(प्रारम्भिक परीक्षा: जैन धर्म, पारसनाथ एवं शत्रुंजय पहाड़ी की स्थिति)
संदर्भ
- हाल ही में जैन समुदाय द्वारा दो पवित्र स्थलों- झारखंड में पारसनाथ पहाड़ी पर सम्मेद शिखर और गुजरात के पलिताना में शत्रुंजय पहाड़ी से संबंधित मांगों को लेकर विरोध किया जा रहा है।
विरोध क्यों?
- झारखंड में जैन समुदाय के लोगों से परामर्श किये बिना पारसनाथ पहाड़ी के अलावा देवघर, रजरप्पा, इटखोरी समेत अन्य जगहों को पर्यटन स्थल और पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने का मुद्दा है।
- जबकि गुजरात के पलिताना में भगवान आदिश्वर की एक मूर्ति को खंडित किए जाने के बाद कुछ समय से विरोध चल रहा है।
विवाद की पृष्ठभूमि
- झारखंड सरकार ने 2019 में केंद्र सरकार से पारसनाथ हिल्स को इको-टूरिस्ट डेस्टिनेशन घोषित करने की अनुमति मांगी थी।
- अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने झारखंड सरकार को क्षेत्र में सशर्त विकास और इको-टूरिज्म की अनुमति तो दे दी परंतु कोविड के कारण कोई विकास कार्य शुरू नहीं किया गया।
- हाल ही में झारखंड की सरकार ने 22 जुलाई, 2022 को राज्य में पर्यटन को पुनर्जीवित करने के लिए राज्य पर्यटन नीति की शुरुआत की जिससे विरोध की स्थिति उत्पन्न हुई।
जैन समुदाय की चिंता
- जैन समुदाय की चिंता यह है कि पर्यटन स्थल घोषित होने से तीर्थस्थलों का व्यवसायीकरण हो जाएगा और उनके सबसे पवित्र मंदिरों में से एक की पवित्रता नष्ट हो सकती है।
- ऐसा माना जाता है कि 24 जैन तीर्थंकरों में से 20 ने यहाँ मोक्ष प्राप्त किया है।
विवाद के स्थल
पारसनाथ पहाड़ी:
- यह झारखंड के गिरिडीह ज़िले में स्थित पहाड़ियों की एक श्रृंखला है।
- इस पहाड़ी की सबसे ऊँची चोटी 1350 मीटर है इसे सम्मेद शिखर कहा जाता है।
- पहाड़ी का नाम 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम पर रखा गया है।
- माना जाता है कि पहाड़ी पर स्थित कुछ मंदिर 2,000 वर्ष से अधिक पुराने हैं।
- संथाल समुदाय इसे देवता की पहाड़ी मारंग बुरु कहते हैं। वे बैसाख (मध्य अप्रैल) में पूर्णिमा के दिन शिकार उत्सव मनाते हैं।
पालीताना और शत्रुंजय पहाड़ी:
- शत्रुंजय पहाड़ी पालीताना नगर, ज़िला भावनगर, गुजरात में एक पवित्र स्थल है, यहाँ 865 छोटे और बड़े जैन मंदिर हैं।
- माना जाता है कि जैन धर्म के संस्थापक एवं पहले तीर्थंकर आदिनाथ (ऋषभदेव) ने पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर में पहला उपदेश दिया था और यहीं पर उन्होंने रेयान वृक्ष के नीचे ध्यान साधना की थी।
- शत्रुंजय पहाड़ी जैन एवं हिन्दू धर्म के मंदिरों से युक्त एक अद्वितीय पहाड़ी है।
इटखोरी
- झारखंड के चतरा जिला में स्थित इटखोरी एक ऐतिहासिक शहर है।
- यह हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के केंद्र के रूप में लोकप्रिय है जो अपने प्राचीन मंदिरों और पुरातात्विक स्थलों के लिए जाना जाता है।
- यहाँ जैन धर्म के दसवें तीर्थकर भगवान शीतलनाथ स्वामी की जन्मभूमि है जोकि, प्रसिद्ध माँ भद्रकाली मंदिर परिसर में अवस्थित है।
रजरप्पा
- रजरप्पा, झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित एक झरना और तीर्थस्थल है।
- यहाँ प्रसिद्ध माँ छिन्नमस्ता मंदिर (जिसे छिन्नमस्तिका के नाम से भी जाना जाता है) स्थित है।
- यह संथाल और अन्य आदिवासियों के लिए भी एक तीर्थस्थल है, उनकी पौराणिक कथाओं के अनुसार यह उनका अंतिम विश्राम स्थल है। उनके लोकगीतों में रजरप्पा को "थल कोपी घाट" (जल घाट) कहा जाता है।
वर्तमान स्थिति
- मंत्रालय ने इस मुद्दे पर तुरंत संज्ञान लेते हुए, इको-सेंसिटिव जोन अधिसूचना के क्लॉज 3 को लागू करने पर तत्काल रोक लगा दी है, जिसमें पर्यटन और इको-टूरिज्म गतिविधियां शामिल हैं।
जैन धर्म:
- जैन धर्म 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में तब प्रमुखता से उभरा, जब भगवान महावीर ने धर्म का प्रचार किया।
- जैन धर्म ने प्रमुख रूप से भगवान महावीर के धर्म प्रचार के फलस्वरूप 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व प्रसिद्धि प्राप्त की।
- जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए, जिनमें से अंतिम भगवान महावीर थे।
- प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ थे।
- वे लोग जिन्होंने जीवित रहते हुए सभी ज्ञान (मोक्ष) प्राप्त कर लिया और लोगों को इसका उपदेश दिया करते थे
- जैन शब्द की उत्पत्ति जिन शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है विजेता।
- तीर्थंकर एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है 'नदी निर्माता', अर्थात् जो नदी को पार कराने में सक्षम हो, वही सांसारिक जीवन के सतत् प्रवाह से पार कराएगा।
- जैन धर्म अहिंसा को अत्यधिक महत्त्व देता है।
यह 5 महाव्रतों का उपदेश देता है:
- अहिंसा
- सत्य
- अस्तेय (चोरी न करना)
- अपरिग्रह
- ब्रह्मचर्य
- इन 5 शिक्षाओं में ब्रह्मचर्य (शुद्धता) को महावीर द्वारा जोड़ा गया था।
जैन धर्म में त्रिरत्न
- सम्यक दर्शन (सही विश्वास)।
- सम्यक ज्ञान (सही ज्ञान)।
- सम्यक चरित्र (सही आचरण)।
- जैन धर्म स्वयं सहायता या आत्मनिर्भरता को स्वीकार करता है।
- कोई देवता या आध्यात्मिक प्राणी नहीं है जो मनुष्य की मदद करेगा।
- यह वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं करता है।
आगे चलकर यह दो संप्रदायों में विभाजित हो गया:
- स्थलबाहु के नेतृत्व में श्वेताम्बर (श्वेत वस्त्र धारण करने वाले)।
- भद्रबाहु के नेतृत्व में दिगंबर (नग्न रहने वाले)।
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