संदर्भ
हाल ही में, प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करना लोक सेवकों का प्रमुख उत्तरदायित्व है, जिससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। लोक सेवकों के सभी निर्णयों और कार्यों में राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा जाना चाहिये अर्थात् उनमें ‘नेशन फर्स्ट’ की संकल्पना स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होनी चाहिये। स्थानीय स्तर पर लिये गए निर्णयों को भी इसी कसौटी पर ही मापा जाना चाहिये।
लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता
- भारत की महान संस्कृति शाही व्यवस्थाओं और शाही मानसिकताओं से नहीं बनी है। भारत की प्राचीन परंपरा जनसाधारण की क्षमता को मज़बूत करने की रही है। यह पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करते हुए परिवर्तन और आधुनिकता को स्वीकार करने की समवेत भावना को दर्शाता है।
- इस परिप्रेक्ष्य में लोक सेवकों को तीन लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिये-
- जनसामान्य के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना।
- वैश्विक संदर्भ में निर्णय लेना।
- देश की एकता और अखंडता को मज़बूत करना।
शासन व्यवस्था में सुगमता
- लोक सेवकों द्वारा लिये जाने वाले कोई भी निर्णय और क्रियान्वित की जाने वाली नीतियों की प्रकृति इस प्रकार होनी चाहिये, जिनसे जनसाधारण के जीवन में न केवल सुगमता हो बल्कि वे इसे अनुभव कर पाने में भी सक्षम हों। जनसामान्य के सपनों को संकल्प के स्तर पर ले जाना तत्पश्चात् इस संकल्प को सिद्धि तक ले जाना ही लोक सेवकों का ध्येय होना चाहिये।
- योजनाएँ और प्रशासनिक मॉडल वैश्विक संदर्भ में विकसित करने के साथ-साथ उन्हें नियमित रूप से अद्यतन भी किया जाना चाहिये।
- शासन में सुधार स्वाभाविक, प्रयोगात्मक और समय के अनुरूप होना चाहिये। साथ ही, लोक सेवकों को अभाव के दौर में उभरे नियमों और मानसिकता से शासित न होकर प्रचुरता के दृष्टिकोण से निर्देशित होना चाहिये।
- इस संदर्भ में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के तहत वर्तमान पदस्थ अधिकारी ज़िले में नियुक्त रहे पिछले पदाधिकारियों को आमंत्रित कर सकते हैं और उनके द्वारा किये गए योगदान से लाभान्वित हो सकते हैं।
- लोक सेवकों द्वारा ‘स्वच्छ भारत’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसे प्रमुख सुधारों को अपने निजी जीवन में भी लागू किया जाना चाहिये ताकि शासन व्यवस्था में व्यावहारिक बदलाव लाया जा सके।