(प्रारंभिक परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 1, समसामयिक घटनाक्रम: रिपोर्ट एवं सूचकांक) |
चर्चा में क्यों
हाल ही में पर्यावरण थिंकटैंक ‘जर्मनवाच’ द्वारा ‘जलवायु जोखिम सूचकांक’(Climate Risk Index-CRI),2025 जारी किया गया।
जलवायु जोखिम सूचकांक के बारे में
- परिचय : यह सूचकांक जलवायु से जुड़ी चरम मौसमी घटनाओं के देशों पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभाव एवं जोखिमों का आकलन करके देशों को रैंक प्रदान करता है।
- सूचकांक में सबसे अधिक प्रभावित देश को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है।
- आरंभ: वर्ष 2006 से
- शामिल देश : वर्ष 2025 के सूचकांक में 171 देशों को शामिल किया गया है।
- डाटा अनुपलब्धता के कारण कुछ देशों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
- जोखिम की श्रेणियाँ : सूचकांक में तीन जोखिम श्रेणियों के माध्यम से चरम मौसम की घटनाओं के प्रभावों का विश्लेषण किया जाता है :
- जल विज्ञान
- मौसम विज्ञान
- जलवायु विज्ञान
- मापन की समयावधि : यह सूचकांक प्रकाशन से दो वर्ष पूर्व तथा पिछले 30 वर्षों की अवधि में देशों पर चरम घटनाओं के प्रभाव को दर्शाता है।
- डाटा स्रोत : रिपोर्ट के निष्कर्ष अंतर्राष्ट्रीय आपदा डाटाबेस से प्राप्त चरम मौसम घटना के आंकड़ों और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों पर आधारित हैं।
- प्रमुख संकेतक : सूचकांक निम्नलिखित संकेतकों का उपयोग करते हुए निरपेक्ष और सापेक्ष प्रभावों पर विचार करता है:
- आर्थिक हानि
- मृत्यु दर
- प्रभावित लोग
- सुझाव : नवीनतम संस्करण में बढ़ते नुकसान तथा मजबूत जलवायु लचीलापन और कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
सूचकांक के प्रमुख निष्कर्ष
- वर्ष 2022 में सर्वाधिक प्रभावित शीर्ष देश :
- वर्ष 1993 से 2022 की अवधि में सर्वाधिक प्रभावित देश :
- इसी अवधि के दौरान सबसे अधिक प्रभावित देशों को दो समूहों में भी विभाजित किया गया है -
- अत्यंत असामान्य चरम घटनाओं से सर्वाधिक प्रभावित देश :डोमिनिका, होंडुरास, म्यांमार, वानुअतु
- बार-बार होने वाली चरम घटनाओं से प्रभावित देश : चीन, भारत, फिलीपींस।
- वर्ष 1993 से 2022 तक, दुनिया भर में 765,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और लगभग 4.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष नुकसान हुआ।
- अल्पकालिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से बाढ़, तूफान, हीटवेव और सूखा जैसी चरम घटनाओं के सबसे प्रमुख प्रभाव थे।
- सूचकांक के अनुसार मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन चरम मौसम की घटनाओं की आवृत्ति एवं तीव्रता को प्रभावित करता है और व्यापक प्रतिकूल जलवायु प्रभावों को उत्पन्न करता है।
- नवीन सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) : सूचकांक के अनुसार COP-29 सम्मेलन जलवायु वित्त पर महत्त्वाकांक्षी नवीन सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) देने में विफल रहा।
- सूचकांक के अनुसार न्यूनीकरण के प्रति महत्त्वाकांक्षा और कार्रवाई की कमी के कारण, उच्च आय वाले देशों के भी गंभीर रूप से प्रभावित होने की संभावना है।
भारत की स्थिति
- भारत वर्ष 1993 और 2022 के बीच चरम मौसम की घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में से शामिल है।
- ऐसी घटनाओं के कारण होने वाली वैश्विक मौतों में से 10% तथा आर्थिक क्षति में 4.3% भारत का योगदान था।
- इसी अवधि के दौरान भारत बाढ़, हीटवेव और चक्रवातों से सर्वाधिक प्रभावित हुआ।
प्रमुख सुझाव
- उच्च आय वाले और अत्यधिक उत्सर्जन करने वाले देशों के लिए आवश्यक है कि वे नए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के साथ उच्च जलवायु लक्ष्य और कार्रवाई के कार्यान्वयन सहित शमन कार्रवाई को बढ़ाएं ताकि तापमान में वृद्धि 1.5 ℃ से नीचे रहे और प्रभावों को प्रबंधनीय स्तर पर रखा जा सके।
- जलवायु प्रभावों के गंभीर परिणामों को रोकने के लिए सबसे कमजोर देशों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से वित्तीय सहायता में वृद्धि की तत्काल आवश्यकता है।
- भू-राजनीतिक उथल-पुथल और घटती प्रतिबद्धताओं के समय में, विकसित देशों को आगे आकर अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए और अधिक लचीला एवं टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक समर्थन प्रदान करना चाहिए।
इसे भी जानिए
जर्मनवाच
- परिचय : यह एक स्वतंत्र विकास, पर्यावरण और मानवाधिकार संगठन है।
- स्थापना : वर्ष 1991 में क्रिस्टोफ बाल्स द्वारा
- मुख्यालय : बॉन (जर्मनी)
- प्रमुख कार्य : अन्य गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी में स्थिति रिपोर्ट तैयार करने के लिए विभिन्न प्रकार के आर्थिक एवं सामाजिक डाटा एकत्र करना
- कार्य के प्रमुख क्षेत्र :
- जलवायु शमन एवं अनुकूलन
- हानि और क्षति
- कॉर्पोरेट जिम्मेदारी
- विश्व खाद्य, भूमि उपयोग और व्यापार
- टिकाऊ एवं लोकतांत्रिक डिजिटलीकरण
- टिकाऊ विकास के लिए शिक्षा
- टिकाऊ वित्त
- जलवायु और मानवाधिकार
- प्रमुख प्रकाशन :
- जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (Climate Change Performance Index)
- जलवायु जोखिम सूचकांक (Climate Risk Index)
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