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आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाओं के उपदान संबंधी विवाद

चर्चा में क्यों

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिकाएँ उपदान (Gratuity) की हकदार हैं, जो कि एक बुनियादी सामाजिक सुरक्षा उपाय है। 

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएँ लगभग 158 मिलियन बच्चों की पोषण संबंधी जरूरतों की देखभाल करती हैं, जिन्हें ‘भविष्य का मानव संसाधन’ माना जाता है। 
  • आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिकाएँ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना के तहत सरकार और लाभार्थियों के बीच सेतु का कार्य करती हैं।
  • यह चिंताजनक है कि महत्वपूर्ण सेवाओं की मुख्य धारा में कार्य करने के बावजूद भी इन्हें उपदान संदाय अधिनियम, 1972 (Payment of Gratuity Act, 1972) के तहत उनके उपदान भुगतान के अधिकार के लिये कोई प्रावधान नहीं है।

वैधानिक दायित्व

  • उपदान किसी प्रतिष्ठान को बेहतर बनाने, विकास एवं समृद्धि की दिशा में किसी व्यक्ति के प्रयासों की सराहना करने के लिये आवश्यक प्रेरणादायी तत्त्व है। यही कारण है कि उपदान को सामाजिक सुरक्षा माना जाता है। समय के साथ यह नियोक्ताओं की ओर से एक वैधानिक दायित्व भी बन गया है।
  • न्यायालय ने रेखांकित किया कि केंद्र तथा राज्यों दोनों को मिलकर इनकी सेवा शर्तों को बेहतर बनाने हेतु सामूहिक रूप से विचार करने की आवश्यकता है, ताकि सामुदायिक भागीदारी के साथ सेवाओं के वितरण की गुणवत्ता सुनिश्चित हो सके।  

एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना

  • भारत सरकार की यह योजना बचपन की देखभाल और विकास के लिये दुनिया के सबसे बड़े और अनूठे कार्यक्रमों में से एक है। यह बच्चों और महिला नर्सों के प्रति देश की प्रतिबद्धता का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक है
  • यह स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने और कुपोषण, रुग्णता, सीखने की क्षमता में कमी तथा मृत्यु-दर के दुष्चक्र को तोड़ने की चुनौती की प्रतिक्रिया के रूप में कार्यरत है। 

लाभार्थी

इस योजना के लाभार्थी 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे, गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ हैं।

शुरुआत : 2 अक्टूबर, 1975 

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