New
IAS Foundation Course (Prelims + Mains): Delhi & Prayagraj | Call: 9555124124

राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दे के रूप में जलवायु परिवर्तन

(प्रारंभिक परीक्षा, सामान्य अध्ययन 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।| आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका।| सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन- संगठित अपराध और आतंकवाद के बीच संबंध।)

संदर्भ 

  • हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन केवल मौसम से संबंधित घटना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक बहुत गंभीर मुद्दा है ।
  • जलवायु परिवर्तन हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जो पर्यावरण को प्रभावित करने के साथ ही दुनिया भर के देशों की स्थिरता एवं सुरक्षा को भी प्रभावित कर रहा है। 

क्या है जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य तापमान, वर्षा, वायु प्रवाह के पैटर्न और पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के अन्य तत्वों में दीर्घकालिक परिवर्तनों से है। 
  • यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं से प्रेरित है, जो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन (CH4) जैसी ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता  में वृद्धि करते हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभाव

  • वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि 
  • हिगलन और बढ़ता समुद्र स्तर  
  • चरम मौसमी घटनाओं जैसे तूफान, सूखा, बाढ़ और वनाग्नि की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि
  • महासागरीय अम्लीकरण में वृद्धि  
  • जैव विविधता में कमी 
  • खाद्य एवं जल सुरक्षा के लिए खतरा 

राष्ट्रीय सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन में संबंध 

संसाधनों की कमी

  • वैश्विक तापमान  में वृद्धि से मौसम प्रतिरूप में अनिश्चितता से सूखा, बाढ़ और कृषि की स्थिति में बदलाव होता है। यह परिवर्तन आवश्यक संसाधनों, विशेष रूप से पानी और भोजन की उपलब्धता को ख़तरे में डालता है।
  • जल की कमी : संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वर्ष 2025 तक वैश्विक आबादी के दो-तिहाई हिस्से को जल की कमी का सामना करना पड़ सकता है। यह जल की दुर्लभ उपलब्धता वाले क्षेत्रों में तनाव उत्पन्न कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, नील नदी बेसिन के देश लंबे समय से जल उपयोग को लेकर संघर्ष में उलझे हुए हैं, जो नदी जल प्रवाह में जलवायु-प्रेरित परिवर्तनों से और भी बढ़ गया है।
    • भारत में अंतर्राज्यीय जल विवादों का तीव्र होना (जैसे, कावेरी नदी विवाद)।
  • खाद्य सुरक्षा : जलवायु परिवर्तन से वर्षा प्रतिरूप में बदलाव और कीटों के बढ़ते प्रकोप के कारण कृषि उपज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक जलवायु परिवर्तन से कुछ क्षेत्रों में फसल की पैदावार 10 से 25% तक कम हो सकती है। 
    • खाद्य असुरक्षा के कारण कीमतें में वृद्धि से नागरिक अशांति उत्पन्न हो सकती है बड़े पैमाने पर पलायन  को बढ़ावा देगी।  

आर्थिक प्रभाव

  • प्राकृतिक आपदाएँ प्रतिवर्ष देशों को अरबों डॉलर का नुकसान पहुँचाती हैं और आर्थिक गतिविधियों को बाधित करती हैं, जिससे राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न HO9 सकती है। 
  • आपदा प्रतिक्रिया लागत : राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (NOAA) के अनुसार अमेरिका ने वर्ष 2022 में, 18 अलग-अलग मौसम और जलवायु आपदाओं का अनुभव किया जिससे देश को लगभग 1 बिलियन डॉलर की क्षति पहुँची थी। 
  • दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता : कृषि, पर्यटन या मत्स्य पालन पर अत्यधिक निर्भर रहने वाले राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, पर्यटन पर निर्भर मालदीव को बढ़ते समुद्री स्तर से अस्तित्व संबंधी खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
    • भारत के महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में भयंकर सूखा की स्थिति के परिणामस्वरूप कई किसानों ने आत्महत्या की है। 

मानव विस्थापन

  • चरम मौसमी घटनाएँ, समुद्र-स्तर में वृद्धि और बदलते पारिस्थितिकी तंत्र समुदायों को स्थानांतरित होने के लिए मजबूर कर सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर पलायन हो सकता है।
  • आंतरिक विस्थापन : जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2021 में वैश्विक स्तर पर 23.7 मिलियन लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए। विश्व प्रवास रिपोर्ट, 2024 के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक छह महाद्वीपों के 216 मिलियन से अधिक लोग अपने देशों के भीतर पलायन करेंगे।
    • हैती में आए विनाशकारी भूकंप (2010) के कारण लगभग तीन लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो गई और कई लोगों को पुनर्वास के लिए अपर्याप्त सरकारी सहायता के कारण पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
    • पलायन शहरी केंद्रों और मेज़बान समुदायों पर दबाव उत्पन्न करते हैं, जिससे नौकरियों, संसाधनों और सेवाओं के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन : ऑस्ट्रेलिया के अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य मौसम संबंधी घटनाओं के कारण वर्ष 2050 तक कम से कम 1.2 बिलियन नए जलवायु शरणार्थी उत्पन्न हो सकते हैं।
    • यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रभावित कर सकती  है। ऐसे में देशों द्वारा  सीमा प्रतिबंधों या सैन्यीकृत प्रतिक्रियाओं से तनाव बढ़ सकता है।

