(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा : बुनियादी ढाँचा ; ऊर्जा ; संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास)
संदर्भ
- भारत 1.3 अरब की विशाल आबादी वाला देश है जिसे अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने एवं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को कम करने के वैश्विक प्रयासों में दोहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- स्वदेशी तकनीक के साथ संसाधनों का अनुकूलन करके भारत जलवायु परिवर्तन शमन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सुनिश्चित कर सकता है। अतः इस चुनौती से निपटने के लिये भविष्य की रणनीतियों के संदर्भ में जानना आवश्यक है।
ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित आँकड़े और संबंधित तथ्य
- भारत में वर्ष 2010-11 से 2016-17 के दौरान, प्रति व्यक्ति विद्युत खपत में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि इसी दौरान पीक डिमांड डेफिसिट में 9.8 प्रतिशत की तुलना में 1.6 प्रतिशत कमी देखी गई है, जो विद्युत की मांग एवं आपूर्ति दोनों पक्षों में सुधार को दर्शाता है। किंतु यह चिंतनीय है कि भारत में अभी भी प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत वैश्विक औसत का केवल एक तिहाई है।
ऊर्जा के स्त्रोत
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कुल स्थापित उत्पादन क्षमता (382 गीगावाट) में अंश (मार्च 2021 तक)
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कुल उत्पादित विद्युत में अंश
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ताप विद्युत संयंत्रों का योगदान
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55%
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71%
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नवीकरनीय अक्षय ऊर्जा स्रोतों (मुख्य रूप से, पवन और सौर) का योगदान
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24.7%
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10.7%
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- उपरोक्त आँकड़ों के अनुसार, ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से ताप विद्युत संयंत्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। साथ ही, स्वच्छ ऊर्जा के स्त्रोतों (पवन एवं सौर ऊर्जा) की तरफ झुकाव स्वच्छ ऊर्जा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है।
- ऊर्जा सुरक्षा के लिये ताप विद्युत पर भारत की निर्भरता अधिक है क्योंकि देश में कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, भारत की पड़ोसी भू-राजनैतिक परिस्थितियाँ पाइप्ड प्राकृतिक गैस की पहुँच सुनिश्चित करने में बाधक हैं।
- हालाँकि, वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान विद्युत की मांग में वृद्धि न होने और नवीकरणीय अक्षय ऊर्जा स्रोतों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि से थर्मल पॉवर प्लांट (TPP) द्वारा उत्पन्न विद्युत के उपभोग में कमी आई है, जिससे उत्पादन लागत में वृद्धि के कारण वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) और अंतिम रूप से विद्युत उपभोक्ताओं के प्रशुल्क में वृद्धि हो रही है।
फ़्लू-गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) प्लांट कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों के ग्रिप गैस उत्सर्जन से सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) को हटाने के लिए प्रौद्योगिकियों के एक सेट का उपयोग करते हैं।
कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्र के लिए, FGD सिस्टम ग्रिप गैसों में से ~95 प्रतिशत तक SO2 को हटा सकता है।
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ऊर्जा के क्षेत्र में भारत के नवीन प्रयास
- भारत ने विद्युत क्षेत्र के लिये एक प्रगातिशील ट्रांज़िशन कार्यक्रम तैयार किया है जिसमें दक्षता, विशिष्ट कोयला खपत, तकनीक, स्थापना वर्ष जैसे प्रमुख प्रदर्शन मानकों के आधार पर 36 गीगावाट स्थापित उत्पादन क्षमता की 211 टी.पी.पी. (इकाई आकार 210 मेगावाट से कम) को तय समय सीमा में सेवानिवृत्त किया जाएगा।
