(प्रारम्भिक परीक्षा: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन) |
संदर्भ
22 मार्च, 2025 को विश्व जल दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने सामूहिक भागीदारी के माध्यम से वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। इसी दिन जल शक्ति मंत्रालय द्वारा ‘जल शक्ति अभियान: कैच द रेन 2025’ की शुरुआत भी की गई।
जल संरक्षण से तात्पर्य
- जल संरक्षण से तात्पर्य उन सभी गतिविधियों, प्रथाओं और तकनीकों से है, जिनका उद्देश्य मीठे जल का सचेत और स्थायी उपयोग करना है।
- जल संरक्षण का मुख्य लक्ष्य प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना और मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दीर्घावधि में इस महत्वपूर्ण संसाधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
जल संरक्षण की आवश्यकता
- संयुक्त राष्ट्र संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक दुनिया में पांच से आठ मिलियन लोगों के पास अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त जल नहीं होगा।
- बढ़ते प्रदूषण के परिदृश्य में हमारे ग्रह पर नदियों, झीलों, जलभृतों, भूजल और आर्द्रभूमि जैसे मीठे जल के स्रोतों की सुरक्षा और संरक्षण आवश्यक है।
- ग्रह पर मौजूद कुल जल में से केवल 3% ही मीठा जल है; इस राशि में से केवल 0.5% ही पीने योग्य और उपलब्ध है।
- 2030 की स्वच्छ जल रणनीति, विशेष रूप से ‘सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) संख्या 6 : स्वच्छ जल और स्वच्छता’ के लिए जल संरक्षण आवश्यक है।
जल संरक्षण का महत्त्व
- पारिस्थितिक तंत्र का संतुलन बनाए रखने, जैव विविधता को संरक्षित करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने में है।
- मानव जीवन के लिए पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए।
- विश्व की जनसंख्या में वृद्धि के साथ-साथ जीवन स्तर और स्वच्छता में वृद्धि के कारण पेयजल की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु।
- ग्रह के जल संसाधनों के अति प्रयोग को रोकना।
- पेयजल निष्कर्षण और अपशिष्ट जल उपचार से जुड़ी लागत और उत्सर्जन को कम करना।
विश्व जल दिवस के बारे में
- परिचय : यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा मनाया जाने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है, जो मीठे जल के महत्व पर केंद्रित होता है।
- शुभारंभ : यह दिवस वर्ष 1993 से प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है।
- मुख्य उद्देश्य : सतत विकास लक्ष्य 6 की प्राप्ति और वर्ष 2030 तक सभी के लिए स्वच्छ जल की उपलब्धता।
- थीम : हर साल, यूएन-वाटर विश्व जल दिवस के लिए थीम निर्धारित करता है।
- यूएन-वाटर जल और स्वच्छता पर संयुक्त राष्ट्र का समन्वय तंत्र है।
- वर्ष 2025 की थीम : ग्लेशियर संरक्षण
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जल संरक्षण में समुदाय भागीदारी संबंधित मुद्दे
- विश्व जल दिवस के अवसर पर, ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत की जल नीतियों का व्यापक दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है।
- भारत की प्रथम जल नीति वर्ष 1987 में प्रारंभ की गयी थी।
- इस नीति में वर्ष 2012 में एवं 2021 में संशोधन किये गए।
- नई पर्यावरणीय चुनौतियाँ और पारिस्थितिकी तंत्र की नई समझ ग्रामीण जल नीतियों को पुनः संतुलित करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
नीति निर्माताओं को निम्नलिखित मुद्दों पर विचार करना चाहिए
समुदायों की प्रभावी भागीदारी
- भारत की जल संबंधी नीतियों को समुदायों की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित कर, उनकी पारिस्थितिकीय प्रथाओं को मुख्यधारा में लाना चाहिए।
- स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के पास अपने आस-पास के पारिस्थितिकी तंत्रों का समृद्ध ज्ञान होता है।
- मौजूदा नीतियों में समुदायों की भागीदारी का प्रावधान है, लेकिन यह जल स्रोतों के प्रबंधन तक सीमित है; निर्णय लेने की शक्तियाँ राज्य अधिकारियों के पास हैं।
- इन नीतियों ने जल प्रबंधन पर समुदायों की अपनी पारिस्थितिकीय प्रथाओं की पहचान करने और उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता को अनदेखा कर दिया है।
- इसके स्थान पर इन नीतियों ने सभी स्थानों पर एक समान प्रथाओं को शुरू कर जल शासन को औपचारिक बना दिया है।
- यह समुदायों से प्रभावी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य के विपरीत है।
- उदाहरण के लिए, जल उपयोगकर्ता संघ (WUA) जो 1990 के दशक से विभिन्न राज्यों में भागीदारीपूर्ण सिंचाई प्रबंधन को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित किए गए वैधानिक निकाय हैं।
- जल उपयोगकर्ता/किसान इन निकायों के सदस्य हैं। सिंचाई स्रोतों के प्रबंधन की जिम्मेदारी उनको सौंप दी गई है, लेकिन निर्णय लेने में उनकी भूमिका बहुत ही कम है।
पर्यावरण संकटों के प्रति सुभेद्य समूह
- जल नीतियों को पर्यावरण संकटों के प्रति कुछ समूहों की असंगत भेद्यता पर विचार करना चाहिए।
