(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, भारतीय राज्यतंत्र और शासन)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय)
संदर्भ
हाल ही में, केंद्र सरकार ने 22वें विधि आयोग का गठन किया। कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतुराज अवस्थी को इस आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
अन्य सदस्य
- आयोग के अन्य पांच सदस्यों में केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. टी. शंकरन, कानून के प्राध्यापक प्रो. आनंद पालीवाल, प्रो. डी.पी. वर्मा और प्रो. राका आर्य तथा एम. करुणानिधि हैं।
- विदित है कि उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ‘बी. एस. चौहान’ की अध्यक्षता में 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को समाप्त हुआ था। इसके चार वर्ष बाद 22वें विधि आयोग का गठन किया गया है।
भारत का विधि आयोग
- कानून मंत्रालय के अनुसार, भारतीय विधि आयोग समय-समय पर भारत सरकार द्वारा गठित एक ‘गैर-सांविधिक’ निकाय है।
- मूल रूप से विधि आयोग का गठन वर्ष 1955 में किया गया था जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन महान्यायवादी ‘एम. सी. सीतलवाड़’ ने की थी।
- विधि आयोग भारत में कानूनों की उत्कृष्ट तथा महत्वपूर्ण समीक्षा करता है। साथ ही, प्रगतिशील विकास तथा देश के कानून के संहिताकरण के बारे में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
- इसका लक्ष्य समाज में न्याय को अधिकतम करने और विधि के शासन के तहत सुशासन को बढ़ावा देने के लिये कानूनों में सुधार का सुझाव देना है।
- विधि आयोग के विचारार्थ विषयों में अन्य बातों के साथ-साथ अप्रचलित कानूनों की समीक्षा/निरसन, गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की जांच करना और सामाजिक-आर्थिक विधानों के लिये पोस्ट-ऑडिट करना, न्यायिक प्रशासन की प्रणाली की समीक्षा करना शामिल है।
- इस आयोग का कार्य कुछ निर्धारित संदर्भ के साथ कानून के क्षेत्र में अनुसंधान करना है। आयोग अपने संदर्भ शर्तों के अनुसार सरकार को (रिपोर्ट के रूप में) सिफारिशें करता है। विधि आयोग ने अभी तक 277 रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं।
22वां विधि आयोग
- 19 फरवरी, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 22वें विधि आयोग के गठन को अनुमोदित किये जाने के ढाई साल बाद इसका गठन किया गया है।
- इसका कार्यकाल आधिकारिक राजपत्र में संविधान के आदेश के प्रकाशन की तिथि से तीन वर्ष का होगा। उल्लेखनीय है कि प्रत्येक 3 वर्ष के लिये इसका पुनर्गठन किया जाता है।
आयोग के कार्य
- यह आयोग अन्य बातों के अतिरिक्त निम्न कार्य करेगा-
- उन कानूनों की पहचान करना जिनकी वर्तमान में आवश्यकता या प्रासंगिकता नहीं है और जिन्हें तुरंत निरस्त किया जा सकता है
- समान नागरिक संहिता की मांग पर विचार करना
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों के आलोक में मौजूदा कानूनों की जांच करना और सुधार के तरीकों का सुझाव देना
- ऐसे कानूनों का भी सुझाव देना जो निदेशक सिद्धांतों को लागू करने के लिये आवश्यक हो सकते हैं
- संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने के आवश्यक कानूनों पर सुझाव देना
- सामान्य महत्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करने का सुझाव देना, जिससे उन्हें सरल बनाया जा सके और उनमे व्याप्त विसंगतियों, अस्पष्टताओं व असमानताओं को दूर किया जा सके।
- प्रक्रियाओं में देरी को समाप्त करने, मामलों को तेजी से निपटाने, अभियोग की लागत कम करने के लिये न्याय आपूर्ति प्रणालियों में सुधार लाने के उद्देश्य से अध्ययन तथा अनुसंधान करना।