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जलवायु परिवर्तन एवं बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि

 (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: जलवायु परिवर्तन, आपदा एवं आपदा प्रबंधन)

संदर्भ

  • विश्व के विभिन्न हिस्से बाढ़ की गंभीर समस्या से ग्रस्त है। ऑस्ट्रिया, चेक गणराज्य, पोलैंड एवं रोमानिया के कई क्षेत्रों में भारी वर्षा हुई है। संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, केन्या, ब्राज़ील, ब्रिटेन आदि में अत्यधिक वर्षा, बाढ़ एवं भू-स्खलन के साथ-साथ लोगों को विस्थापन का भी सामना करना पड़ा है।
  • भारत को भी प्रतिवर्ष भयानक बाढ़ का सामना करना पड़ता है। अत्यधिक वर्षा एवं वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन में जलवायु परिवर्तन की भी प्रमुख भूमिका है। वैश्विक तापमान में वृद्धि से बाढ़ की समस्या बदतर होने की उम्मीद है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्र भी बाढ़ से अत्यधिक प्रभावित हैं। 

जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य 

  • जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर तापमान, वर्षा और अन्य वायुमंडलीय स्थितियों में दीर्घकालिक परिवर्तनों को संदर्भित करता है। 
  • यह मुख्यत: मानवीय गतिविधियों, जैसे- जीवाश्म ईंधन के दहन, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं के कारण होता है। ये गतिविधियाँ वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता में वृद्धि करती हैं। 
  • इसके परिणामस्वरूप वैश्विक तापन होता है, जिससे बारम्बार और मौसम की गंभीर घटनाएँ हो सकती हैं, समुद्र का स्तर बढ़ सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र व मानव समाज पर अत्यधिक प्रभाव पड़ सकता है।

बाढ़ से तात्पर्य

  • बाढ़ एक ऐसी स्थिति है, जब आमतौर पर सूखी रहने वाली भूमि पर एक निश्चित समय के लिए जल का अतिप्रवाह होने लगता है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है, जिसमें भारी वर्षा, तेजी से बर्फ पिघलना, बांधों का टूटना या चक्रवात जनित तूफ़ानी लहरें शामिल हैं। 
  • बाढ़ से संपत्ति, बुनियादी ढांचे तथा पारितंत्र को काफी नुकसान हो सकता है और ये मानव सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए गंभीर जोखिम उत्पन्न करते हैं।

अत्यधिक बाढ़ के लिए जिम्मेदार विज्ञान 

  • वातावरण में मुक्त ग्रीनहाउस गैसें एक कंबल की तरह कार्य करती हैं जो ऊष्मा को वायुमंडल से बाहर जाने से रोकती हैं और तापमान में वृद्धि करती हैं। 
  • इसके परिणामस्वरूप भूमि एवं समुद्र में जल का अधिक तेज़ी से वाष्पीकरण होता है और वायु में आर्द्रता बढ़ जाती है, अर्थात जब वर्षा होती है, तो वायु में अधिक जल होता है तथा अल्प समय में ही भारी मात्रा में वर्षा हो सकती है। यह बाढ़ का कारण बन सकता है। 
  • वस्तुतः गर्म वायु में अधिक नमी धारण करने की क्षमता होती है। 1 डिग्री सेल्सियस की प्रत्येक वृद्धि के साथ वायु की नमी धारण क्षमता 7% बढ़ जाती है। पूर्व-औद्योगिक युग से वैश्विक वायु तापमान में लगभग 1.3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
  • तापमान में वृद्धि के कारण बर्फबारी के बजाय अधिक वर्षा होती है, जिससे ऊंचाई वाले क्षेत्र बाढ़ एवं भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। 
  • नेचर जर्नल में प्रकाशित वर्ष 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, उत्तरी गोलार्द्ध के बर्फीले, अधिक ऊंचाई वाले हिस्सों में 1 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ वर्षा की चरम सीमा औसतन 15% बढ़ जाती है।

जलवायु परिवर्तन एवं बाढ़ के मध्य संबंध 

वर्षा की मात्रा में वृद्धि

  • जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा के परिणामस्वरूप जल निकासी व्यवस्थाएँ चरमरा जाती हैं और अचानक बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए, अप्रैल 2024 में भारी बारिश के कारण संयुक्त अरब अमीरात में बाढ़ आ गई, जिससे मुख्यत: दुबई एवं शारजाह सहित अन्य अमीरातों (प्रांतों) के विभिन्न क्षेत्र प्रभावित हुए। यह संयुक्त अरब अमीरात में 75 वर्षों में दर्ज की गई सर्वाधिक वर्षा थी। 
  • ऐसा माना जा रहा है कि जीवाश्म ईंधनों के जलने से अप्रैल एवं मई में ब्राजील में बाढ़ की संभावना दोगुनी हो गई है तथा बाढ़ का दबाव 9% तक अधिक हो गया है।