- बेसलोड विद्युत उत्पादन में होने वाली इस कमी को मौजूदा उच्च दक्षता-निम्न उत्सर्जन ताप विद्युत संयंत्रों (HELE- TPP) के उपयोग को बढ़ाकर पूरा किया जा सकता है, जिनका उपयोग वर्तमान में अक्षय ऊर्जा स्त्रोतों को बढ़ावा देने के लिये कम किया जा रहा है।
- न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) 8,700 मेगावाट की कुल उत्पादन क्षमता वाले 11 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का भी निर्माण कर रहा है जो बिना कार्बन उत्सर्जन के 24x7 विद्युत आपूर्ति करेंगे।
ऊर्जा परिवर्तन पहल से क्षमता में वृद्धि
- स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन पहल के कार्यान्वयन से, ऐसे 211 टी.पी.पी. जिनके जीवन विस्तार, आधुनिकीकरण और ग्रिप (फ्लू) गैस डिसल्फराइजेशन प्लांट (FGD) के रेट्रोफिट के लिये निर्वाह पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) की आवश्यकता होगी एवं उन्हें सेवामुक्त करने के बाद इकाइयों द्वारा संचालित टी.पी.पी. की कुल स्थापित क्षमता में वित्त वर्ष 2029-30 तक सितंबर 2021 के 209 गीगावाट की तुलना में 220 गीगावाट तक की वृद्धि हो सकती है।
- 235 गीगावाट की संयुक्त थर्मल (220 गीगावाट) और परमाणु (15 गीगावाट) क्षमता- वित्त वर्ष 2029-30 के पीक बेसलोड डिमांड (उच्चतम मांग का 80 प्रतिशत) को बिना महंगी बैटरी स्टोरेज के पूरा कर सकेगी।
- जबकि मौजूदा एवं निर्माणाधीन एच.ई.एल.ई.-टी.पी.पी. की तेज़-रैंपिंग क्षमताओं एवं उनकी तकनीकी न्यूनता का इष्टतम उपयोग कर वी.आर.ई. समाकलन को भी सुनिश्चित किया जा सकता है।
- इस कार्यक्रम के फलस्वरूप टी.पी.पी. से विद्युत उत्पादन वित्त वर्ष 2020-21 के 71 प्रतिशत के स्तर से घटकर वर्ष 2029-30 के दौरान 57 प्रतिशत होने की उम्मीद है।
- इसके अलावा, कुल टी.पी.पी. उत्पादन क्षमता में एच.ई.एल.ई. टी.पी.पी. की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2018-19 के 25 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर वित्त वर्ष 2029-30 में 44 प्रतिशत हो जाएगी।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि कुल टी.पी.पी. उत्पादन क्षमता में अप्रचलित प्रौद्योगिकी वाली अक्षम टी.पी.पी.की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2018-19 के 46 प्रतिशत के स्तर से घटकर 4 प्रतिशत हो जाएगी।
- नतीजतन, कोयले से चलने वाले विद्युत संयंत्रों के विद्युत उत्पादन में अनुमानित 21 प्रतिशत की वृद्धि (1,234 BU) के बाद भी कुल CO2 उत्सर्जन में वर्ष 2029-30 तक 57 मीट्रिक टन (MT) की कमी अपेक्षित है।
महत्त्व
- भारत की स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन पहल परिचालन लाभ के अलावा आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से भी लाभप्रद है, क्योंकि इससे कोयले की खपत में कमी, सेवामुक्त होने वाले 211 टी.पी.पी. की मरम्मत में होने वाले पूंजीगत व्यय से राहत और एफ.जी.डी. के लिये अतिरिक्त व्यय में कटौती के साथ पार्टिकुलेट मैटर (pM), SO2, और NO2 के उत्सर्जन भी कमी आएगी।
- यह पहल उच्च दक्षता वाले इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर्स की स्थापना को प्राथमिकता देती है जो महंगे, आयातित एफ.जी.डी. के विपरीत व्यापक शटडाउन या हाइकिंग टैरिफ के बिना 99.97 प्रतिशत पी.एम. प्रदूषण को हटा सकते हैं।
- इस पहल के कार्यान्वयन से भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनश्चित करते हुए जल की खपत को न्यून कर सकता है एवं पी.एम. प्रदूषकों और CO2 के उत्सर्जन में कमी कर कुशल ग्रिड संचालन को भी सुनिश्चित कर सकता है।
निष्कर्ष
- सरकार को ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और टी.पी.पी. से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और वायुजनित प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। हालाँकि, यह भी ध्यान रखना होगा कि उद्योगों को रियायती दरों पर निर्बाध विद्युत की प्राप्ति हो सके।
- ऊर्जा सुरक्षा के लिये तैयार स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन पहल स्वदेशी प्रौद्योगिकी के साथ भूमि, कोयला, जल और वित्तीय संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करके जलवायु परिवर्तन शमन के लिये भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।