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शहरों में निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन

मुख्य परीक्षा

(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

भारतीय शहरों में अधिकतम लोगों एवं गतिविधियों को समायोजित करने के लिए लगातार संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। ऐसे में निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट से निपटने की चुनौती बढ़ती जा रही है। 

क्या है निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट

  • निर्माण अपशिष्ट में डामर, सीमेंट, ईंटें, कांच, कीलें, वायरिंग, इन्सुलेशन (भवन में तापीय ऊर्जा के प्रवाह को कम करने के लिए प्रयुक्त), सरिया, लकड़ी, प्लास्टर, सेनेटरी वेयर और स्क्रैप धातु शामिल हैं। 
  • ड्रेजिंग सामग्री या विध्वंस स्थल तैयार करते समय वृक्ष के तने, चट्टानें, मिट्टी व मलबा आदि को भी हटाया जाता है जो अपशिष्ट सामग्री में शामिल हैं। 

तीव्र शहरी विकास से निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट में वृद्धि 

  • निजी व सार्वजनिक शहरी निर्माण परियोजनाओं की सीमा बहुत बड़ी है। इनमें आवासीय एवं व्यावसायिक परिसर, स्कूल, अस्पताल, बाजार, सड़कें, पुल, फ्लाईओवर, सुरंगें, मेट्रो व मोनोरेल जैसी परिवहन सेवाएँ, फुटब्रिज, शौचालय, जल निकासी कार्य, जल सीवरेज कार्य, पुस्तकालय, संग्रहालय, थिएटर व स्विमिंग पूल आदि शामिल हैं।
  • समय के साथ बुनियादी ढाँचे का क्षरण होता जाता है। ऐसे में उनकी उपयोगिता समाप्त होने पर उन्हें ध्वस्त कर उनकी जगह नए बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाता है। 
  • कई मामलों में पुराने बुनियादी ढाँचे का विध्वंस आवश्यक हो जाता है ताकि शहरों की तेजी से बढ़ती जरूरतों को बेहतर, बड़े या अधिक परिष्कृत बुनियादी ढाँचे के साथ पूरा किया जा सके।
    • इस प्रकार, शहरों से उत्पन्न निर्माण अपशिष्ट की मात्रा बहुत अधिक होती है जिसे समान्यत: निर्माण एवं विध्वंस (Construction and Demolition) अपशिष्ट के रूप में जाना जाता है।
  • दो भारतीय सरकारी एजेंसियों ‘भवन निर्माण सामग्री एवं प्रौद्योगिकी संवर्धन परिषद’ और ‘फ्लाई ऐश अनुसंधान एवं प्रबंधन केंद्र’ ने वर्ष 2005 से 2013 तक 165 से 175 मिलियन टन का राष्ट्रीय वार्षिक निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट उत्पादन का अनुमान लगाया है। 
  • कुछ अन्य अनुमानों  के अनुसार किसी भी निर्माण स्थल पर पहुंचाई गई निर्माण सामग्री के कुल वजन का 30% निर्माण अपशिष्ट होता है।

निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट संबंधी चुनौतियाँ 

नियमों एवं विनियमों की अवहेलना 

  • भारतीय शहरों में निर्माण अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बनाए गए नियम एवं कानून की अवहेलना की जाती है जिससे शहरों के सामने आने वाली बड़ी समस्याएँ अधिक बढ़ जाती हैं। 
    • शहरी जल निकायों को जाम (चोक) करने और शहरी बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करने में निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट गंभीर रूप से उत्तरदायी है। 

नदी तट पर अपशिष्ट को डंप करना 

  • अपशिष्ट निपटान में परिवहन लागत की बचत करने के लिए नदी के किनारे अपशिष्ट को डंप किया जाता है। 
  • धीरे-धीरे नदी तल संकीर्ण हो जाता है जिससे नदी के किनारे की भूमि को भविष्य के निर्माण के लिए तैयार कर लिया जाता है। 
  • भारी वर्षा एवं नदियों में उफान की स्थिति में ऐसी पुनःप्राप्त भूमि पर निर्मित इमारतें नष्ट हो सकती हैं। 

अत्यधिक मात्रा में अपशिष्ट 

विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के अनुसार, वर्ष 2005 से 2013 के बीच देश भर की नदियों में लगभग 287 मिलियन टन निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट विसर्जित किया गया। इससे नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को अत्यधिक क्षति पहुँची है।

सीमित पुनर्चक्रण

देश के बहुत कम शहरों में निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट पुनर्चक्रण (रिसाइकिलिंग) की सुविधा है। निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (C&D नियम) शहरी स्थानीय निकायों को अपने स्वयं के निर्माण में 10 से 20% रिसाइकिल किए गए अपशिष्ट का उपयोग करने का प्रावधान करते हैं।

निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट उपचार समाधान  

निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (C&D नियम), 2016

  • वर्ष 2016 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ऐसे अपशिष्ट को विनियमित करने के लिए निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (C&D नियम) लागू किया। 
    • इसमें निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट को निर्माण सामग्री, मलबे एवं मलबे से बने कचरे के रूप में परिभाषित किया गया जो किसी भी नागरिक संरचना के निर्माण, पुनर्निर्माण, मरम्मत व विध्वंस से उत्पन्न होता है। 
    • इसमें कचरा उत्पादकों के कर्तव्यों को निर्दिष्ट किया गया जिसमें कंक्रीट, मिट्टी तथा अन्य निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट को एकत्रित करना, अलग करना और संग्रहीत करना उनकी प्रथम दृष्टया जिम्मेदारी है।
    • इसमें कचरा उत्पादकों को अपने परिसर के भीतर कचरे को संग्रहीत कर इसे स्थानीय प्राधिकरण संग्रह केंद्र में जमा करने या अधिकृत प्रसंस्करण सुविधाओं को सौंपने का आदेश है। 
    • इसमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कोई भी कचरा सड़कों या नालियों पर न जमा हो। इसके अतिरिक्त प्रत्येक अपशिष्ट उत्पादक को संग्रहण, परिवहन, प्रसंस्करण एवं निपटान के लिए भुगतान का प्रावधान है। 
    • नियमों में शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को निर्धारित नियमों के अनुसार उचित निपटान के लिए निर्देश अधिसूचित करने और निपटान व्यवस्था स्वयं या नियुक्त निजी ऑपरेटरों के माध्यम से करने का आदेश दिया गया। 
    • यू.एल.बी. से एक सूचना एवं  संचार प्रणाली बनाने और विशेषज्ञ संस्थानों तथा नागरिक समाज संगठनों से सहायता लेने का आग्रह किया गया। 

3R फार्मूले का उपयोग 

  • निर्माण से उत्सर्जित अपशिष्ट की मात्रा अत्यधिक होती है। इसलिए, सर्वप्रथम इसका बेहतर तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए। अनप्रयुक्त निर्माण अपशिष्ट का निपटान इस तरह से किया जाना चाहिए कि शहर एवं उसके पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान हो।
  • अपशिष्ट की मात्रा को कम करने के लिए 3R (Recycle, Reduce and Reuse) फार्मूले का उपयोग किया जाना चाहिए।
    • मौजूदा इमारतों को संरक्षित करके, नए निर्माण के आकार को अनुकूलित करके और ऐसी अनुकूलन क्षमता वाली दीर्घकालिक नई इमारतों का निर्माण करके ऐसा किया जा सकता है। 
    • इस संदर्भ में सामग्री को अलग करने और उसका पुनरुपयोग करने की सुविधा प्रदान करने वाली निर्माण पद्धति भी वांछनीय है।
    • लकड़ी के अपशिष्ट जैसे अन्य मलबे का पुनर्चक्रण कर नव-निर्माण में उपयोग किया जा सकता है। सीमेंट, प्लास्टर एवं ईंटों को तोड़कर नई इमारतों में उपयोग किया जा सकता है। 

उचित निपटान 

  • शहरी निर्माण में विविध सामग्रियों का उपयोग होता है, इसलिए पुनः उपयोग एवं पुनर्चक्रण विधियों के बाद भी काफी मात्रा में अपशिष्ट बच जाता है जिसे उचित तरीके से निपटाया जाना चाहिए।
  • उपचारित लकड़ी, कंक्रीट एडिटिव्स, एस्बेस्टस, दूषित मिट्टी, चिपकने वाले पदार्थ, पेंट, सॉल्वैंट्स और लेड-एसिड बैटरी जैसे अपशिष्ट खतरनाक होते हैं, जिन्हें उनके निपटान के लिए निर्दिष्ट कानूनों के अनुसार सावधानीपूर्वक व वैज्ञानिक तरीके से निपटाने की आवश्यकता होती है। 
  • विविध अपशिष्ट का प्रबंधन जटिल एवं बहुआयामी प्रक्रिया है। इसलिए, निर्माण अपशिष्ट प्रबंधन को शहरों में एक योजनाबद्ध गतिविधि बनाने की आवश्यकता है।

राज्य सरकारों द्वारा विनियमन 

  • राज्य सरकारों को नदी संरक्षण के लिए नदी के किनारे दो बाढ़ रेखाएँ खींचने का अधिकार है। ये लाल एवं नीली रेखाएँ बाढ़ की आशंका वाली भूमि को दर्शाने के लिए मानचित्रों पर खींची जाती हैं। नीली रेखा 25 वर्षों में दर्ज की गई अधिकतम बाढ़ रेखा को दर्शाती है जबकि लाल रेखा 100 वर्षों में दर्ज की गई अधिकतम बाढ़ रेखा को दर्शाती है।
    • नीली रेखा तक ‘निषिद्ध क्षेत्र’ में किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं है। 
    • हालाँकि, नीली एवं लाल रेखाओं के बीच ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ में कुछ सार्वजनिक सुविधाएँ बनाने की अनुमति है।
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