संदर्भ
हाल ही में प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों में भारत के एक प्रतिष्ठित व्यावसायिक समूह पर वर्ष 2013-14 में ‘निम्न श्रेणी’ के कोयले को ‘उच्च श्रेणी’ का कोयला बताते हुए, उच्च मूल्य पर बेचकर धोखाधड़ी किए जाने की आशंका जताई गई है। इससे भारत में कोयले के उत्पादन एवं विपणन के उचित विनियमन संबंधी चिंताएं उजागर होती हैं।
'उच्च ग्रेड' और 'निम्न ग्रेड' कोयला क्या है?
- कोयला एक जीवाश्म ईंधन है जो कार्बन, राख, नमी और अन्य अशुद्धियों का मिश्रण है। यह लाखों वर्षों में मिट्टी के नीचे दबे पौधों के अवशेषों पर लगाए गए भूगर्भीय दबाव के माध्यम से बनता है।
- उच्च और निम्न गुणवत्ता सापेक्ष शब्द हैं और केवल इस संदर्भ में सार्थक हैं कि कोयले का उपयोग कहाँ किया जाता है और वह कैसे संसाधित हुआ है।
- कोयले को जलाने से उत्पन्न होने वाली ऊष्मा या ऊर्जा की मात्रा, कोयले की श्रेणी को निर्धारित करती है।
- कोयले की एक इकाई में उपलब्ध कार्बन जितना अधिक होगा, उसकी गुणवत्ता या 'ग्रेड' उतनी ही अधिक होगी।
- कोयला मंत्रालय के वर्गीकरण के अनुसार, कोयले को जलाने से उत्पन्न होने वाली ऊष्मा या ऊर्जा की मात्रा कोयले के 17 ग्रेड हैं;
- ग्रेड 1, या शीर्ष गुणवत्ता वाले कोयले से एक किलो में 7,000 किलो कैलोरी से अधिक और सबसे कम ग्रेड कोयले से 2,200-2,500 किलो कैलोरी के बीच उत्पादन होता है।
- कोयले में राख की मात्रा के आधार पर कोकिंग एवं गैर-कोकिंग वर्गीकरण किया जाता है:-
- 'कोकिंग' कोयला वह कोयला है जिसकी ज़रूरत कोक बनाने के लिए होती है, जो स्टील निर्माण का एक ज़रूरी घटक है और इसलिए इसमें न्यूनतम राख की मात्रा की ज़रूरत होती है।
- गैर-कोकिंग कोयले का इस्तेमाल, अपनी राख की मात्रा के बावजूद, बॉयलर और टरबाइन चलाने के लिए पर्याप्त उपयोगी गर्मी पैदा करने के लिए किया जा सकता है।
भारत में पाए जाने वाले कोयले के प्रकार
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ऐन्थ़्रसाइट
(Anthracite)
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- यह सबसे उच्च गुणवत्ता वाला कोयला माना जाता है क्योंकि इसमें कार्बन की मात्रा 80 से 95% तक पाई जाती है।
- यह कोयला मजबूत, चमकदार काला होता है। इसका प्रयोग घरों तथा व्यवसायों में स्पेस-हीटिंग के लिए किया जाता है।
- यह जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रों में कम मात्रा में पाया जाता है।
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बिटुमिनस (Bituminous)
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- इसमें कार्बन की मात्रा 77 से 80 % तक पाई जाती है।
- यह एक ठोस अवसादी चट्टान है, जो काली या गहरी भूरी रंग की होती है। इस प्रकार के कोयले का उपयोग कोक का निर्माण, भाप तथा विद्युत संचालित ऊर्जा के इंजनों में होता है।
- अधिकांश बिटुमिनस कोयला झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
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लिग्नाइट
(Lignite)
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- यह कोयला भूरे रंग का होता है तथा यह स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक हानिकारक सिद्ध होता है।
- इसमें कार्बन की मात्रा 28 से 30 % तक होती है।
- इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
- यह राजस्थान, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों में पाया जाता है।
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पीट (Peat)
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- यह कोयले के निर्माण से पहले की अवस्था होती है।
- इसमें कार्बन की मात्रा 27 % से भी कम होती है तथा यह कोयला स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यधिक हानिकारक होता है।
- यह घरेलू ईंधन मे काम आता है।
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भारत में कोयले के प्रमुख उपयोग
- ताप विद्युत संयंत्रों में विद्युत उत्पादन।
- कोकिंग कोयले की सहायता से इस्पात उत्पादन।
- गैसीकरण और कोयला द्रवीकरण द्वारा सिंथेटिक ईंधन।
- एल्युमिना रिफाइनरियों, कागज निर्माण, तथा रासायनिक एवं दवा उद्योगों में।
भारत में कोयले का उत्पादन
- कोयला मंत्रालय के अनुसार, 2022-23 में कोयले का अखिल भारतीय उत्पादन 893.19 मिलियन टन तक बढ़ाना संभव हो गया है। 2023-24 के दौरान कोयले का अखिल भारतीय उत्पादन 11.65% की सकारात्मक वृद्धि के साथ 997.25 मीट्रिक टन था।
