ध्यातव्य है कि संविधानलागूहोनेके 71 वर्षोंकेपश्चातअभीतकसंविधानमें 104 बारसंशोधनकियेगएहैं।
ऐतिहासिकपृष्ठभूमि
संसद द्वारा वर्ष 2012 में 97वाँ संविधान संशोधन करते हुए सहकारी समितियों के कानूनी शासन में कई बदलाव किये गए थे।
इस संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग III में अनुच्छेद 19 (1)(C) के तहत सहकारी समितियों को मौलिक अधिकार प्रदान किया गए। साथ ही, संविधान में भाग IX-B को सम्मिलित किया गया।
ध्यातव्य है कि संविधान में संशोधन केवल अनुच्छेद 368 में बताई गई प्रक्रिया के द्वारा ही किया जा सकता है।
संशोधन प्रक्रिया के लिये संसद के प्रत्येक सदन की 'कुल संख्या के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वालों के दो-तिहाई बहुमत' की आवश्यकता होती है।
अनुच्छेद 368 का एक प्रावधान संविधान के कुछ अनुच्छेदों और अध्यायों को सूचीबद्ध करता है, जिन्हें केवल एक विशेष प्रक्रिया द्वारा हीसंशोधित किया जा सकता है।
विशेष प्रक्रिया के लिये आवश्यक है कि संशोधन को आधे सेअधिकराज्यों के विधानमंडलों द्वारा भी अनुसमर्थित करना होगा।
इस अतिरिक्त आवश्यकता के उल्लंघन के आधार पर ही 97वें संविधान संशोधन को उच्चतमन्यायालयमेंचुनौती दी गई थी।
केंद्रीय नियंत्रण
केंद्र सरकार वर्षों से सहकारी समितियों पर अधिक से अधिक नियंत्रण स्थापित करनेकाप्रयासकर रही है।इसकेतहतसहकारी बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक के दायरे में लाया गया है।
सहकारी क्षेत्र में अधिक सक्रिय भागीदारी के संदर्भ में केंद्र सरकार की मंशा हाल ही में स्थापित केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय से भी स्पष्टहोती है।
संशोधन विधेयकवस्तुतः सहकारी समितियों के कामकाज में अधिक स्वतंत्रता और पारदर्शिता की आवश्यकता का हवाला देतेहुएकई प्रावधान कोशामिल करता है।
गुजरात उच्च न्यायालय ने वर्ष2013 में संशोधन को इस आधार पर रद्द कर दियाथा कि वह राज्यों द्वारा अनुसमर्थित नहीं होने के कारण अनुच्छेद 368 (2) के तहत आवश्यकताओं का पालन करने में विफल रहा था।साथही, एक अतिरिक्त निष्कर्ष भी दिया कि 97वें संशोधन नेसंविधानकेआधारभूत ढाँचेका उल्लंघन किया है।
केंद्र सरकार ने उच्चतमन्यायालयके समक्ष गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देतेहुए यह तर्क दिया कि इस संशोधन से केंद्र और राज्यों के मध्य शक्तियों के वितरण की योजनामें न तो प्रत्यक्ष रूप से और न ही प्रभावी रूप से बदलाव हुआहै।
संविधान के नए सम्मिलित भाग के कुछ खंड कुछ मौजूदा राज्य विधानों को भी ओवरराइड कर देंगे।
न्यायालय ने 73वें और 74वें संशोधन का उदाहरण लिया, जिसमें क्रमशः पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिये अध्याय पेश किये गए।
वे संशोधनजो राज्यों की विधायी शक्ति पर प्रभाव के समान थे, राज्य विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन की विशेष प्रक्रिया द्वारा पारित किये गए थे।
न्यायालय ने कहा कि इस मामले में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। साथ ही, स्पष्ट भी किया कि यह निर्णय प्रक्रियात्मक कमी तक ही सीमित है, संविधान के आधारभूत ढाँचे का उल्लंघन करने वाले संशोधन के दायरे में नहीं आता है।
आगेकीराह
सहकारी क्षेत्र हमेशा राज्यों या प्रांतों के अधिकार क्षेत्र में रहा है।
इन सहकारी समितियों के आयोजन सिद्धांत और तंत्र क्षेत्र से भिन्न होते हैं और उद्योग या फसल पर निर्भर करते हैं।
वे वास्तव में सहकारी समितियों पर कुछ राजनीतिक हितों के नियंत्रण को तोड़ने के लिये काम नहीं करेंगे।
बेहतर यही होगा कि सरकार इस फैसले को सही भावना से ले और नए मंत्रालय के गठन के बावजूद सहकारी क्षेत्र में दखल से दूर रहे।