चर्चा में क्यों
हाल ही में, संस्कृति मंत्रालय ने साप्ताहिक उत्सव ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यते’ के अंतर्गत भारतीय ज्ञान प्रणाली को समर्पित एक गीति काव्य कार्यक्रम ‘धारा’ का आयोजन किया।
प्रमुख बिंदु
- संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के माध्यम से पहली बार प्राचीन भारत के कार्यों को वैश्विक पटल पर लाने का प्रयास किया जा रहा है।
- ध्यातव्य है कि भारत का गणित के क्षेत्र में शून्य के अतिरिक्त भी समृद्ध योगदान रहा है। जहाँ गणित में शून्य के योगदान को स्वीकार किया जाता है तथा विश्व भर शिक्षण संस्थानों में पढ़ाया जाता है, वहीं अधिकांशतः अन्य प्रमुख योगदानों का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
- शून्य के अतिरिक्त गणित के क्षेत्र में भारतीयों के अन्य 10 योगदानों में भारतीय अंक प्रणाली, बौद्धायन-पाइथागोरस प्रमेय, गणितीय भाषा विज्ञान, त्रिकोणमिति में साइन फंक्शन, ऋणात्मक संख्याएँ, द्विघात समीकरणों के समाधान, द्विपद गुणांक, विरहांक के फिबोनाची अनुक्रम (Fibonacci Sequence), त्रृटि-पहचान/कोड सुधार, पाई (π) के लिये प्रथम सटीक फॉर्मूला शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि एल. फिबोनाची (1202 ईस्वी) से पहले ही भारतीय गणितज्ञ विरहांक (600 ईस्वी से 800 ईस्वी के मध्य), गोपाल (1135 ईस्वी के पूर्व) एवं हेमचंद्र (1150 ईस्वी के निकट) ने तथाकथित फिबोनाची संख्याओं तथा उनके निर्माण विधि का वर्णन किया था।
- भारतीय गणितज्ञों ने गणित में सबसे आधारभूत वस्तु से शुरू होकर संख्याओं के प्रतिनिधित्व के माध्यम से पुनरावृत्ति संबंधों को अभिव्यक्त करने, अनिश्चित समीकरणों (Indeterminate Equations) के समाधान तक पहुँचने, अनंत (Infinite) तथा अपरिमित संख्याओं (अपरिमित संख्या/Infinitesimals- यह एक ऐसी मात्रा है जो किसी भी मानक वास्तविक संख्या की तुलना में शून्य के करीब है, लेकिन वह शून्य नहीं है) को प्रबंधित करने में परिष्कृत तकनीकों के विकास तक उल्लेखनीय योगदान दिया है।
- सबसे प्राचीन मौजूदा शुल्वसूत्र मूलपाठ (800 ईसा पूर्व) में पाइथागोरस प्रमेय के उपयोग का वर्णन किया गया है। इसके अलावा इसमें करणी (Surds) के लिये विभिन्न अनुमान भी दिये गए हैं।
भारत के प्रमुख गणितज्ञ
- पिंगला का ‘चंदशास्त्र’ पाठ विभिन्न संयोजन तकनीकों की नींव रखता है।
- आर्यभट्ट ने दशमलव स्थान-मान प्रणाली के आधार पर वर्गमूल और घनमूल निकालने के लिये एल्गोरिदम का वर्णन किया। साथ ही अपने परिमित-अंतर के रूप में साइन फ़ंक्शन का विभेदक समीकरण और रैखिक अनिश्चित समीकरण को हल करने की विधि का वर्णन किया।
- ब्रह्मगुप्त ने शून्य के साथ अंकगणितीय संक्रियाओं का अध्ययन किया। साथ ही द्विघात-अपरिमित समीकरण (Quadratic Indeterminate Equation) को हल करने के लिये ‘भावना’ संयोजन नियम को प्रतिपादित किया। इन्होंने अंकगणित, ज्यामिति और बीजगणित का विकास किया तथा त्रिकोणमिति में अपना योगदान दिया।
- माधव ने pi (n) के लिये अनंत श्रेणी की खोज की, जिसे तथाकथित ग्रेगरी-लाइबनिज़ श्रेणी या अन्य त्रिकोणमितीय कार्य के रूप में जाना जाता है। इन्होंने केरल स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथमेटिक्स का बीड़ा उठाया। इस स्कूल को कुछ सदियों बाद यूरोप में आधुनिक विज्ञान की उत्पत्ति का श्रेय दिया जाता है।