- 2023-24 के दौरान सार्वजानिक क्षेत्र की कोयला उत्पादन कंपनी ‘कोल इंडिया लिमिटेड’ का कोयला उत्पादन 10.02% की सकारात्मक वृद्धि के साथ 773.64 मीट्रिक टन था।
- सिंगरैनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) दक्षिणी क्षेत्र में कोयले की आपूर्ति का मुख्य स्रोत है।
- 2023-24 के दौरान SCCL का कोयला उत्पादन 4.30% की सकारात्मक वृद्धि के साथ 70.02 मीट्रिक टन था।
- TISCO, IISCO, DVC और अन्य द्वारा भी थोड़ी मात्रा में कोयले का उत्पादन किया जाता है।

(भारत में प्रमुख कोयला उत्पादन क्षेत्र)
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भारत में कोयले का आयात
- भारत की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोयले का आयात भी किया जाता है।
- वर्तमान आयात नीति के अनुसार, उपभोक्ता अपनी व्यावसायिक आवश्यकताओं के आधार पर स्वयं कोयले का स्वतंत्र रूप से आयात (ओपन जनरल लाइसेंस के तहत) कर सकते हैं।
- कोकिंग कोल का आयात मुख्य रूप से इस्पात क्षेत्र द्वारा आवश्यकता और स्वदेशी उपलब्धता के बीच अंतर को पाटने तथा गुणवत्ता में सुधार के लिए किया जा रहा है।
- अन्य क्षेत्र जैसे बिजली क्षेत्र, सीमेंट आदि तथा कोयला व्यापारी गैर-कोकिंग कोल का आयात कर रहे हैं।
भारतीय कोयले एवं आयातित कोयले में अंतर
- भारतीय कोयले में आयातित कोयले की तुलना में राख की अधिक मात्रा और कैलोरी मान कम होता है।
- कोयला भंडार का ताप मूल्य ‘सकल कैलोरी मान’ (Gross Calorie Value : GCV) में मापा जाता है।
- घरेलू तापीय कोयले की औसत GCV 3,500-4,000 kcal/kg के बीच होती है, जबकि आयातित तापीय कोयले की GCV 6,000 kcal/kg तक होती है।
- भारतीय कोयले में राख की औसत मात्रा आयातित कोयले की तुलना में 40% से अधिक होती है।
- इसका परिणाम यह है कि उच्च राख वाले कोयले को जलाने पर अधिक मात्रा में पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन और सल्फर डाइऑक्साइड निकलता है।
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स्वच्छ कोयला प्राप्त करने की विधियां
- वाशिंग संयंत्र विधि : इस विधि द्वारा स्वच्छ कोयला प्राप्ति के लिए सामान्य कोयले में राख की मात्रा को कम करके कार्बन की मात्रा बढ़ाई जाती है।
- कोयला संयंत्रों में साइट पर 'वाशिंग प्लांट' होते हैं जो कोयले को इस तरह से संशाधित कर सकते हैं कि इसमें राख और नमी की मात्रा कम हो जाए।
- हालाँकि, ऐसे उपकरण लगाना महंगा होता है और इससे बिजली की लागत बढती है।
- कोयला गैसीकरण विधि : इस विधि में कोयले को सीधे जलाने की आवश्यकता को गैस में परिवर्तित करके टाला जाता है।
- एक एकीकृत गैसीकरण संयुक्त चक्र (IGCC) प्रणाली में भाप और गर्म दबाव वाली हवा या ऑक्सीजन कोयले के साथ मिलकर ऐसी प्रतिक्रिया करते हैं जो कार्बन अणुओं को अलग कर देती है।
- इसके उत्पाद के रूप में उत्पन्न सिनगैस, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन, CO2 और जल वाष्प का मिश्रण, फिर से साफ किया जाता है और बिजली बनाने के लिए गैस टरबाइन में जलाया जाता है।
भारत में कोयले का भविष्य
- नीति आयोग की एक रिपोर्ट ने संकेत दिया है कि भारत में कोयला आधारित क्षमता 2030 तक लगभग 250 गीगावाट तक पहुंच जाएगी, जबकि कोयला आधारित बिजली उत्पादन धीमा हो जाएगा क्योंकि भारत अपने शुद्ध शून्य लक्ष्यों की ओर आगे बढ़ रहा है।
- कोयला मंत्रालय के अनुसार, भारत ने 2023-24 में 997 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 11% अधिक है।
- इस वर्ष मार्च 2024 तक, भारत ने 261 टन कोयले का उत्पादन किया है, जिसमें से 58 मिलियन टन कोकिंग कोल था।
- इस वर्ष (2024) की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में भारत द्वारा उत्पादित रिकॉर्ड 13,669 मेगावाट (MW) बिजली उत्पादन क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 71.5% था।
- कुल बिजली क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी 1960 के दशक के बाद पहली बार 50% से नीचे आ गई है।
निष्कर्ष
भारत के बिजली क्षेत्र को जीवाश्म ईंधन से दूर करने की घोषित प्रतिबद्धताओं के बावजूद, कोयला भारत की ऊर्जा अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। भारत को धीरे-धीरे कोयले आधारित अर्थव्यवस्था से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता की ओर बढ़ने की आवश्यकता है, इसके लिए नई तकनीकों के अनुसंधान में निवेश के साथ-साथ इसके अनुकूल नीति निर्माण के प्रयास करने होंगे।