(प्रारंभिक परीक्षा: सामायिक घटनाओं से सबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न)
(मुख्या परीक्षा प्रश्नपत्र- 3; उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनके प्रभाव से सबंधित विषय)
संदर्भ
हाल ही में जारी ‘फार्च्यून ग्लोबल 500’ की सूची में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए चीन पहले स्थान पर काबिज हो गया है। इसमें अमेरिका की 118 कंपनियों के मुकाबले चीन की 124 कंपनियाँ, उनमे भी राज्य-स्वामित्व वाली 95 चीनी कंपनियाँ शामिल हैं।
चीन वैश्विक आर्थिक अग्रणी के रूप में
- चीन के राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों का उदय वर्ष 1998 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 15वीं कॉन्ग्रेस की रणनीतिक योजना का हिस्सा है, जिसमें कॉन्ग्रेस ने राज्य-क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन किया।
- चीन में खुदरा बाज़ार, विनिर्माण, उद्योग तथा कृषि क्षेत्र से जुडी राज्य-स्वामित्व वाली लाखों कंपनियाँ थी, जिनमें छोटी कंपनियों को छोड़कर या तो अधिकांश को बंद कर दिया गया या उनका निजीकरण कर दिया गया।
- 15वीं कॉन्ग्रेस ने पुनर्निर्माण के तहत राज्य-स्वामित्व वाली बड़ी कंपनियों को निगम का रूप देकर उन्हें विभिन्न शेयर बाज़ारों में सूचीबद्ध कर लाभकारी तथा प्रतिस्पर्द्धी बनाया गया।
- चीन ने नए उभरते उद्योग तथा तकनीकी क्षेत्र में 37 नई राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों की स्थापना की। वर्तमान में विश्व की 28% सबसे शक्तिशाली ईकाईयाँ राज्य-स्वामित्व में हैं, उनमें भी बड़े हिस्से पर चीन का प्रभुत्व है।
- बीते दो दशकों में चीन ने अमेरिका तथा यूरोप की विभिन्न तकनीकी कंपनियों का अधिग्रहण किया है, जो विभिन्न क्षेत्रों जैसे आई.टी., तेल, कोयला एवं खनिज क्षेत्र, मोबाइल फ़ोन तथा कंप्यूटर चिप्स से जुडी हुई थीं।
- वर्ष 2010 तक चीनी में राज्य-स्वामित्व वाली कंपनियों का 586 बिलियन डॉलर समुद्रपारीय परिसंपत्तियों पर नियंत्रण था।
- ‘यू.एस. सेंटर फ़ॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज़’ के अनुसार, वर्ष 2019 तक भारत की वर्तमान 2.8 ट्रिलियन डॉलर जी.डी.पी. की तुलना में चीन द्वारा अमेरिका में 2.7 ट्रिलियन डॉलर तथा यूरोप मे 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया गया।
चीनी प्रभुत्व का वैश्विक प्रभाव
- चीन अपनी सैन्य-शक्ति की बजाय राज्य-स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा उन वैश्विक क्षेत्रों पर अपना वैध स्थान चाहता है, जहाँ लंबे समय तक पश्चिमी देशों का उनकी सैन्य-शक्ति व बहुराष्ट्रीय निगमों के माध्यम से नियंत्रण था।
- चीन की राज्य-स्वामित्त्व वाली कंपनियों की बढ़ती प्रवृत्ति ने वैश्विक पर्यवेक्षकों को चिंतित कर दिया है। किंतु, भारतीय नीति-निर्माताओं पर इसका प्रभाव कम ही पड़ा है, जहाँ निजीकरण तेज़ी से चल रहा है।
भारत की स्थिति
- उभरते बाज़ारों वाले देशों जैसे- भारत, ब्राज़ील, मैक्सिको की ‘फार्च्यून ग्लोबल 500’ की सूची में कुल मिलाकर केवल 17 कंपनियाँ शामिल हैं।
- वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने भी नवरत्न योजना द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में सुधार की शुरुआत की।
- अधिक लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को निवेश, अधिग्रहण, उधार सहित रणनीतिक व परिचालन निर्णयों में स्वायत्ता प्रदान की गई।
- तत्कालीन सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को वैश्विक बनाने तथा विदेशों में परिसंपत्तियों व खनिजों के अधिग्रहण हेतु प्रोत्साहित किया।
