(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने तापमान को रिकॉर्ड करने की शुरूआत के बाद से वर्ष 2024 को अब तक का सबसे गर्म वर्ष घोषित किया है। इस वर्ष पृथ्वी का औसत वार्षिक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों (1850-1900 की अवधि) से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
भारत की स्थिति
- भारत मौसम विज्ञान विभाग ने भी वर्ष 2024 को भारत के लिए सबसे गर्म वर्ष घोषित किया है। हालाँकि, भारत में तापमान वृद्धि की सीमा पूरी दुनिया से बहुत अलग है।
- आई.एम.डी. के अनुसार, वर्ष 1991-2020 की अवधि के सामान्य औसत तापमान की अपेक्षा वर्ष 2024 में तापमान सामान्य से 0.65 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।
भारत एवं विश्व में तापमान वृद्धि और तुलनात्मक आधार
- भारत में तापमान वृद्धि की तुलना पूरी दुनिया से करने के लिए 1901-1910 की अवधि का औसत अधिक उपयोगी आधार रेखा माना गया है। आई.एम.डी. के डाटा से पता चलता है कि वर्ष 2024 में भारत में तापमान 1901-1910 के औसत से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
- हालाँकि, यह तुलना का संतुलित आधार नहीं है क्योंकि भारत में तापमान वृद्धि में केवल स्थल की सतह के तापमान वृद्धि को ध्यान में रखा जाता है। दूसरी ओर, वैश्विक तापमान वृद्धि में स्थल के साथ-साथ महासागरों के तापमान के औसत को शामिल किया जाता है।
- स्थलीय सतह महासागरों की तुलना में काफी अधिक गर्म हो गई है क्योंकि वाष्पीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से महासागरों में स्वयं को ठंडा करने की अधिक क्षमता होती है। गर्म पानी वाष्पित हो जाता है, जिससे समुद्र का बाकी हिस्सा अपेक्षाकृत ठंडा रह जाता है।
- वर्ष 2024 के लिए वैश्विक रूप से स्थलीय सतह एवं महासागरों पर तापमान में वृद्धि का ब्यौरा तत्काल उपलब्ध नहीं है किंतु पिछले आँकड़ों से पता चलता है कि स्थल का तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.6 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ गया है, जबकि महासागरों में लगभग 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
भारत एवं वैश्विक तापमान में भिन्नता के कारण
- भारत में 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि वैश्विक रूप से स्थलीय सतह के 1.6 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान से काफी कम है। इसके विभिन्न कारण है-
- भारत उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में स्थित है, जोकि भूमध्य रेखा के निकट है। वैश्विक तापमान में वृद्धि भूमध्य रेखा के पास की तुलना में ध्रुवीय क्षेत्रों के पास, अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में ज्यादा स्पष्ट रही है। इसका कारण वायुमंडलीय घटनाओं की सामूहिक जटिलता है जिसमें वायु परिसंचरण की प्रचलित प्रणालियों के माध्यम से उष्णकटिबंध से ध्रुवों तक ऊष्मा का स्थानांतरण शामिल है।
- विश्व का अधिकांश भूभाग ऊँचे इलाकों में स्थित है। ध्रुवीय क्षेत्रों, विशेषकर आर्कटिक में तापमान में काफी वृद्धि देखी गई है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र में वैश्विक औसत की तुलना में तापमान में कम-से-कम दो गुना वृद्धि देखी गई है।
चुनौतियां
- भारत का भूभाग एक समान नहीं है। भारत में औसत तापमान वृद्धि देश के विभिन्न भागों में अनुभव किए जा रहे तापमान के विभिन्न स्तरों को नहीं दर्शाता है।
- उदाहरण के लिए, हिमालय में तापमान वृद्धि की प्रकृति और प्रभाव तटीय क्षेत्रों की तुलना में बहुत अलग है। जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की संवेदनशीलता बहुत अधिक है।
- वैश्विक जलवायु मॉडल भारतीय क्षेत्र और वैश्विक क्षेत्रों में हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बदलावों को बहुत अधिक सटीकता से नहीं दर्शाते हैं।
- पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय प्रबंधन संस्थान या हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना प्रणाली केंद्र जैसी मौसम व जलवायु संबंधी अन्य एजेंसियों को भी डाटा सटीकता से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- भारत-विशिष्ट पहला जलवायु परिवर्तन प्रभाव आकलन वर्ष 2020 में किया गया। इसने जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों की समझ में एक बड़ा अंतराल उत्पन्न किया है जिसका मुख्य कारण समय-समय पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन नहीं होना है। हालाँकि, यह एक सतत अभ्यास की आवश्यकता है।
- मौसम निगरानी नेटवर्क का विस्तार करना तथा कंप्यूटिंग एवं विश्लेषण क्षमताओं को मजबूत करना एक पूर्व-आवश्यकता है। मिशन मौसम की शुरुआत इसी उद्देश्य से की गई है।
क्या किया जाना चाहिए
- वर्ष 2047 में विकसित भारत के लिए देश के कम-से-कम हर गांव में एक मौसम निगरानी स्टेशन होना चाहिए।
- आई.एम.डी. देश के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। कुछ समय पहले तक यह केवल वर्षा या तापमान की जानकारी ही देता था, जिसका सीमित उपयोग होता था।
- वर्तमान में मौसम संबंधी इसकी जानकारी आपदा प्रबंधन, बिजली उत्पादन प्रबंधन, परिवहन, पर्यटन एवं इवेंट मैनेजमेंट के लिए महत्वपूर्ण है। इसे अधिक प्रभावी एवं उपयोगी बनाने के लिए इसकी क्षमताओं को मजबूत करने की आवश्यकता है।
- भारत को जलवायु अवलोकन और प्रभावों के आकलन में अपनी क्षमताओं को मजबूत करने की आवश्यकता है तथा भारतीय भूभाग के आसपास के महासागरों पर निगरानी नेटवर्क अभी अपर्याप्त है। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।