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विधानसभा अध्यक्ष पद के संवैधानिक निहितार्थ 

(प्रारंभिक परीक्षा : राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, संवैधानिक पद और संसद की कार्यवाही से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - भारतीय संविधान, संसद और राज्य विधायिका की संरचना, कार्य, कार्य-संचालन एवं विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्तियाँ और शक्तियों से संबंधित प्रश्न)

संदर्भ 

  • हाल ही में, महाराष्ट्र विधानसभा ने बिना अध्यक्ष चुने ही अपने 2 दिवसीय मानसून सत्र को समाप्त कर दिया। 
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के उपरांत कांग्रेस के विधायक को अध्यक्ष पद के लिये चुना गया, जिन्होंने फरवरी माह में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया थाइसके पश्चात् राकांपा के विधायक विधानसभा में कार्यवाही के शीर्ष पर कार्यरत हैं।  विपक्ष ने राज्यपाल से अध्यक्ष पद को भरने की माँग की, जिसे मुख्यमंत्री को प्रेषित किया गया।  

ुख्यमंत्री का उत्तर 

  • मुख्यमंत्री नेसंविधान और विधानसभा की नियमावलीका उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें अध्यक्ष पद की रिक्ति को भरने के लिये किसी भी प्रकार कीसमय-सीमा को निर्दिष्ट नहींकिया गया है।
  • साथ ही, अध्यक्ष पद का चुनाव कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने के पश्चात् उचित समय पर किया जाएगा। 

अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद की रिक्ति से संबंधित प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान में, महाराष्ट्र विधानसभा के अध्यक्ष का पद रिक्त है। 
  • यद्यपि, अन्य राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ लोकसभा में भी उपाध्यक्ष का पद रिक्त है। साथ ही, बड़े राज्यों की विधानसभाओं की वेबसाइटों पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड में भी उपाध्यक्ष के पद रिक्त हैं।
  • महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार के दौरान भी उपाध्यक्ष का पद चार वर्षों तक रिक्त रहा था। 

अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष पद की चुनाव प्रक्रिया 

  • संविधान राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश और  नियंत्रक और महालेखापरीक्षक के साथ-साथ लोकप्रिय सदन के अध्यक्ष (Speakers) और उपाध्यक्ष (Deputy Speakers) जैसे पदों को निर्दिष्ट करता है।
  • लोकसभा के लिये संविधान का  अनुच्छेद 93 और राज्य विधानसभाओं के लिये अनुच्छेद 178 में निर्दिष्ट किया गया है कि ये सदनजितनी जल्दी होअपने दो सदस्यों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित करेंगे।
  • संविधान इन पदों के निर्वाचन के लिये तो कोई समय-सीमा का निर्धारण करता है और ही किसी भी प्रक्रिया को निर्दिष्ट करता है। गौरतलब है कि इसके निर्धारण की शक्ति विधायिका को दी गई है।
  • लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में, राष्ट्रपति या राज्यपाल अध्यक्ष पद के चुनाव के लिये एक तिथि का निर्धारण करते हैं और अध्यक्ष के निर्वाचन के पश्चात् अध्यक्ष, उपाध्यक्ष पद के चुनाव के लिये तारीख का निर्धारण करते हैं।     
  • संविधान में प्रावधान है कि अध्यक्ष का पद कभी भी खाली नहीं रहना चाहिये। इसलिये, उसकी मृत्यु या इस्तीफे की स्थिति को छोड़कर, वह अगले सदन की शुरुआत तक अपने पद पर बना रहता है।

विभिन्न राज्यों में प्रावधान 

  • हरियाणा और उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का चुनाव कराने के लिये एक निश्चित समय-सीमा को निर्दिष्ट किया गया है।
  • हरियाणा में, विधानसभा अध्यक्ष पद का निर्वाचन, विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद शीघ्र कराना आवश्यक होता है; तत्पश्चात 7 दिनों के भीतर उपाध्यक्ष पद का चुनाव कराना आवश्यक होता है।
  • नियम यह भी निर्दिष्ट करते हैं कि यदि इन पदों में बाद में कोई रिक्ति होती है तो इनके लिये चुनाव विधायिका के अगले सत्र के 7 दिनों के भीतर होना चाहिये।
  • उत्तर प्रदेश में विधानसभा के कार्यकाल के दौरान अध्यक्ष पद की रिक्ति होने पर नए निर्वाचन के लिये 15 दिनों की सीमा निश्चित है। वहीं उपाध्यक्ष के मामले में, पहले चुनाव की तारीख अध्यक्ष द्वारा तय की जाती है और बाद की रिक्तियों को भरने के लिये 30 दिन का समय दिया जाता है।

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के कार्य 

  • लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित पुस्तकप्रैक्टिस एंड प्रोसीज़र ऑफ पार्लियामेंटके अनुसार अध्यक्ष, सदन का प्रमुख प्रवक्ता होने के साथ-साथ सदन की सामूहिक आवाज़ का प्रतिनिधित्व भी करता है।
  • अध्यक्ष, सदन की कार्यवाही और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों (अनुच्छेद 108) की अध्यक्षता करता है। साथ ही, धन विधेयक (अनुच्छेद 110) का भी निर्धारण करता है। 
  • उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के अधीनस्थ न होकर उससे स्वतंत्र होता है, क्योंकि दोनों का निर्वाचन सदन के सदस्यों में से ही किया जाता है।
  • स्वतंत्रता पश्चात्, लोकसभा उपाध्यक्ष पद की महत्ता में बढ़ोत्तरी हुई है। उपाध्यक्ष, अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन की अध्यक्षता करने के अलावा संसद के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर समितियों की अध्यक्षता करता है। उदाहरण के लिये, 16वीं लोकसभा के उपाध्यक्ष एम. थंबीदुरई ने निजी सदस्यों के विधेयकों और प्रस्तावों पर गठित लोकसभा समिति और एम.पी. स्थानीय क्षेत्र विकास योजना की निगरानी करने वाली समिति का नेतृत्व किया है।
  • ध्यक्ष का पद रिक्त होने की स्थिति में, उपाध्यक्ष अध्यक्ष के पद की निरंतरता को सुनिश्चित करता है (जैसे - वर्ष 1956 में प्रथम लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर और वर्ष 2002 में जी.एम.सी. बालयोगी की मृत्यु के पश्चात् तथा वर्ष 1977 में लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिये इस्तीफ़ा देने के कारण पद रिक्ति के समय हुआ)
  • इसके अलावा, जब अध्यक्ष को पद से हटाने का प्रस्ताव (जैसा कि वर्ष 1987 में लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ के विरुद्ध हुआ) लोकसभा में विचाराधीन हो तो संविधान निर्दिष्ट करता है कि उपाध्यक्ष सदन की कार्यवाही की अध्यक्षता करेगा।
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