New
GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 Feb, 11:00 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 15 Feb, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124 GS Foundation (P+M) - Delhi: 26 Feb, 11:00 AM GS Foundation (P+M) - Prayagraj: 15 Feb, 10:30 AM Call Our Course Coordinator: 9555124124

राजनीति का अपराधीकरण

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजनीतिक व्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र 2; जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ; संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय)

संदर्भ 

वर्तमान में राजनीति में अपराधियों की लगातार बढ़ती भूमिका के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राजनीति के अपराधीकरण पर एक रिपोर्ट जारी की गई है। साथ ही एक जनहित याचिका में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से किसी दोष सिद्ध व्यक्ति को संसद या विधानसभा में पुन: चुने जाने पर जवाब माँगा है।

राजनीति के अपराधीकरण पर हालिया रिपोर्ट 

  • सर्वोच्च न्यायालय की इस रिपोर्ट के अनुसार, 543 लोकसभा सांसदों में से 251 (46%) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
  • इनमें से 170 सांसदों पर तो ऐसे गंभीर अपराधों के आरोप हैं जिनमें 5 साल या उससे ज्यादा की कैद हो सकती है।

राज्यवार स्थिति 

  • केरल के 20 में से 19 सांसदों (95%) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 11 सांसदों पर गंभीर मामले दर्ज हैं।
  • तेलंगाना के 17 सांसदों में से 14 (82%), ओडिशा के 21 में से 16 (76%), झारखंड के 14 में से 10 (71%), और तमिलनाडु के 39 में से 26 सांसदों (67%) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
  • उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भी लगभग 50% सांसद आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।
  • हरियाणा (10 सांसद) और छत्तीसगढ़ (11 सांसद) में केवल एक-एक सांसद पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
  • पंजाब में 13 में से 2, असम में 14 में से 3, दिल्ली में 7 में से 3, राजस्थान में 25 में से 4, गुजरात में 25 में से 5, और मध्य प्रदेश में 29 में से 9 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुधार हेतु निर्देश 

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ (2002) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद या राज्य विधानमंडल के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि तथा संपत्ति आदि की घोषणा करने का निर्देश दिया था।
  • लिली थॉमस मामले (2013) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अपराधों के लिए दोषी ठहराए जाने पर आरोपित  संसद सदस्यों और विधायकों को अपील के लिए तीन महीने का समय दिए बिना सदन की सदस्यता से तत्काल अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
  • मार्च 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने विधि आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर एक आदेश पारित किया, जिसमें निर्देश दिया गया कि वर्तमान सांसदों और विधायकों के खिलाफ आरोप तय होने के एक वर्ष के भीतर मुकदमा पूरा किया जाना चाहिए।
  • रामबाबू सिंह ठाकुर बनाम सुनील ठाकुर (2019) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि सभी राजनीतिक दलों को नामांकन दाखिल करते समय अपने उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का विवरण प्रकाशित करना चाहिए।
  • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019) मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को अपनी वेबसाइटों, सोशल मीडिया हैंडल और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने का आदेश दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2023 में सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया था कि वे मौजूदा और पूर्व विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की सुनवाई की निगरानी के लिए एक विशेष पीठ का गठन करें। 
    • लेकिन कई राज्यों ने अभी तक ऐसे विशेष न्यायालय स्थापित नहीं किए हैं। इस वजह से कुछ राज्यों में ऐसे मामलों की सुनवाई दो दशक से भी ज़्यादा समय से लंबित है।
    • 1 जनवरी 2025 तक, मौजूदा या पूर्व विधायकों के खिलाफ 4,732 आपराधिक मामले लंबित हैं।

राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण का प्रभाव

  • नौकरशाही का राजनीतिकरण
  • चुनाव परिणामों में हेरफ़ेर की संभावना
  • राजनीतिक मूल्यों का पतन
  • शासन भ्रष्टाचार की ओर अग्रसर
  • नागरिकों के अधिकार व स्वंत्रता सीमित
  • जनता का लोकतंत्र में विश्वास कम होना
  • लोकतांत्रिक संस्थाओं का पतन

क्या है सर्वोच्च न्यायालय में दायर हालिया मामला

  • संबंधित वाद : अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ (2025)
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई जिसमें राजनीति के अपराधीकरण को रोकने हेतु प्रमुख मुद्दों को उठाया गया है।
  • जनहित याचिका में उठाए गए प्रमुख मुद्दे 
    • सांसदों/विधायकों के मामलों का त्वरित निपटान
      • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 एवं 9 की संवैधानिक वैधता पर विचार
    • याचिका में दोषी ठहराए गए राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
    • क्या किसी आपराधिक अपराध में दोषी ठहराया गया व्यक्ति राजनीतिक पार्टी बना सकता है, या किसी राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी हो सकता है?

हितों का टकराव

  • यदि दोषी या सजायाफ्ता व्यक्ति संसद या विधानसभा सदस्य निर्वाचित होकर कानून निर्माण की प्रक्रिया में भाग लेता है, तो यह स्पष्ट रूप से हितों का टकराव है। 
    • अर्थात जो लोग कानून का पालन नहीं कर रहे हैं, वही लोग कानून एवं नीति निर्माण का कार्य भी कर रहे हैं।

सरकार का मत 

  • दिसंबर 2020 में विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल हलफनामे में सरकार ने दोषी व्यक्तियों के चुनाव लड़ने, या किसी राजनीतिक दल का गठन करने या उसका पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के विचार को खारिज कर दिया था।
  • वर्ष 2024 में भी केंद्र सरकार द्वारा अपने इस मत को दोहराया गया।

यह भी जानें

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

  • धारा 8: यह धारा उन विशिष्ट अपराधों का वर्णन करती है, जिनमें दोषसिद्धि होने पर किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जाता है और दोषसिद्धि की तारीख से कारावास व उसकी रिहाई के बाद से छह वर्ष की अतिरिक्त अवधि के लिये उसे चुनाव में प्रतिभाग के अयोग्य घोषित किया जाता है।
  • धारा 9: इस धारा के तहत, भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति गैर-निष्ठा के कारण पदच्युत किया गया व्यक्ति पदच्युति की तिथि से 5 वर्ष की कालावधि के लिए चुनावमें में प्रतिभाग के अयोग्य हो जाता है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR