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अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षण हेतु संवैधानिक प्रावधान

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- विशेषताएँ, महत्त्वपूर्ण प्रावधान, केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ, अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय)

संदर्भ 

  • अल्पसंख्यक अधिकारों पर बहस को सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता (पंथनिरपेक्षता) के मौजूदा ढाँचे से ऊपर उठाकर लोकतंत्र और वास्तविक समानता के सैद्धांतिक क्षेत्र में रखा जाना चाहिए। 
  • फ्रैंकलिन रूजवेल्ट के अनुसार ऐसा कोई भी लोकतंत्र लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता है जो अल्पसंख्यकों के अधिकारों की मान्यता को अपने अस्तित्व के लिए मौलिक रूप से स्वीकार नहीं करता है।
  • अल्पसंख्यक अधिकारों के महत्व को पहचानते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसंबर, 1992 को ‘राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों से संबंधित व्यक्तियों के अधिकारों’ पर एक घोषणा पत्र को अपनाया। 
    • इस तिथि को पूरी दुनिया में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

अल्पसंख्यक अधिकारों की उत्पत्ति

  • ऑस्ट्रियाई संवैधानिक कानून (1867) के अनुच्छेद-19 में यह स्वीकार किया गया है कि जातीय अल्पसंख्यकों को अपनी राष्ट्रीयता एवं भाषाओं को बनाए रखने तथा विकसित करने का पूर्ण अधिकार है। 
  • हंगरी के अधिनियम XLIV, 1868 और स्विस परिसंघ के संविधान, 1874 में भी इसी तरह के प्रावधान किए गए हैं। 
    • स्विस परिसंघ के संविधान में देश की तीनों भाषाओं को सिविल सेवाओं, कानून एवं न्यायालयों में समान अधिकार दिए गए। 
  • प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति संधियों के प्रावधानों में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर विशेष ध्यान दिया गया। 
    • एक ओर मित्र एवं संबद्ध शक्तियों और दूसरी ओर पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया, ग्रीस व यूगोस्लाविया के बीच हुई पाँच संधियों में अल्पसंख्यक सुरक्षा को संहिताबद्ध किया गया। 
    • ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, हंगरी एवं तुर्की के साथ शांति संधियों में अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान शामिल किए गए, जबकि अल्बानिया, फिनलैंड व इराक ने घोषणा की कि वे अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करेंगे।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 27 में प्रत्येक व्यक्ति को समुदायिक  अधिकार दिया गया है।

संविधान सभा में बहस

  • संविधान निर्माताओं ने अल्पसंख्यकों की जरूरतों के प्रति गहरी संवेदनशीलता दिखाई। पंडित जी. बी. पंत ने मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर एक सलाहकार समिति स्थापित करने का प्रस्ताव पेश किया। 
  • सरदार वल्लभभाई पटेल की अध्यक्षता वाली समिति ने अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दे की जांच की और तदनुसार संविधान में अनुच्छेद 25 से 30 को अधिनियमित किया गया। 
    • इन अनुच्छेदों में अंतर्निहित तर्क यह है कि भारत जैसे विषम देश में व्यक्तिवादी सार्वभौमिक अधिकार बहुत उपयोगी नहीं हैं और हमें बहुसंस्कृतिवाद एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों के आधार पर चर्चा की आवश्यकता है जो समकालीन राजनीतिक सिद्धांत को चिह्नित करते हैं।

अल्पसंख्यक अधिकारों के पीछे तर्क

  • भारतीय संविधान में विविधता का संरक्षण अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए तर्क है। वास्तव में अनुच्छेद 14-18 (समानता), 19 (वाक् स्वतंत्रता) और 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत व्यक्तिगत अधिकार भाषा, लिपि या संस्कृति के संरक्षण के लिए पर्याप्त नहीं हैं। 
    • इसलिए अनुच्छेद 29 के तहत इनका विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। 
  • किसी व्यक्ति के संस्कृति के अधिकार का तब तक कोई महत्व नहीं रह जाता है जब तक कि जिस समुदाय का वह सदस्य है या जिसके साथ उसकी पहचान है, उसे व्यवहार्य रूप में अस्तित्व में रहने का अधिकार न दिया जाए। 
    • इसके लिए समान संस्कृति साझा करने वाले समूह की उपस्थिति के साथ ही  एक अनुकूल वातावरण भी होना चाहिए जिसमें ऐसी संस्कृतियाँ पनप सकें। 
  • अनुच्छेद 30 के तहत धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद की संस्थाएँ स्थापित करने और उनका प्रशासन करने की अनुमति है ताकि इन संस्थाओं में अल्पसंख्यकों की संस्कृति के विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके। 
  • हाल ही में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (2024) वाद में सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट शब्दों में अनुच्छेद 30 को ‘समान एवं गैर-भेदभावपूर्ण बताया। 
  • सेंट जेवियर्स कॉलेज सोसाइटी (1974) वाद  में सर्वोच्च न्यायालय की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय दिया था कि अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यकों को अधिकार प्रदान करने का उद्देश्य बहुसंख्यकों एवं अल्पसंख्यकों के बीच समानता सुनिश्चित करना है। 
  • केशवानंद भारती (1973) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 30 के तहत प्राप्त अधिकारों को मूल ढांचे का हिस्सा माना गया था जिसे संसद भी संविधान संशोधन के माध्यम से नहीं बदल सकती है।

