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राष्ट्रीय राजधानी और सम्बद्ध क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

भूमिका

हाल ही में, राष्ट्रपति ने ‘राष्ट्रीय राजधानी और सम्बद्ध क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अध्यादेश, 2020’ पर हस्ताक्षर किया। इस प्रकार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में और उसके आसपास वायु प्रदूषण को ट्रैक करने तथा इस पर नियंत्रण लगाने हेतु एक वैधानिक प्राधिकरण अस्तित्व में आ गया है। अध्यादेश के अनुसार, इस आयोग को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जैसे निकायों पर सर्वोच्चता प्राप्त होगी।

इस आयोग की स्थापना का कारण

  • दिल्ली एन.सी.आर. क्षेत्र में वायु गुणवत्ता की निगरानी और प्रबंधन का कार्य केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ-साथ दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान राज्य सरकारों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) सहित कई निकायों द्वारा किया जाता रहा है।
  • इन निकायों की निगरानी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वयं की जाती है। उच्चतम न्यायालय ‘एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ, 1988’ के निर्णय के अनुसार वायु प्रदूषण की निगरानी करता है।
  • इस अध्यादेश द्वारा सभी निगरानी निकायों को मज़बूत करने और उन्हें एक मंच पर लाने हेतु आयोग के गठन का प्रयास किया गया है, जिससे वायु गुणवत्ता प्रबंधन अधिक व्यापक, कुशल और समयबद्ध तरीके से किया जा सके।
  • साथ ही, इस आयोग द्वारा उच्चतम न्यायालय को प्रदूषण के स्तर की लगातार निगरानी करने से राहत देने का प्रयास भी किया गया है।

आयोग की संरचना

  • यह आयोग एक स्थाई निकाय होगा। इसमें 20 से अधिक सदस्य होंगे। इसकी अध्यक्षता भारत सरकार के सचिव स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारी या किसी राज्य के मुख्य सचिव के द्वारा की जाएगी।
  • इसमें केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव का एक प्रतिनिधि, पांच सचिव स्तर के अधिकारी (पदेन सदस्य) और दो संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी (पूर्णकालिक सदस्य) होंगे।
  • साथ ही, इस आयोग में सी.पी.सी.बी, इसरो, वायु प्रदूषण विशेषज्ञों के साथ-साथ गैर-सरकारी संगठनों (एन.जी.ओ.) के तीन प्रतिनिधियों का भी प्रतिनिधित्व होगा।
  • इस आयोग में सहयोगी सदस्यों के रूप में कृषि, पेट्रोलियम, बिजली, सड़क परिवहन व राजमार्ग, आवास तथा शहरी मामलों के मंत्रालयों तथा वाणिज्य व उद्योग सहित कई अन्य मंत्रालयों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

आयोग की शक्तियाँ

  • वायु प्रदूषण और वायु गुणवत्ता प्रबंधन के मामलों में यह आयोग सभी मौजूदा निकायों में सर्वोच्च होगा। इसमें राज्यों को निर्देश जारी करने की शक्तियाँ भी होंगी।
  • आयोग वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये राज्य सरकारों के प्रयासों के मध्य समन्वय स्थापित करेगा और वायु गुणवत्ता मापदंडों को भी निर्धारित करेगा।
  • इस आयोग में गम्भीर वायु प्रदुषण वाले क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना को प्रतिबंधित करने की शक्तियाँ होंगी। साथ ही, यह आयोग औद्योगिक इकाइयों के निरीक्षण का भी कार्य कर सकता है।
  • यदि आयोग द्वारा दिये गए निर्देशों का उल्लंघन होता है, तो यह आयोग जुर्माना और कारावास का दंड भी दे सकता है।

राज्य के मामले में आयोग की भूमिका

  • अध्यादेश में यह स्पष्ट है कि अब राज्य निकायों के साथ केंद्रीय निकायों के पास भी वायु प्रदूषण के मामलों से सम्बंधित अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।
  • आयोग राज्यों के साथ-साथ नीति के नियोजन व निष्पादन तथा हस्तक्षेप, उद्योगों के संचालन, निरीक्षण, प्रदूषण के कारणों पर शोध आदि के मध्य समन्वय स्थापित करेगा।
  • विशेषज्ञों के अनुसार इस अध्यादेश के द्वारा जुर्माना लगाने की शक्ति भी नए आयोग के पास आ सकती है। एक प्रकार से यह आयोग वायु प्रदूषण के मामलें में प्रदूषण नियंत्रण निकायों की प्रासंगिकता को कम या समाप्त कर देगा क्योंकि उनके पास अब कोई स्वायत्त निर्णय लेने की शक्तियां नहीं हैं।
  • हालाँकि, इन निकायों की जल तथा ध्वनि प्रदूषण से सम्बंधित शक्तियाँ यथावत् जारी रहेंगी।
  • किसी राज्य तथा आयोग द्वारा जारी निर्देशों के मध्य टकराव की स्थिति में आयोग के निर्णय को लागू किया जाएगा।

चुनौतियाँ

  • अध्यादेश के अनुसार, समिति का गठन ‘अस्थाई व कामचलाऊ उपायों’ को राज्यों और विशेषज्ञों की ‘कारगर सहभागिता’ द्वारा प्रतिस्थापित करने के लिये किया गया है।
  • आयोग में केंद्र सरकार के सदस्यों की संख्या अधिक है, जो राज्यों के निर्णय को प्रभावित कर सकता है। साथ ही, राजनीतिक मतभेद आयोग के कामकाज में एक अहम भूमिका निभा सकता हैं।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि यह आयोग ज़मीनी स्तर पर स्वत: होने वाली कार्रवाईयों की कोई गारंटी नहीं देता है और एक नया आयोग बनाकर सरकार ने वायु प्रदूषण के मुद्दे को न्यायपालिका के दायरे से बाहर कर दिया है।
  • अध्यादेश के अनुसार, आयोग जिन मामलों में शामिल होगा उन मामलों की सुनवाई के लिये केवल एन.जी.टी. ही अधिकृत है सिविल कोर्ट नहीं।

निष्कर्ष

यह देखना होगा कि नए आयोग के गठन द्वारा वायु प्रदूषण के मुद्दे को न्यायपालिका के दायरे से बाहर कर सम्बंधित मुद्दों पर सरकार क्या सिर्फ स्व-सशक्तिकरण करने और प्रासंगिक बने रहने का प्रयास कर रही है अथवा वास्तव में यह संकट का समाधान करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण रणनीति बना रही है।

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