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वनसंपदा एवं वन्यजीवों का संरक्षण

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

हाल ही में जारी ‘वन स्थिति रिपोर्ट’ तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वन संपदा की क्षति के कारण मानव जीवन पर घातक प्रभाव हो सकते हैं। 

भारत में वन संपदा की स्थिति

  • भोजन से लेकर ईंधन, दवा, आवास, वस्त्र और जीवन की लगभग सभी आवश्यकताओं के लिये मनुष्य वन्य जीवन एवं जैव विविधता-आधारित संसाधनों पर निर्भर है। आजीविका और आर्थिक अवसरों के लिये भी लोग प्रकृति पर निर्भर हैं। 
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची के आँकड़ों के अनुसार वन्य जीवों और वनस्पतियों की 8,400 से अधिक प्रजातियाँ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं, जबकि 30,000 से अधिक प्रजातियों को लुप्तप्राय या सुभेद्य माना जाता है।
  • इन आँकड़ों के अनुसार, भारत की 239 जीव प्रजातियों को लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें स्तनधारियों की 45, पक्षियों की 23, सरीसृप की 18, उभयचरों की 39 और मछलियों की 114 प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • भारत में 733 संरक्षित क्षेत्रों का एक नेटवर्क है, जिसमें 103 राष्ट्रीय उद्यान, 537 वन्यजीव अभयारण्य, 67 संरक्षण रिजर्व और 26 सामुदायिक रिजर्व शामिल हैं, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 4.89% को कवर करते हैं।
  • जीव-प्रजातियों के संरक्षण के लिये मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने तथा इनके आवास की सुरक्षा के लिये संरक्षित क्षेत्रों के आकार में वृद्धि करने की आवश्यकता है।

मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण

  • वन्यजीवों द्वारा पशुधन या घरेलू पशुओं का शिकार; फसल, फल तथा वृक्ष को क्षति पहुँचाना, वाहन-वन्यजीव एवं विमान-पक्षी टक्कर, आवासीय स्थानों में पक्षियों द्वारा घोंसला बनाना आदि मानव-वन्यजीव संघर्ष के कुछ उदाहरण हैं।
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष के अन्य कारणों में वन क्षेत्रों में मानव बस्तियों का विस्तार; शहरों, औद्योगिक क्षेत्रों, रेलवे व सड़क बुनियादी ढाँचें तथा पर्यटन आदि का विस्तार; वन प्रबंधन की अवैज्ञानिक संरचनाएँ और प्रथाएँ भी शामिल हैं।

आवास में कमी

  • भूमि उपयोग में परिवर्तन, जैसे- संरक्षित वन क्षेत्र का कृषि एवं बागवानी भूमि में परिवर्तन तथा मोनोकल्चर वृक्षारोपण वन्यजीवों के आवासों को नष्ट कर रहे हैं।
  • वन्यजीवों के स्थानिक आवास में आक्रामक विदेशी खरपतवारों के संक्रमण से शाकाहारी वन्य जीवों के लिये खाद्य सामग्री (जैसे- घास, पत्ती, फल आदि) की उपलब्धता कम हो जाती है। पशुओं के अवैध शिकार के कारण मांसाहारी पशुओं के भोजन (शिकार) आधार में कमी आ रही है, परिणामस्वरूप जंगली पशु शिकार की तलाश में आवासीय बस्तियों में प्रवेश कर रहे हैं।

मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के प्रयास 

  • इसके लिये शहरी नियोजन को योजनाबद्ध तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। वन्यजीवों के आवास को यथासंभव कम से कम बाधित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
  • साथ ही, संरक्षण उपायों को केवल संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय अभयारण्यों या बायोस्फीयर रिजर्व तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिये बल्कि सम्पूर्ण परिदृश्य को ध्यान में रखने की आवश्यकता है। इससे न केवल मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि व्यापक रूप से जैव विविधता को भी संरक्षित किया जा सकेगा।
  • जानवरों के सुरक्षित आवागमन के लिये विखंडित आवासों को ओवर पास एवं अंडर पास के माध्यम से पुनः जोड़ने की आवश्यकता है। उच्चतम जोखिम वाले क्षेत्रों में वन्यजीव और वाहनों के टक्कर को रोकने के लिये निर्देशित बाड़ भी लगाया जा सकता है।

भारत की संरक्षणशील संस्कृति

  • अत्यधिक जनसंख्या होने के बावजूद वर्तमान में भारत में अधिकांश बड़ी वन्यजीव प्रजातियाँ, जैसे- बाघ, एशियाई हाथी, तेंदुआ, स्लॉथ भालू, गौर आदि की सबसे बड़ी आबादी मौजूद हैं।
  • भारतीय संस्कृति मानव और जीवों के सह-अस्तित्व को स्वीकार करता है। यहाँ देवताओं के साथ पशु एवं जीव जुड़े हुए हैं। गोवा में वेलिप समुदाय द्वारा बाघों की पूजा और राजस्थान में विश्नोई समुदाय द्वारा काले हिरन की पूजा की प्रथा आज भी प्रचलित है। जानवरों को अक्षय संसाधन भी माना जाता है। 

स्थानीय स्तर पर संरक्षण पहल  

  • भारत के पश्चिमी घाट में एक नई संरक्षण पहल के अंतर्गत मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में ‘टेक्स्टिंग’ (Texting) का उपयोग किया गया है। यह हाथियों की गतिविधियों की चेतावनी आस-पास के निवासियों को प्रदान करता है।
  • कनाडा में भी स्थानीय स्तर पर अधिकारियों ने वन्यजीव गलियारों का निर्माण किया है। अधिक मानव आबादी वाले क्षेत्रों में इस प्रकार का संरक्षण वन्यजीवों को एक सुरक्षित मार्ग प्रदान करता है।
  • अफ्रीका के कुछ स्थानीय ग्रामीणों ने हाथियों को खेतों और घरों से दूर रखने के लिये मधुमक्खी और हॉट पीपर्स जैसे प्राकृतिक समाधानों का प्रयोग किया है। विदित है कि मिर्च में पाए जाने वाले कैप्साइसिन रसायन हाथियों को नापसंद होते हैं।

वन्यजीव संरक्षण के लिये आवश्यक कदम

  • अशिक्षित तथा विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रह रहे लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिये राज्य, ज़िला और स्थानीय स्तर पर अभियान चलाये जाने चाहिये। दूरदराज के क्षेत्रों में जागरूकता का प्रसार करने में नागरिक समाज अहम् भूमिका निभा सकता है।
  • विद्यालयों के माध्यम से बच्चों तथा युवाओं को पर्यावरण और वन्य जीवन के प्रति संवेदनशील बनाने के लिये संरक्षण उपायों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिये।
  • लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार अभिसमय के प्रावधानों को शामिल करने तथा अवैध शिकार जैसे अपराधों के लिये दंड में वृद्धि करने के लिये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में संशोधन किया जाना चाहिये। 
  • सभी पहलुओं की जाँच के बाद ही वृहद् बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को स्वीकृत किया जाना चाहिये। देश में 60% वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मौजूद हैं। अतः सरकार को केवल राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय व्यापक संरक्षण दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
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