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राज्यपाल को प्राप्त संवैधानिक प्रतिरक्षा

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत की राजव्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति और विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य व उत्तरदायित्व) 

संदर्भ

सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने पश्चिम बंगाल राजभवन की एक महिला कर्मचारी द्वारा दायर याचिका की जांच के लिए अपनी सहमति व्यक्त की है। इस याचिका में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस पर यौन उत्पीड़न का आरोप है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल को प्राप्त ‘संवैधानिक प्रतिरक्षा’ को चुनौती दी गई है।

अनुच्छेद 361 के प्रावधान

  • अनुच्छेद 361 के तहत भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान कानूनी कार्यवाही से छूट प्राप्त है।
    • इस प्रकार, यह अनुच्छेद 14 का अपवाद है, जिसमें कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण का प्रावधान है। 
  • अनुच्छेद 361 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राष्ट्रपति एवं राज्यपाल अपनी आधिकारिक शक्तियों व कर्तव्यों के प्रयोग एवं प्रदर्शन के लिए या इन कर्तव्यों के दौरान किए गए किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।

आपराधिक मामलों के संबंध में 

  • भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ कोई आपराधिक मामला शुरू या जारी नहीं रखा जा सकती है।
  • अनुच्छेद 361 के खंड (2) के तहत किसी भी अदालत द्वारा उनके खिलाफ कोई गिरफ्तारी या कारावास का आदेश जारी नहीं किया जा सकता है। 

सिविल मामलों के संबंध में  

  • व्यक्तिगत कृत्यों से संबंधित किसी भी सिविल कार्यवाही के लिए दो महीने का नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें निम्नलिखित सूचनाएं होनी चाहिए: 
    • कार्यवाही की प्रकृति
    • कार्रवाई का कारण
    • पक्षकार का नाम, विवरण और निवास स्थान जिसके द्वारा ऐसी कार्यवाही की मांग की गई है
    • राहत जिसका वह दावा करता है 
  • इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 361 का खंड (3) उनकी पदावधि के दौरान किसी भी गिरफ्तारी या कारावास के आदेश को प्रतिबंधित करता है।

प्रतिरक्षा की उत्पत्ति

राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्राप्त प्रतिरक्षा की उत्पत्ति लैटिन कहावत “रेक्स नॉन पोटेस्ट पेकेरे” (rex non potest peccare) या "राजा कुछ गलत नहीं कर सकता" (the king can do no wrong) से मानी जाती है, जो अंग्रेजी कानूनी परंपराओं में निहित है।

भारत में राज्यपाल की भूमिका 

  • अनुच्छेद 153 और 154 के अनुसार, राज्यपाल संवैधानिक ढांचे के भीतर राज्य सरकारों के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करते हैं। 
    • भारत में राज्यपालों पर संविधान और कानूनों को बनाए रखने एवं लागू करने की जिम्मेदारी है।
  • अनुच्छेद 154 निर्दिष्ट करता है, “राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और इसका प्रयोग वह संविधान के अनुसार प्रत्यक्षतः या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा।

राज्यपालों की शक्तियों की समीक्षा

  • संविधान राज्यपाल को विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है, जिनका वे विशिष्ट परिस्थितियों में प्रयोग कर सकते हैं।
  • ये शक्तियाँ राज्यपाल को कार्यकारी क्षेत्र में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम बनाती हैं, विशेषकर राजनीतिक या प्रशासनिक अनिश्चितता के समय में।
  • यद्यपि ये शक्तियाँ संवैधानिक रूप से प्राप्त हैं, फिर भी ये न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इनका प्रयोग कानूनी और उचित सीमा के भीतर किया जाता है।
  • राज्य बनाम कल्याण सिंह एवं अन्य : सर्वोच्च न्यायालय ने बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित आपराधिक मामले में वर्ष 2017 के अपने आदेश में कहा कि राज्यपाल होने के नाते कल्याण सिंह संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत उन्मुक्ति के हकदार हैं। 
    • हालाँकि, यह उन्मुक्ति तक तक ही है जब तक वे राज्यपाल के पद पर हैं। राज्यपाल के पद से हटने के उपरांत, सत्र न्यायालय उनके खिलाफ आरोप तय दायर कर सकता है।
  • मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (2015) : न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि अनुच्छेद 361(2) “किसी राज्य के प्रमुख के खिलाफ किसी भी दुर्भावनापूर्ण अभियान या प्रचार से पूर्ण सुरक्षा की गारंटी देता है, ताकि उसके कार्यालय की गंभीरता को कमजोर न किया जाए।”
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