जलवायु शरणार्थी

  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के विशेषज्ञ एसाम एल-हिनावी ने वर्ष 1985 में जलवायु शरणार्थियों को ऐसे लोग के रूप में परिभाषित किया है जिन्हें पर्यावरणीय व्यवधान के कारण अस्थायी या स्थायी रूप से अपने पारंपरिक निवास स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया है। इन्हें पर्यावरण प्रवासी भी कहा जाता है। 
  • कारण :
    • चरम मौसमी घटनाएँ (जैसे, तूफान, बाढ़)
    • समुद्र का बढ़ते जल स्तर से तटीय समुदायों पर प्रभाव  
    • लम्बे समय तक सूखे के कारण जल की कमी
    • मरुस्थलीकरण से कृषि योग्य भूमि में कमी 
    • कानूनी स्थिति : जलवायु शरणार्थियों को प्राय: पारंपरिक शरणार्थियों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत मान्यता नहीं मिलती।

भू-राजनीतिक तनाव

  • जैसे-जैसे संसाधन कम होते जा रहे हैं, राष्ट्र अपनी ज़रूरत की चीज़ों को प्राप्त करने के लिए आक्रामक रणनीति अपना सकते हैं।
  • क्षेत्रीय विवाद : आर्कटिक की पिघलती बर्फ नए शिपिंग मार्ग और अप्रयुक्त प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच के मार्ग खोल रही है। 
    • रूस, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देश इन क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिए तेज़ी दिखा रहे हैं, जिससे संघर्ष हो सकता है। 
  • प्रॉक्सी संघर्ष : पहले से ही अस्थिरता का सामना कर रहे क्षेत्रों में, जलवायु-प्रेरित संसाधन की कमी प्रॉक्सी संघर्षों को बढ़ावा दे सकती है। 
    • उदाहरण के लिए, मध्य पूर्व में, पानी की कमी राज्यों के बीच तनाव को और बढ़ा सकती है। 

स्वास्थ्य जोखिम

  • बढ़ते तापमान और बदलते पारिस्थितिकी तंत्र से बीमारियों एवं स्वास्थ्य संकटों की दर बढ़ सकती है।
  • वेक्टर जनित रोग : जलवायु परिवर्तन मच्छरों और टिक्स जैसे रोग फैलाने वाले जीवों के आवासों को बदल देता है। 
    • मलेरिया और डेंगू बुखार जैसी बीमारियों का प्रसार स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य : आपदाओं से होने वाले आघात और विस्थापन के तनाव सहित जलवायु परिवर्तन का मनोवैज्ञानिक प्रभाव दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। 

सामाजिक अशांति और उग्रवाद

  • आर्थिक कठिनाइयां, संसाधनों की कमी और बड़े पैमाने पर विस्थापन समाज के भीतर संघर्ष को बढ़ा सकते हैं।
  • नागरिक अशांति : जैसा कि अरब स्प्रिंग में देखा गया था, जिसके कारणों में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी खाद्य कीमतों में वृद्धि भी शामिल था, सामाजिक अशांति पर्यावरणीय तनावों से बढ़े हुए कथित अन्याय और असमानताओं से उत्पन्न हो सकती है। 
    • सोमालिया और सूडान जैसे क्षेत्रों में लगातार सूखे के कारण व्यापक अकाल व सामाजिक अशांति उत्पन्न हुई है। 
  • कट्टरपंथ : संवेदनशील आबादी विशेष रूप से  विस्थापित व्यक्ति, चरमपंथी समूहों द्वारा भर्ती किए जाने के लिए ज़्यादा संवेदनशील होते हैं। ये समूह जलवायु परिवर्तन से प्रभावित लोगों की चुनौतियों का फ़ायदा उठा सकते हैं। फलतः आतंकवाद और हिंसा में वृद्धि हो सकती है। 
    • उदाहरण के लिए, बांग्लादेश (1991) में आए सुपर साइक्लोन के बाद कई नागरिक घरों और आजीविका के नुकसान के कारण कट्टरपंथ की चपेट में आ गए।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए पहल 

  • प्रधानमंत्री मोदी का दस सूत्रीय एजेंडा : आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (2016) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के लिए दस सूत्रीय एजेंडा की रूपरेखा पेश की थी। 
    • इस एजेंडे में इस बात पर बल दिया गया कि जोखिम कवरेज समावेशी होना चाहिए, जिसमें छोटे घरों से लेकर बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक सभी को शामिल किया गया हो।

