(प्रारंभिक परीक्षा- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 व 3 : राजनीतिक दर्शन जैसे साम्यवाद, पूंजीवाद व समाजवाद आदि एवं उनके रूप और समाज पर उनका प्रभाव)
संदर्भ
- हाल ही में, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) की स्थापना का शताब्दी समारोह मनाया गया। इस दौरान पार्टी की ताकत, कौशल व लंबे इतिहास का गौरवशाली विश्लेषण किया गया। हालाँकि, इस दौरान एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में श्रमिक वर्ग की स्थिति और भूमिका का जिक्र नहीं किया गया, जिसके प्रतिनिधित्व का दावा पार्टी ऐतिहासिक रूप से करती रही है।
- क्रांतिकारी दल से सत्ताधारी दल तक के अपने 100 वर्षों के सफर में, सी.पी.सी. ने 'चीनी मजदूर वर्ग के अगुआ' के रूप में अपनी पहचान को कायम रखा है। शताब्दी समारोह इस तरह के दावों की वास्तविकता, मजदूर वर्ग की वास्तविक स्थिति और समकालीन चीन में इनकी राजनीतिक स्थिति को देखने का अवसर प्रदान करती है।
पार्टी की पहचान : श्रमिक
- यद्यपि चीन का श्रमिक इतिहास सी.पी.सी. के गठन से पहले का है किंतु वर्ष 1921 में पार्टी के गठन ने श्रमिक आंदोलन के लिये वैचारिक प्रोत्साहन और संगठनात्मक आधार प्रदान किया।
- वर्ष 1949 में जनवादी गणराज्य की स्थापना से पहले सी.पी.सी. के मुख्य प्रयासों में मजदूर वर्ग के लिये संघर्ष का अगुआ होने के साथ-साथ वैचारिक व राजनीतिक आधार के अनुरूप मजदूर आंदोलन में खुद को शामिल करना था।
- वर्ष 1949 के बाद, माओ ज़ेदांग द्वारा सर्वहारा कार्य नैतिकता और समाजवादी निर्माण पर जोर देने के उपरांत इसकी प्राथमिकता आधुनिक औद्योगिक क्षेत्र, विशेष रूप से भारी उद्योग, रही। पार्टी और राज्य ने मजदूरी स्तर में वृद्धि, श्रम सुरक्षा और स्थायी रोज़गार को महत्त्व दिया।
- उद्यमों में पार्टी संगठन बनाए गए क्योंकि कैडरों ने औद्योगिक श्रमिकों के साथ मज़बूत संबंध बनाए। बड़े पैमाने पर राजनीतिक अभियानों के माध्यम से पार्टी व राज्य ने औद्योगिक उद्यमों पर अपना नियंत्रण मज़बूत कर लिया। इस प्रक्रिया में, श्रमिकों की स्थिति और संबंधों में बदलाव आया क्योंकि उन्होंने कारखाना प्रबंधन और राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया।
- इसके अलावा, कार्यस्थल-आधारित कल्याणकारी प्रावधानों और सेवाओं के माध्यम से श्रमिकों व उनके आश्रितों के लिये एक विस्तृत कल्याणकारी प्रणाली विकसित की गई। हितधारकों के रूप में श्रमिकों के इस राजनीतिक सशक्तीकरण ने सी.पी.सी. के नियंत्रण और संरक्षण में एक 'औद्योगिक नागरिकता' (Industrial Citizenship-समाजशास्त्री जोएल एंड्रियास के अनुसार) का निर्माण किया।
पुनर्निर्माण और पुनर्संगठन
- सांस्कृतिक क्रांति से चीन में उत्पन्न अशांति और अराजकता ने डेंग शियाओपिंग द्वारा वर्ष 1978 के पश्चात माओ के बाद की अवधि में पुनर्निर्माण और पुनर्मूल्यांकन में बड़ी भूमिका निभाई। इस क्रांति ने राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को हिलाकर रख दिया था।
- बाज़ारीकरण को आर्थिक रणनीति के रूप में अपनाया गया, हालाँकि, यह राज्य द्वारा निर्देशित था। साथ ही, विश्व अर्थव्यवस्था के साथ चीन को एकीकृत करने के लिये व्यापक प्रयास किये गए। जैसे-जैसे आर्थिक सुधारों की गति बढ़ती गई, वैसे-वैसे श्रमिकों को धीरे-धीरे मताधिकार से वंचित करके श्रम राजनीति और कार्यस्थल संबंधों को बड़े पैमाने पर पुनर्गठित किया गया।
