प्रारम्भिक परीक्षा – जलवायु प्रदर्शन रिपोर्ट, 2023 मुख्य परीक्षा - सामान्य अध्ययन पेपर-3 |
संदर्भ
- इस रिपोर्ट में विकसित देशों के जलवायु प्रदर्शन पर प्रकाश डाला गया है।
प्रमुख बिंदु
- यह रिपोर्ट पेरिस जलवायु समझौते पर आधारित है; जिसे ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद(CEEW) के द्वारा वैश्विक प्रस्तुत किया गया है।
पेरिस जलवायु समझौते
- पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
- इसे 12 दिसंबर 2015 को पेरिस, फ्रांस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-21) में 196 दलों द्वारा अपनाया गया था। जिसे 4 नवंबर 2016 को लागू किया गया ।
- इस समझौते का लक्ष्य "वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को नियंत्रित करना" है।
- वैश्विक औसत तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे” तथा तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास” करना है ।
- विश्व के देशों ने वर्ष 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखा है ।
- क्योंकि जलवायु परिवर्तन से विश्व के देशों पर अधिक गंभीर प्रभाव जैसे –अत्यधिक वर्षा, अत्यधिक गर्मी, सूखा आदि पड़ने की संभावना है।
- ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वर्ष 2030 तक 43% कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
- लेकिन इस रिपोर्ट के अनुसार,विकसित देश वर्ष 2030 तक 38% ही कम कर पायेंगे,जो कि निर्धारित लक्ष्य 43%से काफी कम है।
- रिपोर्ट के अनुसार, विकसित देशों के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) पहले से ही उत्सर्जन की वैश्विक औसत कटौती को 2019 के स्तर से 43% कम कर चुके हैं, जो तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ने से रोकने के लिए आवश्यक है।इसके बावजूद विकसित देशों के सामूहिक एनडीसी में केवल 36% की कटौती होती है।
- कार्बन उत्सर्जन का लगभग 83% हिस्सा अमेरिका, रूस और यूरोपीय संघ के द्वारा उत्सर्जित हो रहा है।
- CEEW के एक अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों के वर्तमान उत्सर्जन के आधार पर, वर्ष 2030 तक उनकी कटौती केवल 11% होने की संभावना है।
- दो देशों-बेलारूस और नॉर्वे को छोड़कर किसी भी विकसित देश का निर्धारित लक्ष्य वर्ष 2030 तक पहुँचनें की संभावना नहीं है।
- इस रिपोर्ट को जारी करने का एक उद्देश्य यह भी है की नवंबर और दिसंबर 2023 में दुबई में आयोजित होने वाले जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP-28) का ध्यान विकसित देशों के जलवायु प्रदर्शन की ओर आकर्षित करना है।
प्रमुख आंकड़े
- विकसित देशों को 2008 और 2012 के बीच अपने 1990 के स्तर से उत्सर्जन में 5% और 2013 से 2020 के दौरान 18% प्रतिशत की कमी करनी थी।
- विकसित देशों में कार्बन उत्सर्जन में 20% की कटौती हुई है लेकिन यह कटौती वर्ष 2020 में आये COVID -19 महामारी का परिणाम था।
- कई वैश्विक देशों ने 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त किया है।
- एक मध्यवर्ती उद्देश्य के रूप में, विश्व के देशों ने 2030 तक अपने अनुमानित कटौती पर संयुक्त राष्ट्र को अपना डेटा प्रस्तुत किया।
राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC):
- यह पेरिस समझौते और इसके दीर्घकालिक लक्ष्यों की प्राप्ति के केंद्र के रूप में कार्य करता है।
- यह पेरिस समझौता प्रत्येक देशों से अनुरोध करता है कि वे 2020 के बाद की अपनी जलवायु कार्रवाईयों की रूपरेखा तैयार करें और उन्हें संप्रेषित करें।जिसके आधार पर वैश्विक जलवायु प्रदर्शन रिपोर्ट जारी किया जा सके।
आगे की राह
- वैश्विक कार्बन उत्सर्जन कटौती प्रक्रिया में विकसित देशों को नेतृत्व करना चाहिए और उत्सर्जन में कटौती में तेजी लानी चाहिए।
प्रारंभिक परीक्षा प्रश्न : ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद(CEEW) के द्वारा वैश्विक जलवायु प्रदर्शन रिपोर्ट,2023 के अनुसार, विकसित देश वर्ष 2030 तक कितना प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम कर पाएंगे ?
(a) 35 प्रतिशत
(b) 36 प्रतिशत
(c) 37 प्रतिशत
(d) 38 प्रतिशत
उत्तर : (d)
मुख्य परीक्षा प्रश्न : संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP-28) क्या है ? ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में इसके महत्व पर प्रकाश डालें ?
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स्रोत : THE HINDU