प्रारंभिक परीक्षा
(समसामयिक घटनाक्रम, पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी)
मुख्य परीक्षा
(सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : पर्यावरण संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)
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संदर्भ
अज़रबैजान के बाकू में COP 29 संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त के लिए वर्ष 2035 से विकासशील दुनिया को प्रति वर्ष 300 बिलियन डॉलर प्रदान करने के लिए एक समझौते पर सहमति व्यक्त की गई। हालाँकि, भारत एवं अन्य विकासशील देशों ने इस समझौते को अस्वीकार कर दिया है।
COP 29 संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन के बारे में
- आयोजन स्थल : बाकू (अज़रबैजान)
- आगामी संस्करण COP 30 ब्राजील में आयोजित किया जाएगा
- अध्यक्षता : मुख्तार बहादुर ओग्लू बाबायेव (अज़रबैजान के पारिस्थितिकी एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री)
- सम्मेलन की अवधि : 11 से 22 नवंबर 2024 तक
- थीम : ‘सभी के लिए रहने योग्य ग्रह में निवेश करना’
- भागीदारी : UNFCCC के 198 सदस्य देशों एवं सहयोगी संगठनों के प्रतिनिधि
- प्रमुख लक्ष्य : ग्लोबल वार्मिंग को 1.5°C तक सीमित रखने के लिए उपायों को लागू करना और जलवायु कार्रवाई में निवेश की तत्काल आवश्यकता पर बल देना।
- उद्देश्य : जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के लिए व्यापार भागीदारी को बढ़ाने और निवेश निर्णयों में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए मंच प्रदान करना।
- सम्मेलन का एजेंडा :
- कमजोर समुदायों, विशेष रूप से छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों और अल्प विकसित देशों को समर्थन देने के लिए हानि एवं क्षति कोष को चालू करने के महत्व पर बल।
- 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के अनुरूप राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) बढ़ाने का आह्वान।
- सभी देशों से वर्ष 2025 तक अपनी राष्ट्रीय अनुकूलन योजनाएं तैयार करने एवं प्रस्तुत करने का आह्वान।
- वैश्विक वित्तीय संस्थानों एवं निजी क्षेत्र को जलवायु वित्त बढ़ाने और हरित नवाचार में निवेश को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन।
- परिणाम : अंतिम समझौते में धनी देशों ने निर्धन देशों को जलवायु वित्तीय सहायता के लिए वर्ष 2035 तक प्रतिवर्ष 300 बिलियन डॉलर की पेशकश की है जिसे भारत समेत कई विकासशील देशों ने खारिज कर दिया है।
- समझौते में बढ़ते तापमान और आपदाओं से निपटने के लिए प्रति वर्ष 1.3 ट्रिलियन डॉलर का बड़ा समग्र लक्ष्य रखा गया है, जिसमें अधिकांश धन निजी स्रोतों से आएगा।
COP और UNFCCC
- COP (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज): जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) का प्राथमिक शासी निकाय है।
- UNFCCC : वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में पृथ्वी शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक जलवायु वार्ता का मार्गदर्शन करने के लिए बनाई गई एक अंतरराष्ट्रीय संधि है।
- उद्देश्य : गंभीर मानव-जनित जलवायु व्यवधानों से बचने के लिए ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को सुरक्षित स्तर पर स्थिर करना है।
- सदस्यता : UNFCCC में 198 पक्षकार शामिल हैं जिनमें 197 देश एवं यूरोपीय संघ शामिल हैं। यह जलवायु कार्रवाई के लिए लगभग सार्वभौमिक वैश्विक प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- महत्वपूर्ण समझौते
- क्योटो प्रोटोकॉल (1997)
- कोपेनहेगन समझौता (2009)
- पेरिस समझौता (2015)
- ग्लासगो जलवायु समझौता (2021)
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COP 29 सम्मेलन के प्रमुख निष्कर्ष
- वैश्विक ऊर्जा दक्षता गठबंधन : इस गठबंधन को UAE द्वारा COP 29 में लॉन्च किया गया, जो COP-28 के दौरान ‘UAE सर्वसम्मति’ के आधार पर स्थापित किया गया।
