण नवाचार है। इसकी उच्च तापीय तीव्रता एवं लंबी अवधि इसे शहरी युद्ध परिदृश्यों में उपयोगी बनाती है, विशेष रूप से ऐसे क्षेत्रों में जहाँ पारंपरिक परमाणु हथियारों का उपयोग संभव नहीं है।

हाइड्रोजन बम के बारे में 

  • हाइड्रोजन बम को थर्मोन्यूक्लियर बम भी कहा जाता है जो पारंपरिक परमाणु बम की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है। 
  • यह दो चरणों में कार्य करता है
    • पहला चरण : यूरेनियम या प्लूटोनियम आधारित विखंडन (Fission)
    •  दूसरा चरण : ड्यूटेरियम/ट्रिटियम आधारित संलयन (Fusion) 
  • इस तकनीक की विनाशकारी क्षमता अत्यधिक होती है जो कई किलोमीटर तक विनाश कर सकती है।

हाइड्रोजन बम व परमाणु बम में अंतर 

अंतर का आधार

परमाणु बम

हाइड्रोजन बम

प्रौद्योगिकी

विखंडन प्रक्रिया पर आधारित

विखंडन व संलयन प्रक्रिया पर आधारित

ईंधन 

यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239

ड्यूटेरियम एवं ट्रिटियम (हाइड्रोजन के समस्थानिक)

ऊर्जा का स्रोत

बड़े परमाणु के छोटे परमाणुओं में टूटने से

छोटे परमाणुओं के आपस में जुड़ने (फ्यूज़ होने) से

विस्फोटक क्षमता

कम (किलोटन तक)

अत्यधिक (मेगाटन तक)

संरचना


अपेक्षाकृत सरल


अत्यंत जटिल (दो चरणों वाला बम)

प्रभाव क्षेत्र


सीमित क्षेत्र में विनाश


व्यापक क्षेत्र में अत्यधिक विनाश

उत्पन्न तापमान 


लगभग 10 मिलियन डिग्री सेल्सियस


100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक

पहली बार उपयोग

वर्ष 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर

वर्ष 1952 में अमेरिका द्वारा पहला परीक्षण

वैश्विक एवं क्षेत्रीय प्रभाव

शक्ति-संतुलन में बदलाव

चीन का यह कदम अमेरिका एवं रूस जैसे परमाणु शक्तियों के समकक्ष अपनी स्थिति मजबूत करने की दिशा में एक संकेत है। यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हथियारों की एक नई दौड़ को जन्म दे सकता है।

भारत के लिए रणनीतिक चिंता

चीन की परमाणु क्षमताओं में यह वृद्धि भारत के लिए प्रत्यक्ष रणनीतिक चुनौती है। भारत की विश्वसनीय न्यूनतम निवारण (Credible Minimum Deterrence) नीति को नए सिरे से मूल्यांकन की आवश्यकता हो सकती है।

सामरिक स्थिरता पर प्रभाव

यदि हाइड्रोजन बम को किसी देश की ‘पहले प्रयोग नहीं’ (NFU) नीति में शामिल किया जाता है तो इससे प्रतिरोधक संतुलन (Deterrence Balance) पर प्रश्नचिह्न लग सकते हैं।

भारत की प्रतिक्रिया और संभावित कदम

रणनीतिक प्रतिक्रिया

भारत को अपनी रणनीतिक बल कमान (Strategic Forces Command) की समीक्षा करनी चाहिए और नई तकनीकों में निवेश करना चाहिए। अग्नि-VI जैसे उन्नत अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) पर ध्यान केंद्रित करना उपयुक्त होगा।

राजनयिक पहल

  • भारत को वैश्विक स्तर पर निरस्त्रीकरण (Disarmament) के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
  • भारत को CTBT (Comprehensive Nuclear-Test-Ban Treaty) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहिए।

आंतरिक सुरक्षा और तकनीकी निवेश

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय वैज्ञानिक संस्थानों को उन्नत अनुसंधान में लगाया जाना चाहिए।
  • बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) प्रणाली को अधिक मज़बूत करने की आवश्यकता है।
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