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जलवायु संकट और भारतीय खाद्य प्रणाली 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3 - खाद्य सुरक्षा संबंधी विषय, भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योग, देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ 

संयुक्त राष्ट्र महासचिवद्वारा इस माहखाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलनका आयोजन किया जाएगा। 

प्रमुख बिंदु 

  • इस आयोजन का उद्देश्य वर्ष 2030 तक ‘सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals - S.D.G.) को प्राप्त करने के लियेवैश्विक खाद्य प्रणालियोंमें बदलाव लाना है।
  • इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये मुख्य पाँच बिंदुओं को चिंहित किया गया है-
    • सुरक्षित और पौष्टिक भोजन तक सभी की पहुँच को सुनिश्चित करना।
    • सतत खपत प्रतिमान (Sustainable Consumption Patterns) में बदलाव लाना।
    • प्रकृति के अनुरूप उत्पादन (nature-positive production) को बढ़ावा देना।
    • अग्रिम समान आजीविका (Advance Equitable Livelihoods). 
    • संकट एवं दबाव के प्रति लचीलापन स्थापित करना।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) के अनुसार, खाद्य प्रणालियों में कृषि, वानिकी या मत्स्य पालन और इसके कुछ हिस्सों से उत्पन्न खाद्य उत्पादों के उत्पादन, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, वितरण, खपत और निपटान में लोगों की एक शृंखला शामिल है।
  • भारत को उच्च कृषि आय और पोषण सुरक्षा को सतत और समावेशी बनाने के लिये अपनी खाद्य प्रणालियों में बदलाव लाने की ज़रूरत है। 

खाद्य प्रणाली के संदर्भ में भारत की नीति 

  • आजादी के बाद से भारत ने कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति की और स्वयं कोखाद्य न्यूनता’ वाले देश (food-deficit country) से खाद्यान्न में आत्मनिर्भरवाला देश बनाया।
  • हालाँकि, हरित क्रांति ने जल-भराव, मिट्टी के कटाव, भू-जल की कमी और कृषि उत्पादन में अस्थिरता को भी जन्म दिया है। वहीं वर्तमान नीतियाँ अभी भी 1960 के दशक वालीघाटे की मानसिकतापर आधारित हैं।
  • खरीद, सब्सिडी और जल नीतियाँ चावल और गेंहूँ की फसलों के पक्ष में हैं।
  • जल के समान वितरण, सतत और जलवायु के अनुरूप कृषि को सुनिश्चित करने के लिये बाजरा, दलहन, तिलहन और बागवानी के फसल पैटर्न में विविधीकरण लाने की आवश्यकता है।

छोटे किसान 

  • छोटे किसानों को सार्वजनिक वस्तुओं, इनपुट और आउटपुट बाजारों में लिंक के लिये विशेष समर्थन की आवश्यकता है।
  • कई तकनीकी और संस्थागत नवाचार उन्हें विविधीकरण के माध्यम से आय बढ़ाने और मूल्य शृंखलाओं से लाभ उठाने में सक्षम बना सकते हैं।
  • किसान उत्पादक संगठन छोटे धारकों के लिये इनपुट और आउटपुट के लिये बेहतर मूल्य प्राप्त कराने में मदद करते हैं।
  • आई.टी.सी. का -चौपाल छोटे किसानों को लाभान्वित करने वाली प्रौद्योगिकी का एक उदाहरण है।
  • इसी तरह, विशेष रूप से आय और पोषण को बढ़ाने के लिये कृषि में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाए जाने की आवश्यकता  है।

अन्य मुद्दे 

  • भारत में एक अन्य मुद्दा भूख और कुपोषण से संबंधित है। एनएफएचएस-4 सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2015-16 में देश के लगभग 38 प्रतिशत बच्चे बौनापन के शिकार थे।
  • नएफएचएस-5 सर्वेक्षण से पता चलता है कि वर्ष 2019-20 में भी कई राज्यों में कुपोषण के मामलों में कमी दर्ज नहीं की गई है। 
  • इसी तरह मोटापे में भी लगातार वृद्धि हो रही है। एक उचित खाद्य प्रणाली के अंतर्गत यह आवश्यक है कि  कुपोषण और मोटापे जैसे मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जाए।
  • सतत खाद्य प्रणालियों के लियेसुरक्षित और स्वस्थ विविध आहारकी आवश्यकता होती है।
  • वर्तमान में मौजूद बाधाओं को देखते हुए ईएटी-लैंसेट डाइट (EAT-Lancet diet) एकस्वस्थ और सतत आहारकी सिफारिश करता है। भारत में अधिकांश आबादी के लिये यह आहार वहनीय नहीं है।
  • टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड न्यूट्रिशनके हालिया अध्ययन से पता चलता है कि ग्रामीण भारत के लिये ईएटी-लैंसेट डाइट संबंधी सिफारिशों की लागत प्रति व्यक्ति प्रति दिन $3 और $5 के मध्य है।
  • इसके विपरीत, वर्तमान में वास्तविक आहार सेवन का मूल्य लगभग $1 प्रति व्यक्ति प्रति दिन है। वहीं माँस, मछली, मुर्गी पालन, डेयरी और फलों के लिये यह अंतर बहुत अधिक है।
  • वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्रों में भी आलू के चिप्स और बिस्कुट जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ फलों और सब्जियों की तुलना में सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं। साथ ही, उपलब्ध होने के बाद भी ये खाद्य पदार्थ आम लोगों के लिये महँगे हैं।
  • भारत जैसे देशों के लिये अभी भी पशु-स्रोत वाले खाद्य पदार्थों की आवश्यकता है। उदाहरण के लिये, अमेरिका और यूरोप में 60 से 70 किलोग्राम की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति माँस की खपत अभी भी 10 किलोग्राम से कम है।

खाद्य प्रणाली और स्वास्थ्य 

  • खाद्य प्रणाली में भी स्वास्थ्य  बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता होती है। कोविड -19 महामारी ने भारत जैसे देशों में कमजोर स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे को उजागर किया है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
  • ्वस्थ और सतत खाद्य प्रणालियों के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा में असमानताओं को कम करना होगा। 

भारत द्वारा चलाए गए कार्यक्रम 

  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम। 
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS). 
  • पोषण कार्यक्रम

★ आई.सी.डी.एस.,
★ मध्याह्न भोजन कार्यक्रम। 

गे की राह 

  • भारतीय पारंपरिक कृषि को ऐसी कृषि उत्पादन व्यवस्था में परिवर्तित करना होगा, जिसमें बेहतर मूल्य और कृषि आय में वृद्धि को सुनिश्चित किया जा सके।
  • यह महिलाओं और छोटे किसानों के संदर्भ में समावेशी होनी चाहिये। साथ ही, यह पोषण के प्रति संवेदनशील, पर्यावरण के अनुकूल और सतत होनी चाहिये।
  • खाद्य प्रणालियों की अन्य गतिविधियों में अमूल जैसी सहकारी संस्थाओं की तरह के नवाचारों की आवश्यकता है।
  • जलवायु-लचीले फसल पैटर्न को बढ़ावा देने के साथ-साथ उत्पादन, मूल्य शृंखला और खपत में स्थिरता हासिल करनी होगी।
  • किसानों को सतत कृषि के लिये इनपुट सब्सिडी देने की बजाय नकद हस्तांतरण दिया जा सकता है।
  • समावेशी खाद्य प्रणालियों को मजबूत सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
  • पी.डी.एस. में बेहतर पोषण के लिये नॉन-स्टेपल, जैसे- दालें तेल और बायोफोर्टिफाइड चावल को भी वितरित किया जाना चाहिये।
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