- यह पहल वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन को कम करने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए UAE की प्रतिबद्धता को उजागर करती है।
- जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक 2025 का प्रकाशन : जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (CCPI) 63 देशों एवं यूरोपीय संघ के जलवायु प्रदर्शन की तुलना करने के लिए एक मानकीकृत ढाँचे का उपयोग करता है।
- जलवायु पारदर्शिता पर बाकू घोषणापत्र : इस घोषणापत्र में संवर्द्धित पारदर्शिता ढाँचे (ETF) के पूर्ण संचालन के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता का आह्वान किया गया है।
- वैश्विक कार्बन बाजार : पेरिस समझौते के अनुच्छेद-6.4 के तहत अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजार मानकों पर एक समझौता हुआ है।
- यह देशों एवं कंपनियों को ‘कार्बन ऑफसेट’ का व्यापार करने के लिए दो मार्ग प्रदान करता है जो उनकी जलवायु कार्य योजनाओं में निर्धारित उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों की प्राप्ति या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान का समर्थन करते हैं।
- यह ढाँचा विकासशील देशों को संसाधन उपलब्ध कराने में मदद कर सकता है तथा सीमा पार सहयोग को सक्षम बनाकर प्रतिवर्ष 250 बिलियन डॉलर तक की बचत कर सकता है।
- हानि एवं क्षति कोष को लागू करना : COP 29 ने हानि एवं क्षति कोष को क्रियान्वित करने में प्रगति की है जो जलवायु प्रभावों के प्रति संवेदनशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- वैश्विक ऊर्जा भंडारण और ग्रिड संबंधी प्रतिज्ञा : यह प्रतिज्ञा हस्ताक्षरकर्ताओं को वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर 1,500 गीगावाट ऊर्जा भंडारण करने के सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध करती है।
- हाइड्रोजन घोषणा का शुभारंभ : यह घोषणा नवीकरणीय, शून्य-उत्सर्जन और निम्न कार्बन वाले हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने तथा निरंतर जीवाश्म ईंधन से मौजूदा हाइड्रोजन उत्पादन के डीकार्बोनाइजेशन में तेजी लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
- हाइड्रो-4 नेटजीरो-LAC (Hydro4 NetZero-LAC) : इस पहल के शुभारंभ का उद्देश्य स्थायी जलविद्युत अवसंरचना का विकास एवं आधुनिकीकरण करना है।
- बाकू हार्मोनिया जलवायु पहल : FAO के सहयोग से शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य अनुकूलन एवं शमन के माध्यम से कृषि में जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए विभिन्न प्रयासों को एकजुट करना है।
- राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC) को मजबूत करना : देशों की प्रतिबद्धताओं को अद्यतन करने के लिए वर्ष 2025 की समय-सीमा के साथ अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अंशदान (NDC) को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।
- अन्य प्रमुख पहल
- COP 29 युद्धविराम अपील
- COP 29 हरित ऊर्जा क्षेत्र एवं गलियारा प्रतिज्ञा
- हरित डिजिटल कार्रवाई पर COP 29 घोषणा
- जैविक अपशिष्ट से मीथेन को कम करने पर COP 29 घोषणा
- लचीले एवं स्वस्थ शहरों के लिए COP 29 बहुक्षेत्रीय कार्रवाई मार्ग घोषणा
- पर्यटन में वृद्धि संबंधी COP 29 घोषणा
- जलवायु कार्रवाई के लिए जल पर COP 29 घोषणा
COP 29 में भारत का पक्ष
- भारत ने विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त पर अंतिम समझौते के रूप में विकाशील देशों के लिए दिए गए 300 बिलियन डॉलर निधि की तीव्र आलोचना की है।
- भारत ने जलवायु वित्त एवं शमन कार्य कार्यक्रम में शामिल होने के लिए विकसित देशों की अनिच्छा पर असंतोष व्यक्त किया है।
- भारत के अनुसार, वित्त से ध्यान हटाकर शमन पर बार-बार जोर देने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