- वाजपेयी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभुत्त्व वाले क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित किया तथा अनेक सार्वजनिक क्षेत्रक उद्यमों का निजीकरण कर दिया।
- सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के प्रभुत्त्व वाले उद्यमों जैसे- बिजली, पेट्रोलियम, उर्वरक तथा रसायन में मूल्य सुधार श्रृंखला की शुरुआत की।
- सार्वजनिक उद्यमों के उत्पादों की कम कीमतों ने निजी क्षेत्र के उद्यमों के प्रवेश को अनाकर्षक बना दिया। अत: निजी क्षेत्र के प्रवेश को सुगम बनाने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को पूर्ण बाज़ार कीमतों, यहाँ तक कि वैश्विक कीमतों को वसूल करने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
- वर्ष 2004 में यू.पी.ए. सरकार ने ‘लेट गो द स्माल एंड वीक’ नीति के तहत कई अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को शामिल कर नवरत्न योजना को और भी प्रभावी बनाया। साथ ही, घाटे में चल रही कंपनियों को चालू रखने या बंद करने हेतु सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम पुनर्निर्माण बोर्ड (Board for Reconstruction of Public Sector Enterprises) की स्थापना की गई।
वर्तमान सरकार की नीति
- भारत सरकार सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजानिक क्षेत्र उद्यमों जैसे भारत पेट्रोलियम, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया के निजीकरण के लिये तैयार है, जबकि चीन इन उद्यमों व परिसंपत्तियों के नियंत्रण के लिये आशान्वित है।
- ये उद्यम चीन का मुकाबला करने के लिये रणनीतिक महत्त्व वाले हैं, जो राफेल जेट या उधार पर ली गई रुसी सबमरीन से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत पेट्रोलियम के पास 17 देशों में परिसंपत्तियाँ तथा रणनीतिक तेल भंडार का एक बड़ा हिस्सा है।
भारतीय नीति के प्रभाव
- एन.डी.ए. सरकार के मूल्य सुधारों के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों की अंतर्निहित शक्ति तथा दक्षता स्पष्ट हो गई थी।
- भारतीय सार्वजनिक क्षेत्रक उद्यमों ने सरकारी प्रोत्साहन, किंतु नगण्य आर्थिक सहायता के साथ चीनी राज्य-स्वामित्त्व वाली कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा कर विदेशों में परिसंपत्तियों तथा संसाधनों का अधिग्रहण किया।
- वर्ष 2007 तक सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम सबसे बड़े विदेशी निवेशक थे, निजी क्षेत्र के निवेश में कटौती के कारण ये सबसे बड़े औद्योगिक निवेशक भी बन गए।
- शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया तथा भारतीय नौवहन के समर्थन में कमी भारतीय समुद्री व्यापार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी, जिसकी कमी चीन द्वारा पूरी की जा सकती है।
चुनौतियाँ
- इस संकट के समय में सार्वजनिक उद्यमों को सरकार द्वारा सहायता देने से इनकार ने औद्योगिक क्षमता में व्यापक अंतर पैदा कर दिया है।
- एच.एम.टी. के पतन से भारत मशीन टूल्स का 80% आयात करने को मजबूर है। साथ ही, आई.डी.पी.एल. तथा एच.ए.एल. जैसे फर्मास्यूटिकल सार्वजानिक उद्यमों के कमज़ोर होने से सक्रिय अवयवों (Active Indigrents) हेतु चीन पर निर्भरता बढ़ी है।
- बी.एच.ई.एल. को समर्थन की सरकारी उपेक्षा ने भारतीय बिजली बाज़ार पर चीनी प्रभुत्त्व स्थापित किया है।
- उपर्युक्त के साथ-साथ भारत नई उभरती प्रौद्यौगिकियों, जैसे सौर वेफ़र, कंप्यूटर चिप्स तथा ईवी बैटरी जैसे बाज़ारों में अभी अपनी उपस्थि नहीं दर्ज करा सका है।
आगे की राह
भारत में चीन से सीख लेते हुए रणनीतिक तथा उभरती प्रौद्यौगिकियो में नए सार्वजनिक क्षेत्रक उद्यमों की स्थापना की आवश्यकता है, जिसके लिये आरंभिक पूंजी तथा जोखिम की ज़रूरत होगी तभी भारत ‘विनिर्माण हब’ के रूप में स्वयं को स्थापित कर पाएगा।