- निम्न वर्ग के सामाजिक समूह और आर्थिक रूप से हाशिए पर पड़े व्यक्ति दूसरों की तुलना में ऐसे संकटों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- साथ ही, नीतियों को जल प्रबंधन में ऐसे सुभेद्य समूहों से संबंधित संस्थाओं को पहचानना चाहिए और निर्णय लेने में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।
जल का विखंडित प्रबंधन
- जल नीतियों को जल प्रबंधन के विखंडन के मुद्दे को संबोधित करना चाहिए।
- यहाँ, विखंडित प्रबंधन का मतलब है कि पारिस्थितिकी तंत्र के विभिन्न भाग, जैसे कि जंगल, जल, भूमि और जैव विविधता, विभिन्न नीतियों और अधिकारियों द्वारा विनियमित होते हैं।
- ऐसा विखंडित दृष्टिकोण इन घटकों की परस्पर निर्भरता पर विचार करने में विफल रहता है।
- जबकि एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में कुछ प्रयास हुए हैं, वे सीमित और अप्रभावी हैं।
- चूँकि नीतियाँ विखंडित दृष्टिकोण अपनाती हैं, इसलिए वे हमेशा वांछित लक्ष्य हासिल नहीं कर पाती हैं, और वास्तव में, ऐसा करने की एक-दूसरे की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
- एकीकृत दृष्टिकोण का एक अच्छा उदाहरण पश्चिमी भारत में ग्रामीण समुदायों की पारिस्थितिकी प्रथाओं से आता है।
- उदाहरण के लिए, ओरण स्थापित करने की प्रथा।
- ओरण पवित्र वन हैं जो स्थानीय समुदायों के लिए गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं।
- पेड़ और घास के आवरण को बढ़ाकर, ओरण सतही अपवाह को रोकते हैं और इन-सीटू वर्षा जल संचयन का समर्थन करते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र के अन्य घटकों के साथ जल की अन्योन्याश्रितता के बारे में ऐसी समझ प्रभावी जल प्रबंधन और संरक्षण की कुंजी है।
पर्यावरण शासन में मानवीय दृष्टिकोण
- वैश्विक स्तर पर, पर्यावरण शासन में मानवीय दृष्टिकोण पर अधिक जोर दिया गया है, जिसमें परिवर्तन की आवश्यकता है।
- पर्यावरण को विनियमित करने वाले कानूनों और नीतियों में ‘गैर-मानव पर्यावरण’ अर्थात प्रकृति के हितों पर भी विचार किया जाना चाहिए।
- न्यायपालिका ने अक्सर इस दृष्टिकोण को अपनाया है और प्रकृति के अधिकारों को मान्यता देते हुए आकर्षक न्यायशास्त्र विकसित किया है।
- हालाँकि, जल नीतियों ने इस पहलू को अनदेखा कर दिया है और उनका एकमात्र ध्यान जल के लिए मानवीय ज़रूरतों पर रहा है।
- इसके विपरीत, पश्चिमी भारत के कुछ स्थानीय समुदायों की जल प्रबंधन प्रथाएँ जल शासन के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाती हैं।
- उदाहरण के लिए, सिंचाई के लिए उपलब्ध जल की मात्रा आंशिक रूप से जानवरों के लिए इसकी पर्याप्त उपलब्धता पर निर्भर करती है।
जलवायु परिवर्तन
- एक अन्य मुद्दा जल पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है। नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ेगा, भारत में जल की मांग एवं पूर्ति में अंतर बढ़ता जाएगा।
- जलवायु एवं जल संबंधी दोनों प्रकार की नीतियों को जल पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को संबोधित करना चाहिए।
- जल नीतियों को जलवायु-लचीली जल प्रणालियाँ बनाने और मौजूदा प्रणालियों की जलवायु लचीलापन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
- जलवायु नीतियों, विशेष रूप से अनुकूलन नीतियों को जल अंतराल के लिए पारिस्थितिकी तंत्र की लचीलापन बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
निष्कर्ष
स्थानीय एवं स्वदेशी समुदाय और उनकी प्रथाएँ प्रभावी जल प्रबंधन का समर्थन कर सकती हैं। इसलिए, जल नीतियों को समुदायों के साथ सक्रिय सहभागिता को सुविधाजनक बनाना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि समुदायों की प्रथाओं की अपनी सीमाएँ हो सकती हैं जिन्हें जहाँ आवश्यक हो, संवेदनशीलता और क्षमता निर्माण के माध्यम से संबोधित किया जाना चाहिए।
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जल शक्ति अभियान: कैच द रेन-2025 के बारे में
- शुभारंभ : 22 मार्च 2025 (विश्व जल दिवस के अवसर पर)
- मुख्य आयोजन स्थल : ताऊ देवी लाल स्टेडियम, पंचकूला, हरियाणा
- सहयोग : जल शक्ति मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय व हरियाणा सरकार
- थीम : जल संचय जन भागीदारी
- उद्देश्य :
- जल संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा
- 148 जिलों में जल संसाधन प्रबंधन को सशक्त बनाना
- सामुदायिक भागीदारी सुनिश्चित करना
- वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण पर जोर
- मुख्य कार्यक्रम
- 'जल-जंगल-जन' अभियान का शुभारंभ
- मुख्यमंत्री जल संचय योजना व जल संसाधन एटलस का ई-शुभारंभ
- जल संरक्षण में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान समारोह
- चित्रकला और मूर्तिकला प्रदर्शनी
- जल प्रबंधन परियोजनाओं का अनावरण
- संदेश : हर बूंद अनमोल - जल संरक्षण के लिए सभी की भागीदारी आवश्यक
जल शक्ति अभियान: कैच द रेन
- यह भारत सरकार की जल शक्ति मंत्रालय द्वारा संचालित एक प्रमुख पहल है।
- इसका उद्देश्य वर्षा जल का अधिकतम संचयन और संरक्षण करना है।
- इसकी शुरुआत वर्ष 2021 में हुई थी।
- प्रत्येक वर्ष विश्व जल दिवस के अवसर पर इस अभियान को नया रूप दिया जाता है।
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