जोखिम कवरेज के दो पहलू हैं –

  • भौतिक सुरक्षा : इसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, आपदा न्यूनीकरण रणनीतियाँ और प्रभावी आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाएँ जैसे उपाय शामिल हैं। 
  • वित्तीय क्षतिपूर्ति : क्षति के लिए वित्तीय मुआवजे का आश्वासन महत्वपूर्ण है। इसके अभाव में व्यक्ति और समुदाय आपदाओं के आर्थिक प्रभावों से उबरने के लिए संघर्ष करते हैं।

पैरामीट्रिक बीमा

  • पैरामीट्रिक बीमा एक अभिनव वित्तीय उत्पाद है जो विशिष्ट खतरों से संबंधित पूर्व निर्धारित मापदंडों (जैसे, हवा की गति, वर्षा की मात्रा) के आधार पर भुगतान प्रदान करता है। 
  • भुगतान प्राप्त करने के लिए, बीमाधारक के व्यक्तिगत दावों के सत्यापन की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इससे नौकरशाही जांच में कमी और अनुमोदन की प्रक्रिया त्वरित रूप से होती  है।

सुझाव 

  • सुरक्षा की व्यापक परिभाषा की आवश्यकता : राष्ट्रीय सुरक्षा को सैन्य चिंताओं से परे विस्तारित करते हुए इसमें आर्थिक लचीलापन भी शामिल किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए, अमेरिकी रक्षा विभाग ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में जलवायु परिवर्तन को स्वीकार किया है और वह सैन्य प्रतिष्ठानों के लिए लचीलेपन के उपायों में निवेश कर रहा है। 
  • जल प्रबंधन एवं संरक्षण को बढ़ावा देना : जल संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करने और जल संघर्ष को कम करने के लिए एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिए।
    • जैसे- नील नदी बेसिन पहल” नील नदी बेसिन देशों के बीच साझा जल संसाधनों का प्रबंधन करने और जल की कमी के मुद्दों को सामूहिक रूप से संबोधित करने के लिए सहयोग को बढ़ावा देती है। 
  • जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे में निवेश : बाढ़, तूफान और हीटवेव सहित जलवायु संबंधी आपदाओं का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को उन्नत किए जाने की आवश्यकता है।
  • खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को मजबूत बनाना : जलवायु प्रभावों के प्रति लचीलापन बढ़ाने के लिए टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के साथ ही स्थानीय खाद्य प्रणालियों का समर्थन करना आवश्यक है।
    • इथियोपिया ने “उत्पादक सुरक्षा नेट कार्यक्रम” (PSNP) लागू किया है, जो खाद्य-असुरक्षित परिवारों को लक्षित करके शुरू किया गया एक सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है। 
  • व्यापक प्रवासन नीति विकास : जलवायु-प्रेरित प्रवासन को सक्रिय रूप से संबोधित करने वाली नीति-निर्माण पर बल दिया जाना चाहिए जो प्रभावित आबादी के लिए सहायता व कानूनी विकल्प उपलब्ध कराती हो।
    • फिजी ने समुद्र-जल स्तर में वृद्धि के प्रति संवेदनशील समुदायों को स्थानांतरित करने की आवश्यकता को समझते हुए “जलवायु पुनर्वास कार्यक्रम” शुरू किया है । 
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश : ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए, जर्मनी के एनर्जीवेंडे (ऊर्जा संक्रमण) कार्यक्रम ने अपने ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने के साथ-साथ हरित अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया पर ध्यान : प्रशिक्षण, संसाधनों और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया क्षमताओं को मजबूत किया जाना चाहिए।
    • भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आपदाओं के लिए समुदायों को तैयार करने के लिए नियमित अभ्यास और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा : सीमापार जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
    •  “पेरिस समझौता” जलवायु परिवर्तन से निपटने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय संधि है। 
  • जन जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा : जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाया जाना चाहिए और जलवायु कार्रवाई में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
  • अनुसंधान और नवाचार का समर्थन : जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने वाली नई प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के लिए अनुसंधान एवं नवाचार में निवेश किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अधिक स्पष्ट होने के साथ ही सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और समुदायों के लिए इन चुनौतियों का व्यापक रूप से समाधान करना अनिवार्य हो जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे के रूप में मान्यता देने के लिए राष्ट्रों को अपनी सुरक्षा रणनीतियों के प्रति दृष्टिकोण में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। 
  • जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिमों को कम करने की दिशा में जलवायु लचीलेपन को राष्ट्रीय नीतियों में एकीकृत करना, आपदा जोखिम न्यूनीकरण में निवेश करना तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण कदम हैं।
    • इसके माध्यम से राष्ट्र अपनी सुरक्षा  में वृद्धि के साथ ही सभी के लिए अधिक स्थिर  एवं टिकाऊ भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR