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न्यायपालिका में भ्रष्टाचार एवं जांच प्रक्रिया संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजनीतिक व्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; विभिन्न संवैधानिक पदों पर नियुक्ति तथा विभिन्न संवैधानिक निकायों की शक्तियाँ, कार्य व उत्तरदायित्व)

संदर्भ

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ कदाचार के आरोपों की जाँच के लिए एक आंतरिक समिति गठित की है। इस संदर्भ में न्यायपालिका में पारदर्शिता एवं जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए इन-हाउस जाँच की प्रक्रिया को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।

हालिया मुद्दे के बारे में

  • 14 मार्च, 2025 को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में अग्निशमन कर्मियों को बड़ी मात्रा में जले हुए नोट मिले।
  • प्रारंभिक जाँच के बाद सी.जे.आई. ने आरोपों की जाँच के लिए तीन सदस्यीय एक समिति गठित की है जिसके सदस्य हैं-
  1. पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश 
  2. हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
  3. कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश
  • न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस लेकर उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित कर दिया गया है।

न्यायाधीशों के विरुद्ध कार्रवाई की आंतरिक प्रक्रिया

  • वर्ष 1997 में सर्वोच्च न्यायलय ने न्यायिक जीवन के सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मूल्यों का पालन नहीं करने वाले न्यायाधीशों के विरुद्ध कार्रवाई के लिए पाँच सदस्यीय एक समिति द्वारा जाँच की आतंरिक प्रक्रिया (In-house Procedure) विकसित की।
  • यह प्रक्रिया वर्ष 1999 में शुरू हुई थी और वर्ष 2014 में इसे सार्वजनिक किया गया। 

आतंरिक प्रक्रिया का क्रमवार विवरण

  1. जब किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत आती है तो मुख्य न्यायाधीश यह निर्णय लेते हैं कि मामले की जाँच की आवश्यकता है या नहीं।
  2. यदि जाँच जरूरी हो तो एक समिति गठित की जाती है जिसमें अन्य उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायधीश और एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  3. समिति जाँच करने के बाद अपनी सिफारिशें सी.जे.आई. को भेजती है।
  4. यदि कदाचार गंभीर पाया जाता है तो न्यायाधीश को इस्तीफा देने के लिए कहा जाता है या राष्ट्रपति से उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की जाती है।
  5. यदि न्यायाधीश इस्तीफा देने के लिए तैयार नहीं है तो राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को संसद द्वारा संविधान के प्रावधानों के अनुसार हटाने के लिए कार्रवाई शुरू करने के लिए निष्कर्षों से अवगत कराया जाएगा।
  • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ किसी भी शिकायत की जाँच एक समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और अन्य उच्च न्यायालयों के दो मुख्य न्यायाधीश शामिल होंगे।
  • सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत होने की स्थिति में जाँच के लिए गठित समिति में सर्वोच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीश शामिल होंगे।

प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता

  • पारदर्शिता : इस आतंरिक प्रक्रिया की गोपनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं क्योंकि पारदर्शिता की कमी से न्यायिक स्वतंत्रता एवं दायित्त्व से समझौता हो सकता है। 
    • इस प्रक्रिया में सुधार के लिए यह आवश्यक है कि जाँच के मुख्य निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाए ताकि आम जनता का विश्वास बना रहे। 
  • कठोर सजा का प्रावधान : यदि कोई न्यायाधीश कदाचार का दोषी पाया जाता है तो उसे आपराधिक दंड भी मिलना चाहिए।
  • स्वायत्त निकाय का गठन : ब्रिटेन में ‘न्यायिक आचरण जाँच कार्यालय’ जैसे स्वायत्त निकाय की तरह भारत में भी एक स्थायी एवं स्वतंत्र निकाय की आवश्यकता है जो न्यायिक कदाचार के मामलों की जाँच कर सके। 
  • कॉलेजियम प्रक्रिया में सुधार : कॉलेजियम प्रक्रिया में भी सुधार जरूरी है ताकि न्यायधीशों की नियुक्तियों में पारदर्शिता बढ़े व जवाबदेही सुनिश्चित हो।

महाभियोग मामले के बारे में

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायामूर्ति शेखर कुमार यादव को न्यायिक शुचिता का उल्लंघन करने के आधार पर उनके पद से हटाने के लिए 13 दिसंबर, 2024 को विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव सौंपा है। 
  • यह महाभियोग प्रस्ताव न्यायाधीश (जाँच) कानून, 1968 और संविधान के अनुच्छेद 218 के तहत दिया गया है। वर्तमान में यह प्रस्ताव राज्यसभा में लंबित है।

महाभियोग प्रक्रिया 

  • संविधान के अनुच्छेद 124(4) {सर्वोच्च न्यायालय} और अनुच्छेद 218 {उच्च न्यायालय} के तहत न्यायाधीशों को पद से हटाने की प्रकिया का उल्लेख है। 
  • किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव को संसद के प्रत्येक सदन अर्थात लोकसभा एवं राज्यसभा से विशेष बहुमत से पारित होना चाहिए। यह प्रस्ताव किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
  • विशेष बहुमत में उस सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और उस सदन के उपस्थित एवं मतदान करने वाले कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत होता है। 

महाभियोग का इतिहास

इससे पहले भी देश के चार जजों के खिलाफ महाभियोग लाया जा चुका है : 

  • न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी 
    • ये भारत के पहले न्यायाधीश (मद्रास उच्च न्यायालय) थे, जिनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई। 
    • महाभियोग प्रस्ताव वर्ष 1993 में लाया गया था। हालाँकि, दो-तिहाई बहुमत हासिल नहीं पाने के कारण यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
  • न्यायमूर्ति सौमित्र सेन
    • कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौमित्र सेन देश के दूसरे न्यायमूर्ति थे, जिन्हें महाभियोग का सामना करना था।
    • उनके खिलाफ वर्ष 2011 में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था। इन्होंने महाभियोग प्रक्रिया प्रारंभ होने के बाद स्वयं को निर्दोष बताते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था।
  • न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला
    • वर्ष 2015 में राज्यसभा में गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। जे.बी. पारदीवाला ने आरक्षण के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
    • तत्कालीन उपराष्ट्रपति (सभापति) हामिद अंसारी के पास महाभियोग का प्रस्ताव भेजने के बाद जस्टिस पारदीवाला ने अपने न्यायिक निर्णय से वह शब्द हटा लिए थे।
  • न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरन
    • भ्रष्टाचार एवं पद के दुरुपयोग के आरोपों पर सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी की गई थी।
    • जुलाई 2011 में अपने खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही दिनाकरन ने इस्तीफा दे दिया था। 
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