संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने का मौलिक अधिकार है और यह अधिकार स्वाभाविक रूप से संविधान द्वारा गारंटीकृत जीवन के अधिकार तथा समानता के अधिकार से प्राप्त होता है।
न्यायालय का दृष्टिकोण
- न्यायालय ने कहा कि, स्वच्छ हवा या स्वच्छ पर्यावरण के लोगों के अधिकार को भारतीय न्यायशास्त्र में पहले से ही मान्यता दी गई है।
- हालाँकि, जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती 'तबाही' को देखते हुए, इसके प्रतिकूल प्रभावों से बचाव के अधिकार को अपने आप में एक विशिष्ट अधिकार के रूप में मान्यता देना आवश्यक था।
- शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब विश्व स्तर पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों के लिए कानूनी उपचार चाहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है।
जलवायु मुकदमों में वृद्धि के कारण
- समय के साथ जलवायु परिवर्तन जनित चुनौतियाँ का और विकट होना।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावितों की संख्या में लगातार वृद्धि।
- सरकार और कॉरपोरेट संस्थाओं की जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दों पर उदासीनता अथवा उनके द्वारा की जा रही कार्रवाइयों का बेहद अपर्याप्त होना।
- जलवायु परिवर्तन के विषयों पर अदालतों का याचिकाकर्ताओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण।
फैसले से लागू करने में चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को लागू करना एक टेढ़ी खीर है।
- जलवायु परिवर्तन एक बहुत ही अलग और जटिल विषय है। फिर भी वायु या जल प्रदूषण और वन या वन्यजीव संरक्षण से संबंधित मामलों में अदालती हस्तक्षेप बहुत उपयोगी हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन एक बहुआयामी समस्या है, जिससे किसी एक या छोटे हस्तक्षेप से नहीं निपटा जा सकता है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना किसी भी एक स्थानीय, क्षेत्रीय या राष्ट्रीय सरकार की क्षमता से परे है।
भारत में जलवायु संबंधी मुकदमा
- भारत में अदालतें लंबे समय से जलवायु संबंधी मुद्दों से निपट रही हैं, हालाँकि, उन्हें जलवायु मुकदमेबाजी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ऐसे मामलों के लिए मुख्य मंच हैं, जो विशेष रूप से पर्यावरणीय मामलों की सुनवाई करता है।
- लेकिन याचिकाएँ नियमित रूप से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में भी आती हैं।
वैश्विक स्तर पर जलवायु मुकदमेबाजी
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन रिपोर्ट, 2023 के अनुसार, 65 देशों की विभिन्न अदालतों में जलवायु से संबंधित 2,180 मामलों की सुनवाई की जा रही है।
- रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में सुने जा रहे जलवायु संबंधी कुल मामलों में से लगभग 70 प्रतिशत अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका की अदालतों में लंबित थे।
- भारत जलवायु संबंधित कुल 11 मामलों के साथ, अधिकतम मामलों वाले देशों की सूची में 14वें स्थान पर है।
- ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन रिपोर्ट के वर्ष 2020 के संस्करण में 39 देशों में 1,550 जलवायु-संबंधित मामलों की पहचान की गई थी, जबकि वर्ष 2017 के संस्करण में 24 देशों में 884 मामले देखें गए थे।
- मुकदमों का आधार : इन मामलों के एक बड़े हिस्से में अधिकार-आधारित ढांचे का उपयोग किया गया है, जो भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए ढांचे के समान है।
- याचिकाकर्ताओं ने अधिक जलवायु कार्रवाई के लिए दबाव डालने के लिए जीवन के अधिकार, मानवाधिकार, स्वास्थ्य, भोजन, पानी, पारिवारिक जीवन आदि के अधिकार का आह्वान किया है।
- सबसे हालिया मामले में बुजुर्ग स्विस महिलाओं का एक समूह शामिल था, जिन्होंने यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के समक्ष तर्क दिया था कि, हीटवेव के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों के कारण उनके पारिवारिक जीवन के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।
- इस पर फैसला सुनाते हुए अदालत ने माना कि स्विट्जरलैंड की सरकार ने वास्तव में उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है।
- अन्य मामलों में, लोगों ने मौजूदा जलवायु कानूनों या नीतियों के प्रवर्तन में कमी के लिए सरकारों पर और निगमों पर दायित्व, मुआवजे या ग्रीनवॉशिंग के लिए मुकदमा दायर किया है।
निष्कर्ष
- जलवायु संबंधी मामलों में वृद्धि ने अदालतों को भी संवेदनशील बना दिया है जो अब अनुकूल निर्णय देने के लिए पहले की तुलना में ज्यादा इच्छुक हैं।
- भारत में अदालतें जलवायु से संबंधित कई मुद्दों से निपट रही हैं। वनों की कटाई, आवास संरक्षण, शहरी विकास, वायु और जल प्रदूषण के मुद्दे सभी जलवायु से जुड़े हुए हैं।
- शीर्ष अदालत के हालिया फैसले ने जलवायु परिवर्तन की महत्वपूर्ण प्रकृति को सुदृढ़ किया है जो संभावित रूप से एक नए न्यायशास्त्र का मार्ग प्रशस्त करेगा जहां लोगों, सामाजिक-आर्थिक विकास, प्रकृति और जलवायु को समान रूप से प्राथमिकता दी जाती है।