(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन; इन अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान व निकाय) |
संदर्भ
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिकता को 4:1 से बरक़रार रखा है। हालाँकि, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला ने इससे अपनी असहमति व्यक्त की है। नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A का संबंध 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के मध्य असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने से संबंधित है।
धारा 6A के संबंध में याचिकाकर्ताओं के तर्क
- सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाकर्ताओं का प्रश्न था कि सीमावर्ती राज्यों में से केवल असम को ही धारा 6A के लिए क्यों चुना गया है।
- उनका तर्क था कि धारा 6A के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में घुसपैठ में वृद्धि हुई है जिससे राज्य में जनसांख्यिकी परिवर्तन के कारण संविधान के अनुच्छेद 29 के तहत स्वदेशी असमिया लोगों को अपनी संस्कृति को संरक्षित करने के अधिकार प्रभावित हुए हैं।
- याचिकाकर्ताओं के अनुसार, असम में नागरिकता के लिए अलग कट-ऑफ तिथि निर्धारित करना ‘भेदभावपूर्ण, मनमाना एवं अवैध’ है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन भी है।
- यह धारा संविधान के अनुच्छेद 325 एवं 326 के तहत असम के नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों को कमज़ोर करता है क्योंकि मतदाता सूची में प्रवासियों को शामिल करने से संभावित रूप से चुनाव परिणाम बदल सकते हैं।
क्या है नागरिकता अधिनियम की धारा 6A
- नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A एक विशेष प्रावधान है जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार द्वारा 15 अगस्त, 1985 को हस्ताक्षरित ‘असम समझौते’ के तहत शामिल किया गया था।
- यह समझौता बांग्लादेश से असम में प्रवासियों के प्रवेश के खिलाफ छह वर्ष तक जारी आंदोलन का परिणाम था।
- असम समझौते में प्रवासियों की तीन श्रेणियाँ बनाई गईं :
- वे जो 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश कर गए थे उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा। उन्हें भारतीय नागरिकों के समान सभी अधिकार एवं दायित्व प्राप्त होंगे।
- वे जो 1 जनवरी, 1966 से 24 मार्च, 1971 (बांग्लादेश मुक्ति युद्ध का अंत) के मध्य भारत आए थे। ऐसे लोग नागरिकता का दावा कर सकते थे किंतु उन्हें 10 वर्ष तक मतदान की अनुमति नहीं थी।
- वे जो 25 मार्च, 1971 के बाद आए उन्हें अवैध अप्रवासी माना जाएगा और निर्वासित किया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार ‘असम समझौता’ अवैध प्रवासन की समस्या का राजनीतिक समाधान है जबकि धारा 6A एक विधायी समाधान है।
- न्यायालय के अनुसार, संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है।
- न्यायालय ने माना कि धारा 6A को स्थानीय आबादी की सुरक्षा की आवश्यकता के साथ मानवीय चिंताओं को संतुलित करने के लिए लागू किया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने असम को बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले अन्य राज्यों से अलग करने को तर्कसंगत माना है क्योंकि असम में स्थानीय आबादी में अप्रवासियों की संख्या अन्य सीमावर्ती राज्यों की तुलना में अधिक थी।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की मौजूदगी मात्र से संविधान के अनुच्छेद 29(1) अर्थात् अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा का उल्लंघन नहीं होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने याचिकाकर्ताओं से बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से ठीक पहले वर्ष 1966 से वर्ष 1971 के बीच भारत आए सीमा पार के प्रवासियों को दिए गए लाभों से जनसांख्यिकीय परिवर्तन और इससे असमिया सांस्कृतिक पहचान पर पड़ने वाले प्रभावों की पुष्टि के लिए साक्ष्य की मांग की।
- संवैधानिक पीठ ने यह भी स्पष्ट किया था कि उसका दायरा असम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के बजाए धारा 6A की वैधता की जाँच करने तक सीमित है।
- संवैधानिक पीठ ने बांग्लादेश से अवैध रूप से आए लोगों की संख्या और अवैध रूप से प्रवेश करने वालों का पता लगाने तथा उन्हें निर्वासित करने के लिए केंद्र द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी थी।
- इस निर्णय का असम के विवादास्पद NRC प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है।
केंद्र सरकार का पक्ष
- केंद्र सरकार के अनुसार भारत में गुप्त रूप से प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों का पता लगाना, उन्हें हिरासत में लेना और निर्वासित करना निरंतर जारी एक ‘जटिल प्रक्रिया’ है।
- केंद्र सरकार ने घुसपैठियों और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा पर बाड़ लगाने के काम को समय पर पूरा करने में बाधा उत्पन्न करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों को भी दोषी ठहराया था।
- सरकार का तर्क था कि पश्चिम बंगाल में धीमी एवं अधिक जटिल भूमि अधिग्रहण नीतियां सीमा-बाड़ लगाने जैसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा परियोजना के लिए बाधा बन गई हैं।
- केंद्र सरकार के अनुसार बांग्लादेश के साथ पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा एवंअसम राज्यों से लगी कुल 4,096.7 किमी. की सीमा खुली थी।
असम के राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) पर प्रभाव
- सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय का असम के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ है जो नागरिकता एवं अवैध प्रवासन को लेकर लंबे समय से विवादों में उलझा हुआ है।
- असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) का उद्देश्य उन अवैध प्रवासियों की पहचान करना है जो 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आए थे।
- केंद्र सरकार द्वारा असम में NRC की प्रक्रिया नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A और असम समझौता, 1985 में बनाए गए नियमों पर आधारित है।
- ऐसे में सर्वोच्च नयायालय के निर्णय ने इस प्रक्रिया की वैधता को मजबूत किया है। इससे असम में NRC के कार्यान्वयन में तेज़ी आने की संभावना है।
- असम में वर्ष 2013-14 में NRC को लागू किया गया था। इसके अद्यतन फ़ाइनल ड्राफ्ट को अगस्त 2019 में प्रकाशित किया गया जिसमें असम की 3.3 करोड़ की आबादी में से लगभग 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था।
- इससे सूची की सटीकता और बाहर रखे गए लोगों की नागरिकता की स्थिति को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हो गई थीं।
- हालाँकि, इस ड्राफ्ट को भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा आधिकारिक रूप से अधिसूचित नहीं किया गया था। ऐसे में सूची से बाहर रखे गए लोगों के पास अभी भी मतदान के अधिकार सहित सभी नागरिकता अधिकार हैं।
असम सरकार का पक्ष
- मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली असम सरकार ने कई अनियमितताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2013-14 में लागू NRC पर असंतोष व्यक्त किया।
- राज्य ने NRC के पुनर्सत्यापन के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है, जिसमें सीमावर्ती जिलों में 20% और अन्य क्षेत्रों में 10% पुनर्सत्यापन की मांग की गई है।
- राज्य सरकार का तर्क है कि संदिग्ध मतदाता (डी-वोटर) और घोषित विदेशी के रूप में पहचान किए गए कई व्यक्तियों को गलती से अंतिम NRC सूची में शामिल कर दिया गया था।
- हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक राज्य के पुनर्सत्यापन के अनुरोध पर कोई निर्णय नहीं दिया है।