- भारत एवं चीन ने यूरोपीय संघ के प्रस्तावित कार्बन सीमा कर का विरोध किया है। उनका तर्क है कि यह कर संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सिद्धांतों का उल्लंघन करता है और उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर अनुचित रूप से बोझ डालता है।
- भारत ग्लोबल स्टॉक टेक परिणामों के अनुसरण के लिए सहमत नहीं है।
भारत का ग्लोबल वार्मिंग में योगदान
- भारत में एक व्यक्ति औसतन 2.9 टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड के बराबर (tCO2e) उत्सर्जन करता है जो वैश्विक औसत (6.6 tCO2e) से काफी कम है।
- भारत ने 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन और 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
COP 29 के बाद की चुनौतियाँ
- जलवायु वित्त की मांग : संयुक्त राष्ट्र की वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचाने के लिए प्रतिवर्ष 2.4 ट्रिलियन डॉलर निवेश की जरूरत है।
- अरब देशों, अर्थात सऊदी अरब, मिस्र ने संयुक्त राष्ट्र को प्रति वर्ष 1.1 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य सुझाया है।
- भारत, अफ़्रीकी देशों एवं छोटे द्वीपीय देशों के अनुसार, प्रति वर्ष 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक धन जुटाया जाना चाहिए।
- नए जलवायु वित्त लक्ष्य पर गतिरोध : विकसित देशों ने जलवायु वित्त के लिए नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) के रूप में वर्ष 2035 तक 300 बिलियन डॉलर की पेशकश की है। इसे भारत सहित कई विकासशील देशों ने अस्वीकार्य माना है।
- हानि एवं क्षति कोष प्रबंधन : हानि एवं क्षति कोष का संचालन अभी भी एक जटिल मुद्दा बना हुआ है।
- समझौतों का क्रियान्वयन : COP 29 के अंतर्गत महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए गए है किंतु वास्तविक चुनौती समझौतों को कार्रवाई में बदलने में है।
- वैश्विक सहयोग की कमी : विकसित देशों द्वारा आवश्यक समर्थन न होने के कारण जलवायु सम्मेलन के लक्ष्यों की पूर्ति में वैश्विक सहयोग की कमी बनी हुई है।
- निगरानी एवं जवाबदेही : जलवायु कार्यों के कार्यान्वयन में पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- कार्यान्वयन में असमानता : राष्ट्रों ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य का वादा किया है किंतु विशेष रूप से विकसित व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच कार्यान्वयन एवं महत्वाकांक्षा में असमानताएँ बनी हुई हैं।
- भू-राजनीतिक संघर्ष : इजरायल एवं हमास युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक स्तर पर जलवायु सुरक्षा व ऊर्जा सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
- अस्तित्व का संकट : ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ने के साथ ही संवेदनशील देशों के समक्ष अस्तित्व का संकट भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे देशों के लिए न्यायसंगत संक्रमण (Just Tansition) सुनिश्चित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
आगे की राह
- विकसित देशों को अपनी ऐतिहासिक ग्लोबल वार्मिंग की जिम्मेदारी लेते हुए अपने वित्त दायित्वों की पूर्ति करने की आवश्यकता है।
- वैश्विक स्तर पर चल रहे भू-राजनीतिक संघर्षों को दूर करने के लिए सक्षम देशों को जलवायु परिवर्तन पर सहयोगात्मक कार्रवाई को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
- COP 29 में अनेक नवीन पहल एवं घोषणाओं को दस्तावेज से बाहर धरातल पर उतारने और वित्त जुटाने पर समझौतों को सुगम बनाने के लिए कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।
- वैश्विक ऊर्जा संक्रमण सुनिश्चित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहलों को बढ़ाया जाना चाहिए।
- हानि एवं क्षति कोष को संचालित करने के लिए वित्तपोषण मानदंड, स्पष्ट आवंटन तंत्र के लिए मानदंड विकसित किए जाने की आवश्यकता है।