(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र– 1: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे; सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र– 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन)
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय आवास और शहरी कार्य मंत्रालय (MoHUA) तथा जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय के मध्य एक आभासी (virtual) समारोह का आयोजन हुआ। इस दौरान 'समुद्री पर्यावरण में प्रवेश कर रहे प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या से ग्रसित शहरों' के संदर्भ में तकनीकी सहयोग के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया।
प्रमुख बिंदु
- परियोजना के क्रियाकलाप ‘स्वच्छ भारत मिशन-शहरी’ के उद्देश्यों के अनुरूप हैं। इसके अलावा, यह परियोजना स्थाई ‘ठोस अपशिष्ट प्रबंधन’ तथा वर्ष 2022 तक प्लास्टिक के एकल उपयोग को पूर्णतः समाप्त करने के प्रधानमंत्री के विजन पर केंद्रित है।
- उल्लेखनीय है कि दोनों राष्ट्रों इस परियोजना की परिकल्पना वर्ष 2019 में की थी। उस समय ‘समुद्री कचरे की रोकथाम’ के क्षेत्र में सहयोग करने के लिये दोनों पक्षों ने एक संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर भी किये थे।
- यह परियोजना उत्तर प्रदेश, केरल तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में साढ़े तीन वर्षों के लिये लागू की जाएगी। इस परियोजना के अंतर्गत मुख्यतः कानपुर, कोच्चि व पोर्टब्लेयर शहरों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
प्रभाव
- समुद्री अपशिष्ट पर्यावरण के लिये अत्यंत हानिकारक होते हैं, जो विश्व के मत्स्य और पर्यटन उद्योगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। प्लास्टिक के सूक्ष्म कण खाद्य श्रृंखला में भी प्रविष्ट कर जाते हैं, इससे समुद्री जीवों के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- वर्तमान में, सिंथेटिक सामग्रियों के बढ़ते उत्पादन व उपयोग के कारण महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र में प्लास्टिक अपशिष्ट भारी मात्रा में जमा हो रहा है। इस स्थिति ने नागरिकों और नीति-निर्माताओं को समान रूप से परेशान किया है।
- एक अनुमान के मुताबिक, कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 15-20 प्रतिशत हिस्सा नदियों के माध्यम से महासागरों तक पहुँचता है और इसमें लगभग 90 प्रतिशत भूमिका विश्व की 10 सबसे प्रदूषित नदियों की है। इन प्रदूषित नदियों में से दो नदी तंत्र ‘गंगा’ और ‘ब्रह्मपुत्र’ भारत में स्थित हैं।
- वर्तमान में, समुद्री अपशिष्ट उत्सर्जन की दृष्टि से भारत का विश्व में 12 वाँ स्थान है, जिसके वर्ष 2025 तक पाँचवें स्थान पर आने की संभावना है। भारत में प्लास्टिक की वार्षिक खपत लगभग 16.5 मिलियन टन है, इसमें लगभग 43 प्रतिशत हिस्सा एकल उपयोग प्लास्टिक (single use Plastic) उत्पादों का है।
निहितार्थ
- उल्लेखनीय है कि देश में प्लास्टिक अपशिष्ट और विशेष रूप से समुद्री अपशिष्ट के संदर्भ में सटीक आँकड़े उपलब्ध नहीं है। ऐसे में, यह परियोजना ‘स्वच्छ भारत मिशन-शहरी’ के क्रियान्वयन में सहायक सिद्ध होगी। इससे नदियों और अन्य जल निकायों में प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रवेश को रोकने में मदद मिलेगी।
- इसके माध्यम से प्लास्टिक कचरे का संग्रहण करने, कचरे के पृथक्करण की बेहतर प्रणाली विकसित करने तथा प्लास्टिक कचरे का विपणन करने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, बंदरगाहों और समुद्री अपशिष्टों के रख-रखाव में भी सुधार लाया जाएगा।
- इसके माध्यम से उन्नत रिपोर्टिंग प्रणाली तथा बेहतर डाटा प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सकेगा। इस उद्देश्य की परिपूर्ति के लिये जन-सामान्य का सहयोग भी लिया जाएगा। इसके अलावा, यह परियोजना डिजिटल माध्यम से पुनर्चक्रण उद्योग (Recycling Industry) को भी बढ़ावा देगी।
निष्कर्ष
- यह परियोजना शहरों के बेहतर कायाकल्प के लिये भारत व जर्मनी के ‘द्विपक्षीय विकास निगम’ का एक अनूठा प्रयास है।
- इस प्रकार, एक कुशल प्रणाली के विकास से शहरी निकायों में अपशिष्टों के पृथक्करण, संग्रहण, परिवहन और निपटान प्रक्रिया में सुधार होगा। फलतः नदीय व महासागरीय पारिस्थितिक तंत्र प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त रह सकेंगे।