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सिविल सेवा बोर्ड

( प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीयमहत्त्व की सामयिक घटनाएँ ; मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : विषय -लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका।)

हाल ही में, पंजाब सरकार द्वारा राज्य में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारियों के स्थानांतरण तथा नियुक्तियों पर निर्णय लेने हेतु तीन सदस्यीय सिविल सेवा बोर्ड का गठन किया गया है। यद्यपि सरकार के इस निर्णय से प्रदेश के राजनेताओं में असंतोष की स्थिति स्पष्ट दिख रही है।

सिविल सेवा बोर्ड (CSB) क्या है?

  • नौकरशाही को राजनीतिक हस्तक्षेप से अलग करने के लिये एवं अधिकारियों के राजनैतिक विद्वेष के चलते बार-बार स्थानांतरण को समाप्त करने के लिये वर्ष 2013 में उच्चत्तम न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को नौकरशाहों के जबरदस्ती किये जाने वाले स्थानांतरण तथा राजनीति मुक्त नियुक्ति पर विचार करने के लिये ‘सिविल सेवा बोर्ड’ के गठन का निर्देश दिया था।
  • राज्य सरकार की अधिसूचना के अनुसारइसकी अध्यक्षता प्रदेश के मुख्य सचिव करेंगे एवंइसके अलावा कार्मिक सचिवऔर वित्तीय आयुक्त (राजस्व) या गृह सचिव (जो भी क्रम में वरिष्ठ हो) या कोई समकक्ष इसके सदस्य होंगे।
  • ध्यातव्य है कि, सिविल सेवा बोर्ड किसी आई.ए.एस. के प्रवेश स्तर की भर्ती से लेकर उसके आगे की पदोन्नति (संयुक्त सचिव पद से नीचे तक) के लिये ज़िम्मेदार होगा।
  • यह बोर्ड, राज्य सरकारों को सिविल सेवा के अधिकारियों के लिये कम से कम दो साल का कार्यकाल सुनिश्चित करने के केंद्र के दिशानिर्देशों का पालन करने की बात करता है।
  • बोर्ड द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि 2 वर्ष के कार्यकाल से पहले उनका स्थानांतरण नहीं किया जा सकता है और यदि कोई राजनेता उनके स्थानांतरण की सिफारिश करता है तो बोर्ड उसकी जाँच करेगा और यथा सम्भव कार्यवाही करेगा।
  • यद्यपि इस बोर्ड पर, अंतिम अधिकार मुख्यमंत्री का है।

पिछली सरकार का रवैया :

  • पिछली सरकार ने इन दिशानिर्देशों का पालन करने से इनकार करते हुए तर्क दिया था कि आई.ए.एस. अधिकारियों की नियुक्ति और उनका स्थानांतरण राज्य का विशेषाधिकार है।
  • आधिकारियों के स्थिर कार्यकाल होने के खिलाफ यह तर्क दिया गया था कि इससे न केवल कार्यात्मक और प्रशासनिक समस्याएँ पैदा होंगीबल्कि इससे राज्य सरकार का अधिकार क्षेत्र भी खत्म हो जाएगा।

राजनेता क्यों परेशान हैं?

  • राज्य में सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक नेतृत्व का आमतौर पर राज्य के जिला अधिकारियों की पोस्टिंग और स्थानांतरण में बड़ा दखल होता है।
  • जब से सत्तारूढ़ सरकार ने सत्ता सम्भाली हैतब से ही उसके नेताओं का यह दावा है कि उन्हें अपने ही शासन में उचित सम्मान नहीं मिलता है।
  • इस मुद्दे को लेकर अतीत में कई टकराव हुए हैं।
  • स्थिर और निश्चित कार्यकाल के नियम और बोर्ड के मुख्य सचिव के पास स्थानांतरण का अधिकार होने की वजह से नेताओं को लगता है कि उनका प्रभाव शून्य हो गया है और सारी शक्ति मुख्य सचिव को सौंप दी गई है।
  • यदि किसी अधिकारी को उसका न्यूनतम कार्यकाल पूरा करने से पहले स्थानांतरित किया जाना है, तो बोर्ड स्थानांतरण के कारणों को दर्ज करेगा।
  • बोर्ड सम्बंधित अधिकारी से इस स्थानान्तरण पर उसके विचार मांगेगा और फिर इस पर निर्णय देगा कि क्या अधिकारी का कार्यकाल बीच में ही समाप्त किया जाना ठीक है या नहीं।

इसके पक्ष में सरकार का क्या तर्क है?

  • सरकार द्वारा इस विषय में कहा गया है कि यदि अधिकारियों का कार्यकाल निश्चित होता है तो वे और बेहतर प्रशासन दे पाएँगे।
  • राजनीतिज्ञों को खुश रखने के बजाय वे भी नियमों का यथोचित पालन कर पाएँगे और नियमों का पालन करते हुए खुद को सुरक्षित भी महसूस करेंगे।
  • सरकार ने यह भी कहा कि प्रत्येक अधिकारी को अपनी नई जगह को सही तरीके से समझने के लिये3-6 महीने की आवश्यकता होती है, जो इस दौरान मिल सकेगी।
  • अगर वह दो साल तक उस जगह रहेगा तो वह लोगों को बेहतर सेवा दे पाएगा।

आगे की राह :

सिविल सेवा के अधिकारियों को अकसर राजनैतिक दबाव में स्थानांतरित कर दिया जाता है जिससे न सिर्फ उनकी कार्यकुशलता प्रभावित होतीहै बल्कि क्षेत्र विशेष का विकास भी प्रभावित होता है अतः निश्चित रूप से किसी एक ऐसे बोर्ड की सख्त ज़रुरत है जो सिविल सेवकों के कार्य को किसी राजनैतिक दबाव में आने से रोके एवं उनके कार्यकाल को स्थिरता भी दे।

इस लिहाज़ से पंजाब सरकार द्वारा सिविल सेवा बोर्ड की स्थापना किया जाना एक स्वागत योग्य कदम है।

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