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कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व 

( प्रारंभिक परीक्षा के लिए - कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से संबंधित नीतियाँ, कानून एवं समितियाँ )
( मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 - सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप )

सन्दर्भ 

  • कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 135 के तहत भारत में कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) व्यवस्था की स्थापना के बाद से भारत में सीएसआर खर्च 2014-15 के 10,065 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 24,865 करोड़ रुपये हो गया है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 2020-21 में 2,926 कंपनियां थीं जिनमें सीएसआर पर शून्य खर्च हुआ।
  • जबकि 2 फीसदी की निर्धारित सीमा से कम खर्च करने वाली कंपनियां 2015-16 के 3,078 से बढ़कर 2020-21 में 3,290 हो गईं।
  • सीएसआर में भाग लेने वाली कंपनियों की संख्या 2019 में 25,103 से घटकर 2021 में 17,007 ही रह गयी है।

कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व

  • कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) उन व्यवसाय प्रथाओं को संदर्भित करती है, जिसमें समाज को लाभ पहुंचाने वाले कार्य शामिल है।
  • कम्पनियाँ अपने परिचालन में कच्चे माल के रूप में समाज के मूल्यवान संसाधनों का उपयोग करती है, CSR इसके बदले में कपनियों द्वारा समाज को दिया गया प्रतिफल है।
  • CSR के तहत कंपनियों को अपने पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभों के औसत का 2 % CSR गतिविधियों पर खर्च करना होता है।
  • किसी कंपनी द्वारा अपने निर्धारित कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व फंड की राशि एक निश्चित अवधि में खर्च ना कर पाने की स्थिति में, वह राशि स्वत: केंद्र सरकार के विशेष खाते ( क्लीन गंगा फंड, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष) में जमा हो जाती है।
  • CSR भारत सरकार के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के अधीन आता है। 
  • कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन करने के बाद भारत दुनिया का पहला देश बना, जिसने  CSR को क़ानूनी रूप से अनिवार्य बना दिया। 
  • CSR गतिविधियाँ कंपनी अधिनियम की धरा 135 के अंतर्गत आती है, इसके अनुसार निम्नलिखित कंपनियों पर CSR के प्रावधान लागु होते है- 
    • जिनकी निवल संपत्ति 500 करोड़ रुपये से अधिक हो
    • या कुल बार्षिक कारोबार 1000 करोड़ रुपये से अधिक हो
    • या शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपये से अधिक हो।

कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की मान्य गतिविधियाँ 

  • वैसी गतिविधियाँ जो सीएसआर के दायरे में आती है, उनकी सूची कम्पनी अधिनियम की 7वीं अनुसूची में दी गई है। कंपनियों को इन्हीं में से अपनी सीएसआर गतिविधियों का चयन करना है -
    • राष्ट्रीय धरोहर, कला और संस्कृति की सुरक्षा, जिसमें ऐतिहासिक महत्व वाली इमारतें और स्थल एवं कला शामिल हैं।
    • पारंपरिक कला एवं हस्तशिल्प को बढ़ावा देना और उनका विकास
    • सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना।
    • अनाथालय और वृद्धाश्रम की स्थापना, उनके लिए भवन का निर्माण, उनका रख -रखाव व संचालन।
    • महिलाओं के लिए घर और छात्रावासों की स्थापना।
    • ग्रामीण खेलों, राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त खेलों, ओलंपिक खेलों और पैरालंपिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण मुहैया कराना।
    • केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थानों में स्थित प्रौद्योगिकी इनक्यूबेटरों के लिए फंड मुहैया कराना।
    • शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने के लिए काम करना।
    • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
    • स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को बढ़ावा देना।
  • सीएसआर गतिविधि के तहत किसी पंजीकृत संस्था या ट्रस्ट को कोई कंपनी धन दे सकती है। उस संस्था द्वारा कंपनी की सीएसआर नीति और उसके कार्यक्रम के अनुसार वह राशि खर्च की जा सकती है। उसे कंपनी अपनी सीएसआर रिपोर्ट में शामिल करेगी
  • अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य, प्रशिक्षण, सामाजिक गतिविधि, बोनस, विशेष चिकित्सा और आर्थिक सहायता आदि में कोई राशि खर्च करती है, तो इस खर्च को सीएसआर गतिविधि पर हुआ खर्च नहीं माना जायेगा। 
  • कोई देशी या विदेशी कंपनी भारत के बाहर किसी देश पर अगर कोई सामुदायिक लाभ के कार्य करती है, तो उस खर्च को सीएसआर का हिस्सा नहीं माना जाएगा।
  • नियम में स्पष्ट है कि कंपनी को हर हाल में भारत में ही अपनी सीएसआर गतिविधियां चलानी हैं। सीएसआर की राशि का उपयोग भारतीय नागरिकों के कल्याण में होना चाहिए।

कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से सम्बंधित मुद्दे 

  • यह सत्यापित करने के लिए कोई आंकड़ा नहीं है, कि CSR खर्च में हुई वृद्धि भारतीय और विदेशी (भारत में पंजीकृत शाखा होने) कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि के अनुरूप है या नहीं।
  • इसके अलावा, कई निजी कंपनियों ने अपने स्वयं के फाउंडेशन / ट्रस्ट पंजीकृत किए हैं, जिनके उपयोग के लिए वे वैधानिक सीएसआर बजट स्थानांतरित करते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि कंपनी अधिनियम/सीएसआर नियमों के तहत इसकी अनुमति है या नहीं।
  • अधिनियम की धारा 135 (5 ) का पहला प्रावधान यह है कि कंपनी को अपने आसपास के स्थानीय क्षेत्रों को वरीयता देनी चाहिए जहां वह काम करती है।
    • हालांकि अशोका यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सोशल इम्पैक्ट एंड फिलांथ्रोपी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 54% सीएसआर कंपनियां महाराष्ट्र में केंद्रित हैं।
    • तमिलनाडु कर्नाटक और गुजरात सबसे ज्यादा CSR फंड प्राप्त करते है, जबकि अपेक्षाकृत अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को बहुत कम CSR फंड प्राप्त होता है।
  • एक उच्चस्तरीय समिति ने 2018 में देखा कि अधिनियम में 'स्थानीय क्षेत्र' पर जोर केवल दिशाहीन है और इसमें संतुलन बनाए रखना होगा। इस अस्पष्टता ने स्थानीय खर्चों के लिए स्पष्ट प्रतिशत के अभाव में इन कंपनियों के बोर्डों के विवेक पर बहुत कुछ छोड़ दिया है।
  • कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व व्यापक पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित है, ताकि एक प्रतिगामी प्रभाव पैदा किया जा सके।
  • सीएसआर खर्च (2014-18) के विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश सीएसआर खर्च शिक्षा (37%) और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता (29%) पर किया गया जबकि पर्यावरण पर केवल 9% खर्च किया गया था। 
  • मौजूदा विनियमन के तहत, निगरानी एक बोर्ड, प्रकटीकरण आधारित व्यवस्था द्वारा की जाती है, जिसमें कंपनियां वार्षिक रिपोर्ट दाखिल करने के माध्यम से कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) को अपने सीएसआर खर्च की वार्षिक रिपोर्ट देती हैं।
    • इस डिजाइन के साथ एक बड़ा मुद्दा यह है कि यह खर्च की गुणवत्ता और इसके प्रभाव के बजाय आउटपुट पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • वित्त पर स्थायी समिति ने भी पाया, कि कंपनियों द्वारा सीएसआर खर्च के बारे में दी गई जानकारी अपर्याप्त और पहुंच में मुश्किल है।
  • अधिकांश CSR गतिविधियाँ शहरी क्षेत्रों में संचालित की जाती है, और ग्रामीण क्षेत्र इन गतिविधियों से अछूता ही रह जाता है। 
  • CSR गतिविधियों की निगरानी और प्रमाणीकरण के लिये स्वतंत्र संस्था का अभाव होना भी इसके क्रियान्वयन में एक बड़ी समस्या है।

कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व गतिविधियों के लाभ 

  • CSR गतिविधियों के माध्यम से कम्पनियाँ समुदायों का विश्वास प्राप्त करती है।
  • इन गतिविधियों के माध्यम से कंपनियों की कारपोरेट प्रतिष्ठा और ब्रांड निर्माण में वृद्धि होती है, जिससे कंपनी की लाभप्रदता में वृद्धि होती है।

आगे की राह 

  • कंपनियों को उस क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना चाहिए, जहां वे सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में काम करते हैं, और अपने बजट का कम से कम 25 प्रतिशत इसे आवंटित करना चाहिए।
  • सीएसआर परियोजनाओं के चयन और कार्यान्वयन में व्यापक जन भागीदारी समुदायों, जिला प्रशासन और जन प्रतिनिधियों को सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
  • वर्तमान निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली को बढ़ाने के लिए 2018  में गठित एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को सीएसआर ढांचे में शामिल किया जाना चाहिए।
  • कंपनी के वित्तीय विवरण में शामिल सीएसआर व्यय के विवरण के साथ सीएसआर को वैधानिक वित्तीय लेखा परीक्षा के दायरे में लाया जाना चाहिये।
  • स्वतंत्र तीसरे पक्ष द्वारा प्रभाव मूल्यांकन लेखा परीक्षा को अनिवार्य करना।
  • कारपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा विभागों के माध्यम से (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए ) और अन्य उद्योग संघों के माध्यम से (गैर-सार्वजनिक इकाइयों के लिए) व्यवसायों द्वारा सीएसआर खर्च पर अधिक प्रत्यक्ष निगरानी और पर्यवेक्षण करने की आवश्यकता है।
  • CSR को सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के साथ जोड़ा जाना चाहिए, और कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों - जैसे कि वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण, आपदा प्रबंधन और विरासत को विकसित करने के लिए अतिरिक्त रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
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