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IAS Foundation New Batch, Starting from 27th Aug 2024, 06:30 PM | Optional Subject History / Geography | Call: 9555124124

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड का संरक्षण

 (प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता)

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, उच्चतम न्यायालय ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के संरक्षण के लिये ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की तर्ज़ पर ‘प्रोजेक्ट जी.आई.बी.’ को शुरू करने का विचार प्रस्तुत किया है। 

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

GIB

  • जी.आई.बी. को ‘बड़ा भारतीय तिलोर’, ‘सोन चिरैया’, ‘गोडावन’ या ‘गुरायिन’ के नाम से भी जाना जाता हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ‘अर्डीओटिस नाइग्रिसेप्स’ (Ardeotis Nigriceps) है। 
  • यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक विशाल स्थानिक पक्षी है, जो मध्य एवं पश्चिमी भारत तथा पूर्वी पाकिस्तान में पाया जाता है। भारत में यह पक्षी राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में पाया जाता है। 
  • इसका वज़न 14 से 15 किग्रा. और लंबाई 4 फीट तक होती है। ये शुष्क तथा अर्ध-शुष्क घास के मैदान, काँटेदार झाड़ियों वाले खुले प्रदेश, कृषि के साथ लंबी घास वाले क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से मिलते हैं। ये अपना अधिकांश समय ज़मीन पर बिताते हैं और कीड़े, छिपकली, घास के बीज आदि खाते हैं। 
  • यह राजस्थान का राजकीय पक्षी है। जैसलमेर के ‘पवित्र उपवन’ (Sacred Groves) और देगराय ओरण के ‘पवित्र उपवन’ के आसपास के क्षेत्र इनके प्राकृतिक आवासों में से एक हैं। 

संरक्षण स्थिति

  • पवन चक्कियों एवं सौर पार्कों द्वारा आवास स्थलों (घास के मैदानों) का अतिक्रमण होने, अवैध शिकार और ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों से टकराने के कारण इनके जीवन पर खतरा बना हुआ है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, इनकी संख्या वर्तमान में 50 से 249 तक ही बची है। 
  • संरक्षण की स्थिति- 
    • आई.यू.सी.एन. - गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered) 
    • साइट्स (CITES)- परिशिष्ट-I 
    • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में शामिल 

संरक्षण के प्रयास

  • इनकी लगातार घटती संख्या को ध्यान में रखते हुए प्रोजेक्ट टाइगर के समान वर्ष 2013 में राजस्थान सरकार ने प्रोजेक्ट जी.आई.बी. शुरू किया था। 
  • इनके संरक्षण के लिये जैसलमेर के मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान तथा मध्य प्रदेश के शिवपुरी ज़िले में करेरा वन्यजीव अभयारण्य में विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। 
  • वर्ष 2015 में केंद्र सरकार ने ‘जी.आई.बी. प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम’ शुरू किया जिसके तहत भारतीय वन्यजीव संस्थान और राजस्थान वन विभाग ने संयुक्त रूप से जी.आई.बी. प्रजनन केंद्र की स्थापना की।  
  • वर्ष 2020 में वन्यजीव संरक्षण सोसाइटी भारत के साथ मिलकर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पोखरण के जी.आई.बी. सघन क्षेत्रों में ओवरहेड बिजली लाइनों के लिये ‘बर्ड डायवर्टर’ को लगाया था।
    • बर्ड डायवर्टर बिजली के तारों पर परावर्तक जैसी संरचनाएँ होती हैं। जी.आई.बी. इन्हें लगभग 50 मीटर की दूरी से देख सकते हैं और बिजली लाइनों से टकराने से बचने के लिये सही समय पर हवा में अपना रास्ता बदल सकते है।
  • अप्रैल 2021 में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि राजस्थान और गुजरात के कोर और संभावित जी.आई.बी. आवासों में सभी ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत किया जाना चाहिये। 
    • भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के अनुसार, राजस्थान में प्रतिवर्ष 18 जी.आई.बी. ओवरहेड पावर ट्रांसमिशन लाइनों से टकराने से मर जाते हैं।
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