क्या है अल्पसंख्यक अधिकार 

  • भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक शब्द की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकांश निर्णयों में माना है कि अल्पसंख्यकों को राज्य के स्तर पर परिभाषित किया जाना चाहिए। 
    • पंजाब, कश्मीर एवं पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदू धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, इसलिए वे भी अल्पसंख्यक अधिकार के हकदार हैं। 
  • अनुच्छेद 29(1) के अनुसार भारत के क्षेत्र या उसके किसी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी अलग भाषा, लिपि या संस्कृति रखने का अधिकार होगा।
  • इसके प्रमुख आयामों में शामिल हैं : 
    • यह स्वीकार करता है कि विभिन्न समूहों की अलग-अलग संस्कृतियाँ होती हैं और सभी लोगों की सिर्फ़ एक संस्कृति नहीं हो सकती है। 
    • ये भाषाई एवं धार्मिक संस्कृतियाँ अपने सदस्यों के लिए मूल्यवान हैं, इसलिए उन्हें अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए स्पष्ट अधिकार दिए जाने चाहिए। 
    • संस्कृति का अधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है, अर्थात व्यक्तियों को अपनी विशिष्ट संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है।
  • अनुच्छेद 30 गारंटी देता है कि सभी धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यकों को ‘अपनी पसंद’ के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार होगा। 
    • केरल शिक्षा विधेयक (1957) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 30 में प्रमुख शब्द ‘पसंद’ है और अल्पसंख्यक अपनी पसंद को जितना चाहें उतना विस्तारित कर सकते हैं।
    •  न्यायालय ने यह भी कहा कि ‘शैक्षणिक संस्थान’ शब्द में विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय एस.के. पात्रो (1969), सेंट स्टीफंस (1992) और अजीज बाशा (1967) जैसे मामलों में संविधान-पूर्व संस्थानों को अनुच्छेद 30 के तहत संरक्षण देने में भी सुसंगत रहे हैं। 
  • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (2024) के नवीनतम निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि राष्ट्रीय महत्व का संस्थान भी अल्पसंख्यक स्थिति का दावा कर सकता है।
  • इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 350A में मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा देने तथा अनुच्छेद 350B में भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है।
  • अल्पसंख्यकों की समस्याओं से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और एक राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग भी है।

अल्पसंख्यक की परिभाषा

  • टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन (2002) मामले में सर्वोच्च न्यायालय की 11 न्यायाधीशों की पीठ ने अल्पसंख्यक संस्थानों के मानक के सवाल को अनुत्तरित छोड़ दिया था। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (2024) मामले से संबंधित ऐतिहासिक निर्णय में कुछ मानक निर्धारित किए हैं-
    • मानक के मुद्दे पर सभी न्यायाधीशों ने समग्र, व्यापक एवं लचीले मानदंडों को प्राथमिकता दी है।
    • इसके अलावा, पहल करने वाला व्यक्ति अल्पसंख्यक समुदाय से होना चाहिए। 
    • उसका आशय ‘मुख्यत: अल्पसंख्यक समुदाय के लिए’ एक संस्थान स्थापित करना होना चाहिए और अन्य विचारणीय कारकों में धन का संग्रह, भूमि प्राप्त करना, भवनों का निर्माण एवं सरकारी मंजूरी होंगे।
    • यह आवश्यक नहीं है कि स्थापित संस्थान का प्रशासन अल्पसंख्यकों के पास ही निहित हो। 
  • अनुच्छेद 30(2) में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि राज्य सहायता देते समय अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता है। 
    • केरल शिक्षा विधेयक (1957) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि राज्य सहायता देने या अल्पसंख्यक संस्थानों को संबद्धता देने में ऐसी ‘कठोर’ शर्तें नहीं लगा सकता है जिसके लिए उन्हें अपने संस्थानों के अल्पसंख्यक स्थिति को त्यागना पड़े।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार यह माना है कि अल्पसंख्यकों द्वारा अपने संस्थानों का कुप्रशासन करने पर सरकार कुप्रशासन के खिलाफ उचित सुरक्षा उपायों पर बल देने, शिक्षण के उचित मानकों को बनाए रखने और ‘संस्थानों की उत्कृष्टता’ सुनिश्चित करने के लिए उचित नियम बना सकती है।
    • सेंट जेवियर्स (1974) वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रबंधन के अनन्य अधिकार की आड़ में अल्पसंख्यक सामान्य पैटर्न का पालन करने से इनकार नहीं कर सकते हैं।
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