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (IPCC) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ भारी वर्षा 10 वर्ष में एक बार होती थी, जबकि अब प्रत्येक दशक में 1.5 बार होगी तथा नमी में वृद्धि होगी।

समुद्र का बढ़ता स्तर 

  • वैश्विक तापन के परिणामस्वरूप ध्रुवीय बर्फ के पिघलने और जल के ऊष्मीय विस्तार से समुद्र के वृद्धिशील स्तर में अधिक वृद्धि होती है, जिससे तटीय बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
    • उदाहरण के लिए, मुंबई में समुद्र स्तर में सर्वाधिक वृद्धि (4.44 सेमी.) हुई है। इसके बाद हल्दिया, विशाखापत्तनम, कोच्चि, पारादीप एवं चेन्नई का स्थान है।

ग्लेशियल का पिघलना 

  • ग्लेशियरों के पिघलने और ग्लेशियल झीलों के फटने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। इसके परिणामस्वरूप विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़ की घटनाएं भी बढ़ गई हैं।
    • उदाहरण के लिए, जून 2013 में केदारनाथ घाटी में ग्लेशियल झील फटने से बाढ़ (GLOF) के कारण 6,000 लोगों की मौत हुई थी। फरवरी 2021 में चमोली की ऋषिगंगा घाटी और अक्तूबर 2023 में सिक्किम में ऐसी ही घटना हुई थी।

मौसम के प्रतिरूप में बदलाव

  • जलवायु परिवर्तन से पारंपरिक मौसम प्रतिरूप में परिवर्तन हो जाता है, जिससे अप्रत्याशित बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है। एक नए अध्ययन के अनुसार, पिछले एक दशक में भारत में मानसून प्रतिरूप तेजी से बदलता हुआ और अनियमित रहा है।
    • उदाहरण के लिए, केरल में वर्ष 2018 में अल्प समय में हुई तीव्र वर्षा के कारण विनाशकारी बाढ़ आई थी।

चक्रवात की तीव्रता में वृद्धि 

  • वैश्विक तापन और जल व समुद्र की सतह का बढ़ता हुआ तापमान चक्रवाती वर्षा में वृद्धि का एक कारण है तथा यह तूफानी हवा की गति में वृद्धि का भी एक कारक है।
    • उदाहरण के लिए, मई 2020 में पूर्वी भारत, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा और बांग्लादेश में सुपर चक्रवाती तूफान अम्फान से व्यापक क्षति हुई।

नदी बाढ़ 

  • ब्रह्मपुत्र एवं गंगा जैसी प्रमुख नदी घाटियाँ जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ का सामना करती हैं।
    • उदाहरण के लिए, असम में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है, जो जलवायु परिवर्तनशीलता के कारण अधिक बदतर हो गई है।

शहरीकरण

  • तीव्र शहरीकरण प्राकृतिक जल निकासी को सीमित करता है और सतही अपवाह में वृद्धि करता है जिसके फलस्वरुप बाढ़ का जोखिम बढ़ जाता है।
    • उदाहरणस्वरुप, जुलाई 2024 में दिल्ली में भारी बारिश के दौरान जल निकासी की उचित व्यवस्था न होने से एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में तीन अभ्यर्थियों की मौत हो गई। 

वैश्विक स्तर पर बाढ़ से प्रभावित लोग

  • एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2000 के बाद से बाढ़ से प्रभावित लोगों के अनुपात में 24% की वृद्धि हुई है।
  • वर्तमान में 1.8 बिलियन लोग (वैश्विक आबादी का लगभग एक-चौथाई) 100 वर्ष में एक बार बाढ़ से प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित होते हैं। 
  • यूरोप में जर्मनी में बाढ़ के जोखिम वाले लोगों की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद फ्रांस एवं नीदरलैंड हैं।
  • अनुमानत: बाढ़ के उच्च जोखिम वाले 89% लोग निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में निवास करते हैं। इनमें से अधिकांश दक्षिण एवं पूर्वी एशिया में रहते हैं, जिनमें से 395 मिलियन लोग चीन में और 390 मिलियन भारत में बाढ़ के जोखिम वाले हैं।
  • एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1985 के बाद से बाढ़ के अत्यधिक उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों की संख्या में 122% की वृद्धि हुई है। 

भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयास 

  • राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) : इसको वर्ष 2008 में शुरू किया गया। यह जल संसाधन एवं आपदा प्रबंधन सहित विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु अनुकूलन व शमन के लिए रणनीतिक रूपरेखा तैयार करती है।
  • राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (SAPCC) : इसके तहत प्रत्येक भारतीय राज्य ने बाढ़ एवं जल प्रबंधन सहित स्थानीय संवेदनशीलता पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी कार्य योजना विकसित की है।
  • बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (FMP) : इसके माध्यम से केंद्र सरकार ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना से राज्यों/संघ शासित प्रदेशों को बाढ़ प्रबंधन एवं नियंत्रण के उद्देश्य से परियोजनाओं से संबंधित व्यय के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • बाढ़ प्रबंधन एवं सीमा क्षेत्र कार्यक्रम (FMBAP) : इसका उद्देश्य वर्ष 2021-2026 की अवधि के लिए बाढ़ नियंत्रण एवं कटाव रोधी उपायों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना है।
  • नदी प्रबंधन गतिविधियाँ और सीमा क्षेत्रों से संबंधित कार्य (RMBA) : ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत सरकार ने गैर-संरचनात्मक उपाय के लिए RMBA के कार्यान्वयन को मंजूरी दी थी। इसके तहत साझा सीमा नदियों पर जल विज्ञान संबंधी अवलोकन एवं बाढ़ पूर्वानुमान कार्य तथा विभिन्न देशों व हितधारक संस्थाओं के साथ सहयोग शामिल है।
  • आपदा प्रबंधन ढांचा : आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005) के तहत बाढ़ सहित आपदा प्रतिक्रिया के लिए एक ढांचा स्थापित किया गया है और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) इन प्रयासों का समन्वय करता है।
  • वनीकरण को बढ़ावा : ग्रीन इंडिया मिशन जैसे राष्ट्रीय अभियान का उद्देश्य वन क्षेत्र को बढ़ाना है, जो अतिरिक्त वर्षा को अवशोषित करने और बाढ़ के जोखिम को कम करने में सहायक है।
  • सामुदायिक जागरूकता एवं भागीदारी : बाढ़ के जोखिमों एवं तैयारियों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने संबंधी कार्यक्रम तथा बाढ़ की घटनाओं के लिए स्थानीय लचीलापन बढ़ाना आदि महत्त्वपूर्ण है।

बाढ़ जोखिम शमन योजना (FRMS)

  • इस योजना में निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल हैं : 
    • मॉडल बहुउद्देश्यीय बाढ़ आश्रयों के विकास के लिए पायलट परियोजनाएँ 
    • बाढ़ की स्थिति में ग्रामीणों को निकासी के लिए पूर्व चेतावनी देने हेतु जलप्लावन मॉडल तैयार करने के उद्देश्य से नदी बेसिन विशेष बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली और 
    • डिजिटल ऊंचाई मानचित्रों का विकास। 
  • इस योजना के अंतर्गत बाढ़ संभावित राज्यों को उपरोक्त दो गतिविधियों के संबंध में पायलट परियोजना शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जानी है। 
    • हालांकि, अभी इसकी योजना तैयार की जा रही है।

जलवायु परिवर्तन एवं बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए सुझाव 

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना : जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन, जल) के अधिक प्रयोग के लिए प्रभावी प्रयास किए जाने चाहिए।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली : बाढ़ के खिलाफ प्राकृतिक बफर के रूप में कार्य करने के लिए आर्द्रभूमि, जंगल व मैंग्रोव की सुरक्षा एवं पुनर्स्थापना पर बल दिया जाना चाहिए। 
  • शहरी नियोजन में सुधार : भारी वर्षा के दौरान जल को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए बेहतर जल निकासी प्रणालियों और हरित बुनियादी ढांचे के साथ शहरों को डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
  • जलवायु-लचीले बुनियादी ढांचे में निवेश : बाढ़ से बचाव और लचीली सड़कों सहित चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण तथा उसका नवीनीकरण करने की आवश्यकता है।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली : बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने और प्रभावित आबादी को चेतावनी प्रसारित करने के लिए उन्नत मौसम विज्ञान प्रणालियों को स्थापित किया जाना चाहिए।
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