- अधिकतम लाभ प्राप्त करने की सोच के कारण श्रम सुधार का समर्थन करने वालों के लिये कार्यकुशलता और आर्थिक प्रतिस्पर्धा जैसे तत्त्व महत्त्वपूर्ण हो गए। इसके चलते स्थायी रोज़गार प्रणाली को श्रम अनुबंध प्रणाली से प्रतिस्थापित कर दिया गया।
- इसी तरह, श्रमिकों की शक्ति और प्रभाव को कम करते हुए कारखाना निदेशकों व उद्यम प्रबंधकों को अधिक शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ दे दी गईं। साथ ही, उद्यमों में मध्यम और उच्च-स्तरीय नेतृत्व पदों पर नियुक्तियों में भी रैंकों के माध्यम से आने वाले श्रमिकों के बजाय टेक्नोक्रेट, प्रबंधन और वाणिज्य स्नातकों को वरीयता दी गई। अनावश्यक माने जाने वाले सैकड़ों श्रमिकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति के माध्यम से मौद्रिक मुआवजा देकर निकाल दिया गया।
- सार्वजनिक उद्यमों के पुनर्गठन के साथ-साथ घरेलू और विदेशी पूँजी के माध्यम से निजी उद्यमों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया गया। ग्रामीण प्रवासी श्रमिकों की निर्बाध आपूर्ति और कम श्रम लागत के कारण अंतर्राष्ट्रीय निगमों ने विनिर्माण केंद्रों को अपतटीय चीन में स्थानांतरित कर दिया।
- स्थानीय सरकारों द्वारा दिये गए विशेष प्रोत्साहन से उत्साहित होकर आपूर्ति शृंखलाओं और निर्यातोन्मुखी विनिर्माण ने श्रम व रोज़गार से संबंधित अपने स्वयं के मॉडल की स्थापना की, जिसमें श्रमिकों को अधिकारों से समझौता करना पड़ा। निरंकुश प्रबंधन, शोषणकारी कार्य स्थिति, जबरन अनुशासन और निगरानी जैसी स्थितियाँ कार्य पारिस्थितिकी तंत्र की कुछ नई विशिष्ट विशेषताएँ हैं। श्रम मानकों और अधिकारों का उल्लंघन भी बढ़ गया है।
एक चुनौती के रूप में प्रतिरोध
- सामूहिक आवाज के लिये कोई मज़बूत श्रमिक-केंद्रित विकल्प न होने के कारण, श्रमिकों ने अपनी शिकायतों के निवारण के लिये उग्र विकल्पों का सहारा लिया है। मजदूरों के प्रतिरोध में वृद्धि पार्टी व राज्य के लिये एक राजनीतिक चुनौती बनी हुई है। निर्बाध आर्थिक उत्पादन के लिये स्थिरता और औद्योगिक शांति आवश्यक माना जाती है, अत: सी.पी.सी. ने जोखिम कम करने के लिये आवश्यक उपाय तैयार किये।
- साथ ही, कई श्रम-समर्थक कानूनों को भी अधिनियमित किया गया है, जो श्रमिकों की शिकायतों को दूर करने के लिये उनको प्रोत्साहित करता है। वर्ष 2001 में विश्व व्यापार संगठन में चीन के प्रवेश पर कानूनी ढाँचे के कारण यह आवश्यक था। इसने श्रमिक अशांति के लिये एक ओर कल्याणकारी रियायतें और सार्वजनिक सुरक्षा तंत्र को मज़बूत किया, वहीं दूसरी ओर प्रतिक्रियाशील और दमनकारी क्षमताओं का भी प्रयोग किया गया। रियायतों के साथ इस रणनीति ने पार्टी को श्रमिकों की नाराजगी से बचा लिया।
सुधार बनाम सामाजिक आधार
- आर्थिक सुधारों की गति तेज होने से सी.पी.सी. की सदस्यता और कैडर भर्ती रणनीतियों पर असर पड़ा है। पार्टी का पारंपरिक सामाजिक आधार- किसान और औद्योगिक सर्वहारा वर्ग- धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है।
- उद्यमियों, शहरी पेशेवरों और विश्वविद्यालय स्नातकों के रूप में नए वर्गों का लगातार समावेश हुआ है। चीन के आर्थिक विकास की तेज़ी में महत्त्वपूर्ण स्थान निभाने के बावजूद ग्रामीण प्रवासी कामगारों को बड़े पैमाने पर पार्टी से बाहर रखा गया है।
- 'औद्योगिक नागरिकता' का लगातार क्षरण, रोज़गार की बढ़ती अनिश्चितता और श्रमिकों की बढ़ती परिधि चीन के संबंध में कोई नई घटना नहीं है, क्योंकि यह 1980 के दशक के बाद से वैश्विक नव-उदारवाद से मेल खाता है, जिसने दुनिया भर में रोज़गार संबंधों को काफी बदल दिया है। चीन में श्रमिकों की बिगड़ती स्थिति एक गंभीर वास्तविकता है।